Friday 23 January 2015

आयरन लेडी इरोम से डरती है सरकार और पुलिस, खेल रही है गिरफतारी और रिहाई की आंख मिचोली


इरोम की मां का त्‍याग भी बड़ा है
पूजा मेहरोत्रा
इरोम ‘’शर्मिला चानू आयरन लेडी। जी हां, बस नाम ही काफी है। इरोम देश ही नहीं पूरे विश्व में इतनी लोकप्रिय हो चुकी हैं कि अब उन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। 14 साल से भूख हड़ताल कर रही इरोम को यदि आज का गांधी कहा जाए तो वह अतिश्योक्ति नहीं होगी। वर्ष 2000 में जब उन्होंने भूख हड़ताल की शुरुआत की थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह 27 साल की लड़की अपने प्रदेश में अमन शांति के लिए सरकार से इतनी बडी जंग लड़ेगी। इरोम के भूख हड़ताल की वजह उनके या उनके परिवार वालों के साथ हुआ कोई अत्याचार नहीं, बल्कि सुरक्षा बलों द्वारा मालोम के बस स्टैंड पर अंधाधुध गोलियों से मरे उन दस लोगों के लिए इंसाफ की मांग थी जिसमें सुरक्षा बल ने 62 वर्ष की वृदघ् महिला से लेकर 18 साल के एक राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार प्राप्त युवक को अपनी गोलियों भून डाला था। मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून अफस्पा के इस विशेषाधिकार को समाप्त किए जाने की मांग को लेकर 2000 शुरू की गई भूख हडताल की जंग आज तक जारी है। इरोम को हर साल कोर्ट रिहा करने का आदेश देती है और पुलिस हर दूसरे दिन गिरफतार कर लेती है। इरोम को बुधवार को रिहा किया गया और आज फिर जेल में ढकेल दिया गया। इससे पहले 20 अगस्त 2014 को मणिपुर की अदालत ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया था तो पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। अभी इस खुशी को लोग आत्मसात भी नहीं कर पाए थे कि 22 अगस्त को फिर से गिरफतार कर लिया गया। कुछ ऐसा ही उनके साथ आज भी किया गया है। मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू पर आरोप हर बार यही लगाया जाता है कि उन्‍होंने स्वास्थ्य परीक्षण के लिए पहुंची पुलिस और मेडिकल टीम से स्वास्थय जांच कराने से इनकार कर दिया था। पिछले 14 वर्षों से इरोम को जबरन नली के सहारे खाना खिलाया जाता रहा है। इरोम को आइपीसी की धारा 309 के तहत पिछले 14 वर्षों से हिरासत में रखा जा रहा है। इस धारा के मुताबित आत्महत्या के प्रयास के लिए एक साल से अधिक कैद में किसी को नहीं रखा जा सकता है। जिसकी वजह से हर वर्ष इरोम को एक दिन के लिए रिहा कर अगले दिन फिर हिरासत में ले लिया जाता है। इसलिए इरोम को रिहा किया जाना और अगले ही दिन उसे खाना न खाने के विरोध में गिरपफतार कर लिया जाना कोई अकस्मात घटना नहीं है। इरोम के प्रशंसकों की बढती तादाद ने सरकार को भी अब सोचने पर मजबूर कर दिया है। चौदह साल में हर एक साल बाद इरोम एक दिन के लिए रिहा होती रहीं हैं लेकिन 21 जनवरी को इरोम को रिहा किया जाना एक चौंकाने वाली बात थी लेकिन जब उन्‍हें आज गिरफ़तार किया गया तो प्रशासन का डर साफ साफ दिखा। इरोम के प्रशंसकों की संख्या चौगुनी हो चुकी है। पिछले दो बार से इरोम के साथ पूरा देश और राष्ट्रीय मीडिया भी है। इरोम की बार बार होने वाली गिरफतारी और रिहाई पर राष्‍ट्रीय मीडिया ने बहस शुरू कर दी है। उनके रिहा होने से लेकर गिरफतारी तक के एक एक पल को पूरी दुनिया को दिखाया जा रहा है।
जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के छोटे से वार्ड में कुछ किताबों और पौधों के साथ इरोम चानू शर्मिला को पिछले चौदह सालों से नजरबंद रखा जा रहा है।  वह जब भी खुली हवा में आती हैं लड़खड़ाती आवाज में खाना मांगती हैं।  मैं भी खाना खाना चाहती हूं। मेरी मदद करिए। आप मेरे संघर्ष में शामिल हो जाइए। जब तक दमनकारी आफसपा की समस्या के लिए हम एक जुट होकर प्रयास नहीं करेंगे तब तक हमपर इसी तरह अत्‍याचार होता रहेगा। हमारे भाई बहन मांए मारी जाती रहेंगी। हमसब एक जुट होकर रह सकें, साथ खा सकें साथ पी सकें और साथ ही सो सकें। इसके लिए एकजुटता जरूरी है।  मैं भी हर इंसान की तरह ही सामान्य हूं जो भोजन करना चाहता है। मैं भी भोजन करना चाहती हूं।
गुरुवार को जैसे ही इरोम के रिहा होने की खबर आई भारी तादाद में समर्थकों ने इरोम की जयकार की। पूरे दिन इरोम से मिलने वालों का तांता सा लगा रहा। इरोम इंफाल के बीच हर स्थित इमा कैथेल यानि माताओं का बाजार में ही ठहरती आ रही हैं। जहां उनसे मिलने वालों और जयकार करने वालों की संख्या समय के साथ बढती ही चली जा रही है। इरोम के रिहाई की खबर आते ही पूरा हर मानो रुक जाता है। महिलाएं उन्हें देखते ही चिल्लाने लगीं। युवा उनकी तस्वीर उतारने में लगे थे। इरोम का रीर और उनकी दुर्बलता उनका साथ नहीं दे रही थी फिरभी उन्होंने प्रदेशवासियों को संदेश दिया अब जागने का वक्त आ गया है, आइए संघर्ष में मेरा साथ दीजिए ताकि हम सभी नागरिक जीवन के अधिकारों का उपयोग कर सकें। मैं इतनी बडी संख्या में अपने प्रशंसकों को देख कर भावुक हो रही हूं। कई लोग मेरे इस संघर्ष को प्रचार पाने मात्र का एक जरिया मानते हैं। क्या वे एक दिन अपने लिए नहीं अपने देशवासियों के लिए भूखा रहने की हिम्मत रखते हैं? क्या वे जानते हैं कि चौदह साल से अन्न का एक भी दाना मुंह में न रखते हुए अपने प्रदेशवासियेां के लिए लडाई लडना कैसा होता है।
आपको यह भी बता दें कि इरोम अपनी इस रिहाई के बाद भी न तो अपने घर गईं और न ही अपनी मां से मिली। उन्होने कहा जब तक सरकार दमनकारी कानून आफस्पा को समाप्त नहीं करेगी वह अपना अनशन चालू रखेंगी। सिंघाजीत इरोम के बडे भाई अपनी बहन के इस पल में साथ साथ हैं वह कहते हैं कि इरोम हिम्मती हैं। उन्होंने फैसला किया है कि जब तक सरकार की ओर से लगाया गया अफस्पा कानून हटाया नहीं जाता तब तक वो न तो अपने घर जाएंगी और न ही मां से मिलेंगी। मेरी मां भी र्मिला के इस फैसले का समर्थन करती हैं। वह कहती हैं कि उसे अनशन जारी रखने दे मैं उससे तभी मिलूंगी जब वह अपने काम में सफल हो जाएगी। इरोम की मां शाखी देवी की उम्र 80 वर्ष है वह नहीं चाहती हैं कि उनके आंसू देख इरोम कमजोर पडे। 

   

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