Friday 30 June 2017

सरकारी बाबू ज़रा संभलना....अब किया आज का काम कल तो चली जाएगी जॉब

अब तक सरकारी नौकरी का मतलब माना जाता रहा है जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी। लेकिन मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस का नारा देने वाली मोदी सरकार अब सरकारी नौकरी या यूं कहें लालफीताशाही पर लगाम लगाने की तैयारी में जुटी नजर आ रही है.
पिछले वर्ष उसने १२९ कर्मचारियों को कंपल्सरी रिटायरमेंट देकर इसका आग़ाज किया था लेकिन लगता नहीं कि कर्मचारियों ने इससे कोई सबक लिया है । इसलिए इसबार ६७००० सरकारी कर्मचारियों के काम की समीक्षा की जा रही है। सरकारी कर्मचारियों में जो आराम तलबी की चाहत भरी हुई है कि अब उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता..लेकिन सरकार के रूख लगता है कि साठ साल की उम्र तक उनके सरकारी मेहमान बना रहने वाली मानसिकता अब नहीं चलेगी। अगर नौकरी में रहना है तो उन्हें काम करना पड़ेगा। क्योंकि सरकार ने अपने ऐसे आराम तलब कर्मचारियों पर नजरें तिरछी कर दी है..अब समय आ गया है कि नौकरशाही चुस्त दुरुस्त हो और यह काम सख्ती से ही किया जा सकता है।
  केंद्र सरकार केंद्रीय कर्मचारियों के कार्य काल को खंगालने और उनके काम काज की समीक्षा कर रही है।  इस समीक्षा में आईएएस, आईपीएस सहित केंद्र सरकार से जुड़े उच्चपदासीन अधिकारियों सहित हर अफसर और कर्मचारी शामिल हैं। इस रिव्यू का मकसद कर्मचारियों के नॉन परफॉर्मेंस की जांच करना तो है ही, साथ ही कर्मचारियों को यह बतलाना भी है कि आरामतलबी, कामचोरी और भ्रष्टाचार अब नहीं चलने वाला है। हालांकि यह रिव्यू सरकार का वार्षिक कार्यकाल का हिस्सा है। नियमों के मुताबिक केंद्र सरकार के कर्मचारियों का रिव्यू उनके पूरे कार्यकाल में दो बार किया जाता रहा है-पहली बार नौकरी पाने के १५ साल बाद और फिर २५ साल बाद। लेकिन इस रिव्यू की चर्चा इतनी अधिक कभी नहीं रही क्योंकि ऐसा माना जाता है कि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए ये कर्मचारी वोट बैंक का अहम हिस्सा होते  हैं.
.अगर नजर दौड़ाएं तो हर वर्ष जिस तरह से सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाता है और इन्हें अनेक तरह से संतुष्ट रखने की कोशिश की जाती रही है। सरकार अपने कर्मचारियों का प्रदर्शन सुधारने के बजाय इसका इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए करती रही है।  मोदी सरकार ने जिस तरह से इस प्रलोभन को धत्ता बताने का प्रयास किया है वह सराहनीय तब हो जाएगा जब इनमें से अधिकतर कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाए। सरकार जिस तरह से इस रिव्यू के माध्यम से कर्मचारियों में डर बैठाने की कोशिश कर रही है । इसे एक अच्छी पहल के रूप में देखा जाना चाहिए। आंकड़ों पर नजर डालें तो मौजूदा डाटा के अनुसार केंद्र सरकार में कर्मचारियों की संख्या लगभग ४८.८५ लाख है अगर राज्य सरकार के अधिकारियों को जोड़ें तो ये आंकड़े तीन करोड़ के लगभग हैं। लेकिन सरकारी ऑफिसों के कर्मचारियों के लिए आने वाली शिकायतें और लंबित मामलों की संख्या करोड़ों में है। कम से कम अधिकतन शासन के मिशन के साथ आने वाली इस सरकार को ऐसे कर्मचारियों की जरूरत नहीं है जो सरकार के दामाद बने हुए हैं और सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ा रहे हैं।
केंद्रीय कर्मचारियों के काम काज की समीक्षा केंद्र सरकार की पुरानी योजनाओ में से है। लेकिन पिछली केंद्र सरकारें इस रिव्यू को रस्म अदायगी की तरह निभाती रही हैं। लेकिन एनडीए की सरकार ने इस समीक्षा को गंभीरता से लिया और पिछले साल इस रिव्यू के अंतर्गत १२९ ऐसे कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कम्पल्सरी रिटायरमेंट दिया था,जो नॉन परफॉर्मर थे। इन कर्मचारियों में आईएएस और आईएएस सहित कई वरिष्ठ केंद्रीय कर्मचारी शामिल थे।
हमारी नौकरशाही के लेट लतीफी, आरामतलबी का ख़ामियाज़ा सरकार ने समय समय पर भुगता है. सरकारी योजनाओं का समय पर पूरा न होना..बन रहे पुल का ढह जाना इसका साक्षात नमूना रहा है। इंटरनेशल सर्वे में हमारी नौकरशाही भ्रष्टतम मानी जाती रही है, जिसकी वजह से भारतीय बार - बार शर्मसार होते रहे हैं। शायद यही वजह है कि जिस तेजी से देश का विकास होना चाहिए था, उस तेजी से विकास होता नहीं दिख रहा है..विकास की गति पर भ्रष्टाचार की बेड़ियां पड़ी हुई हैं। जब भी कोई कर्मचारी सरकारी नौकरी में आता है तो उसे शपथ दिलाई जाती है- सेवा की- वे सरकार में सेवा के लिए आए हैं। लेकिन जैसे ही ये कर्मचारी नौकरी पा लेते हैं, उनकी सेवा की भावना काफूर हो जाती है। यहां तक कि कर्मचारी समय पर ऑफिस भी नहीं आते है..ऑफिस के समय से पहले ही घर के लिए निकल जाते हैं..लंच आवर में ऑफिस के बाहर घंटों धूप सेकते रहते हैं..लेकिन अब केंद्र सरकार ऐसे कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी कर रही है। यही नहीं यदि कर्मचारी सरकार की आचार संहिता का पालन नहीं करते हैं तो वे दंड के अधिकारी भी हो सकते हैं. समीक्षा की जा रही कर्मचारियों में २५००० कर्मी तो अखिल भारतीय तथा समूह ए सेवाओं के हैं । इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय राजस्व सेवा आदि के हैं।

Sunday 4 June 2017

सरकार कुछ ऐसी व्यवस्था बनाए तो बात बन जाए

 पूजा मेहरोत्रा
अगर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और निजी कंपनियां एक जुट हो जाएं तो हमारे देश की बड़ी समस्या बेरोजगारी चुटकियों में निपट सकती है..बस थोड़ी सी मेहनत, थोड़ी सी लगन और थोड़ी सी सतर्कता की जरूरत है... जिस तरह से सरकार ने मेडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के परीक्षार्थियों के लिए एक ही परीक्षा प्लैटफॉर्म का निर्माण किया है।  ठीक उसी तरह अगर नौकरी का प्लैटफॉर्म बन जाए तो न केवल टैलेंट को एक सही जगह मिल पाएगी वहीं दर दर भटकते छात्रों को भी छत मिलने का आसान मिल जाएगा...


कैसा हो अगर सरकारी सेवा और निजी नौकरियां एक ही प्लैटफॉर्म के ज़रिए मिले तो ..अगर मौजूदा सरकार की योजनाएं कारगर साबित हुईं और समर्थन हासिल हुआ तो ऐसा जल्द ही होगा। नौकरी की तलाश में बैठे युवाओं के लिए सरकार ऐ



सी व्यवस्था बनाने जा रही है, जिसमें एक ही परीक्षा से एक नहीं कई नौकरियों  के दरवाजे खुल जाएंगे। इसके लिए परीक्षार्थी को न तो बार-बार फॉर्म भरना होगा और न उसे अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ेंगे। अगर सरकार की यह योजना कारगर साबित होती है तो यह नौकरी जगत में बहुत बड़ी क्रांती होगी। इस परीक्षा के जरिए सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियों के लिए एक ही फॉर्म, एक ही परीक्षा और एक बार ही पुरजोर मेहनत करनी पड़ेगी।
 मोदी सरकार की इस योजना के मुताबिक यदि कोई युवा सरकारी नौकरी पाने के लिए कोई फॉर्म भरता है और उसमें सफल नहीं हो पाता है तो उसकी उस परीक्षा में प्राप्त किए गए अंक को अन्य राज्य सरकार और निजी नौकरियों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। पिछले दिनों ही संघ लोक सेवा आयोग के परिणाम आए हैं. कई हज़ार स्टूडेंट ऐसे हैं जिनका चयन महज़ कुछ नंबरों की वजह से नहीं हो पाया होगा ऐसे विद्यार्थियों के लिए सरकार की यह योजना काफी कारगर साबित हो सकेगी। संघ लोक सेवा आयोग या कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओ में विद्यार्थियों का चयन महज एक और आधे नंबर की वजह से नहीं हो पाता है तो ऐसे विद्यार्थियों की कट ऑफ लिस्ट के हिसाब से मेरिट लिस्ट तैयार की जाएगी। इस मेरिट लिस्ट से प्रतिभाशाली युवाओं का चयन राज्य सरकार की विभिन्न विभागों और प्राइवेट कंपनियों में नौकरी के लिए किया जा सकेगा।
अगर सरकार की योजना कारगर साबित होती है तो आने वाले समय में यह नौकरी के बाजार में नया आयाम साबित होगा।
 छात्र एक सरकारी नौकरी के लिए कई तरह के फॉर्म भरते हैं। उसमें उनका काफी पैसा और ऊर्जा भी लगती है इस योजना के लागू होते ही छात्रों का पैसा और ऊर्जा दोनों में भारी बचत होगी। इस योजना की घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष दिसंबर में युवाओं को संबोधित करते हुए की थी। इस योजना को कैसे लागू किया जाए उसका खाका नीति आयोग और पीएमओ मिलकर तैयार कर रहा है। योजना का नक्शा तैयार होते ही सरकार निजी कंपनियों के अधिकारियों से इस बावत बैठक कर उनके अनुरूप ही इस योजना को आकार देगी। उम्मीद है कि यह योजना साल के अंत तक लागू हो।
 फिलहाल इस तरह की योजना प्रवेश परीक्षाओं में तो शुरू हो चुकी है। कॉमन इंट्रेंस टेस्ट  के माध्यम से मेडिकल और तकनीकी कॉलेजों, आईआईटी और आईआईएम की परीक्षाओं में स्टूडेंट सेलेक्ट किए जाने के बाद निजी स्कूल और कॉलेज रैंक के हिसाब से छात्रों का चयन करते हैं। ठीक इसी पद्धति का इस्तेमाल सरकार अब नौकरियों के लिए भी करने में जुटी है जिसमें सरकार परीक्षार्थियों से भी अनुमति चाहती है जिससे दूसरी नौकरी प्रदाता कंपनियां भी अच्छे और बेहतरीन कैंडिडेट्स का फायदा अपनी कंपनी के लिए उठा सकें। जिस तरह सरकार बैंकिंग सेवा के लिए कॉमन इंटरेंस टेस्ट लेती है जिसका फायदा निजी बैंक भी उठाते हैं।
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना के बारे में जानकारी देते हुए कहा था कि इससे बेरोजगारी में लगाम लगाई जा सकेगी और अधिक से अधिक स्टूडेंट और नौकरी प्रदाता कंपनियां इसका फायदा उठा सकेंगी।
सरकार इस योजना के तहत विभिन्न सरकारी परीक्षाओं में बैठने वाले कैंडिडेट्स के प्राप्तांक को ऑनलाइन शेयर करने का भी फैसला किया है जिसका मकसद है कि निजी कंपनियां प्राप्तांकों के आधार पर अपनी कंपनी के लिए योग्य का चयन कर सकें। यानी निजी कंपनियों को अलग से लंबी चयन प्रक्रिया चलाने की जरूरत नहीं होगी। सरकार लगभग अपने हर क्षेत्र के लिए कैडिडेट्स का चयन परीक्षा द्वारा करती है। जैसे एसएससी, रेलवे, बैंकिंग या ऐसी तमाम परीक्षाएं। अब इन एजेंसियों को  विद्यार्थियों का प्राप्तांक पब्लिक डोमेन में डालना होगा। सरकार इस ओर बहुत तेजी से काम कर तो रही है और एक खास तरह की वेबसाइट के निर्माण में भी जुटी है।वेबसाइट पर मौजूद डाटा को नैशनल करियर सेंटर से भी जोड़े जाने की योजना है। लेकिन सरकार को एक अहम कदम और उठाने की जरूरूत है। जिसमें वो उन स्टूडेंट पर भी लगाम लगाए जो पहले से ही किसी न किसी सरकारी नौकरी में हैं और वे दूसरी नौकरी के लिए फिर परीक्षा देते हैं। सरकार का इस तरह के कैंडिडेट्स में लाखों रूपए हर वर्ष बरबाद हो जाता है। अगर महज आईएएस की परीक्षा की ही बात करें तो इस परीक्षा में सैंकड़ों वो लोग शामिल होते हैं जो पहले से ही किसी बेहतरीन सरकारी नौकरी पर काबिज हैं और उस स्थान तक उस शख्स को पहुंचाने के लिए सरकार ने पहले ही लाखों रूपए खर्च कर दिएं हैं और जब वे फिर किसी और सरकारी नौकरी के लिए तैयारी में जुटते हैं तो सरकार का लाखों रूपए तो बर्बाद होता ही है साथ ही किसी एक छात्र का हक भी जाता है।
 २०१६ की टॉपर नंदिनी पहले से सरकारी सेवा में हैं और अब वो आईएएस की परीक्षा पास कर गईं हैं। 


बहरहाल एक परीक्षा कई नौकरियों वाली इस योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्टूडेंट्स भी अहम योगदान दे सकते हैं।  जब वे नौकरी के लिए फॉर्म भर रहे होंगे तो उन्हें अपने प्राप्तांको को सार्वजनिक करने की अनुमति सरकार को देनी होगी। एक ही परीक्षा से कई नौकरियों के इस सरकारी प्रयास के लिए केंद्र के तीन मंत्रालय मिलकर अंजाम तक पहुंचाएंगे। कार्मिक विभाग मंत्रालय पोर्टल तैयार करेगा जिसमें सभी सरकारी और केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों का ब्योरा रहेगा। यहां उन्हीं कैंडिडेट्स की सूचना होगी जिन्होंने फॉर्म भरते हुए निजी कंपनियों में काम करने को मंजूरी दी होगी। लेकिन यह योजना भी तभी कारगर होगी जब निजी कंपनियां और राज्य सरकारें इस योजना में अपनी दिलचस्पी दिखाएं।

Thursday 11 May 2017

पत्थरबाजी हल तो नहीं



पूजा मेहरोत्रा
जिस तरह से कश्मीर में सेना पर पत्थरबाजी हो रही रही है और देशभर में कश्मीरी छात्रों से मारपीट हो रही है इसने केंद्र की सरकार के पशीने पर चिंता की लकीरें खींच दी है। न तो कश्मीर में सेना पर कश्मीरीयिों द्वारा पत्थरबाजी का यह पहला मामला है और न ही कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट का यह पहला मामला। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि इस पूरे मामले में गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बोलना पड़ रहा है कि कश्मीरी छात्र भी भारतीय नागरिक हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राज्य सरकारों से कह तो दिया है कि कश्मीरी छात्रों के साथ इस तरह की मारपीट बर्दाश्त नहीं की जाएगी, कश्मीरी भी भारतीय नागरिक हैं। आनन फानन में कश्मीरी छात्रों के लिए हेल्पलाइन भी शुरू कर दी गई है। वैसे यह नहीं भूलना चाहिए की छात्र राजनीति इन दिनों चरम पर है और जब छात्र समूह में होते हैं तो वह भी खुद को उपद्रव करने से रोक नहीं पाते हैं।
शिक्षा वह अलख है वह हथियार है जिससे अंधविश्वास को मिटाया जा सकता है, गुमराह हो रहे नौजवानों को बचाया जा सकता है और गुनाह को खत्म किया जा सकता हैं।  शिक्षा में वो शक्ति है जो आपको सही और गलत का एहसास कराती है।  यही वजह है कि शिक्षा ग्रहण करने के लिए छात्र एक राज्य से दूसरे राज्य का फासला तय करते हैं। देश में सबसे बड़ा आंतरिक पलायन या तो रोजगार के लिए होता है या फिर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए। संयुक्त राष्ट्र-ग्लोबल अर्बन यूथ रिसर्च नेटवर्क के 2014  में किए गए एक शोध से पता चला कि सबसे ज्यादा पलायन दस वर्षों में हुआ जिसमें लगभग 37  लाख युवा केवल शिक्षा के लिए अपने-अपने राज्यों और क्षेत्रों को छोड़कर दूसरी जगहों पर गए। इनमें 26 लाख पुरुष और 11 लाख महिलाएं थीं। लगभग 17 प्रतिशत युवा ऐसे थे जो दूसरे राज्यों में गए जबकि 16.8 लाख युवा ऐसे थे जिन्होंने अपने ही गृह राज्य में दूसरे जिलों में बेहतर शिक्षा के लिए पलायन किया। इस गणना में उन युवाओं को शामिल किया गया, जिन्होंने विशेष तौर पर शिक्षा के लिए पलायन किया। यानी ये आंकड़ें देश के भीतर शिक्षा संसाधनों के असमान वितरण की ओर भी ईशारा करते हैं। कुछ राज्यों में शिक्षा के लिए बेहतर साधन और संस्थान मौजूद हैं, तो कुछ राज्य इस मामले में लगातार पिछड़ रहे हैं। नतीजतन शिक्षा के लिए होने वाले पलायन की परिघटना गंभीर है। इस पलायन के बीच जब खबरें आती हैं कि एक विशेष राज्य के छात्रों को इसलिए दूसरे राज्य में मारा पीटा गया क्योंकि उस राज्य में हमारी देश की सेना के ऊपर पत्थर फेंका जा रहा है, सेना के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है तब लगता है कि समय आ गया है कि अब स्थिति को गंभीरता से लिया जाए। कश्मीर की आवाम भी अमन शांति चाहती है लेकिन हमें समझना होगा कि वहां अमन और शांति की बहाली हम वहां से निकले छात्रों के साथ मारपीट कर बहाल नहीं कर सकते। इस अमन शांति के लिए हमें उनके दिलों में विश्वास को जगाना होगा। डर के साए में जी रहे नौजवानों को शिक्षा के माध्यम से बताना होगा कि ये कश्मीर ही नहीं पूरा देश उनका भी है।
बीते बुधवार को राजस्थान के मेवाड़ विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों के साथ चित्तौड़गढ़ जिले में कुछ स्थानीय लोगों ने मारपीट की, जिसमें छह कश्मीरी छात्र घायल भी हो गए। 'बुधवार की शाम करीब छह बजे गंगरार कस्बे के नजदीक कम से कम नौ कश्मीरी विद्यार्थियों की लाठी और बैट से पिटाई की गई। स्थानीय लोगों को जब पता चला कि ये कश्मीरी हैं तो उन्होंने हमें निशाना बनाया। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि विद्यार्थी विश्वविद्यालय परिसर के नजदीकी बाजार की ओर जाते समय स्थानीय लोगों से उलझ गए थे। इस पूरी घटना में छह छात्र घायल भी हो गए हैं। इस मारपीट की वारदात को एकतरफा देखना थोड़ा मुश्किल है क्योकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब एक ही क्षेत्र के दस युवा एकत्रित होते हैं तो वे भी खुद को मजबूत साबित करने की कोशिश करते हैं। इन छात्रों ने भी स्थानीय लोगों के खिलाफ बल का प्रयोग किया ही होगा। छात्रों की मारपीट का ये मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि मेरठ में कश्मीरी छात्रों के खिलाफ लगाया गया पोस्टर विवादों में आ गया।
उत्तर प्रदेश नव निर्माण सेना नाम के एक संगठन की तरफ से मेरठ-देहारादून हाइवे पर बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे कश्मीरियों को प्रदेश छोड़कर जाने की चेतावनी दी गई है। 30 अप्रैल के बाद यूपी में कश्मीरियों के खिलाफ हल्ला बोलने को भी कहा गया है। कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट की यह कोई पहली घटना नहीं है। मेरठ में इससे पहले भी कश्मीरी छात्रों को मारा पीटा जाता रहा है। कश्मीरी छात्रों पर इस हमले को कश्मीर में सैनिकों पर की जा रही पत्थरबाजी का प्रतिक्रिया माना जा रहा है। छात्रों से मारपीट करने और यूपी से जाने की धमकी देने वालों का मानना है कि जो छात्र यहां पढाई कर रहे हैं उनके परिवार वाले ही हमारी सेना और सैनिकों के साथ वहां दुर्व्यवहार कर रहे हैं। जब कश्मीरी छात्रों को यहां से खदेड़ा जाएगा तभी उन्हें सबक मिलेगा। कश्मीरी छात्रों को सबक सिखाने के लिए की जा रही इस पूरी कारवाई में उन्हें मकान न दिए जाने से लेकर खाने पीने तक की चीजें बेचे जाने पर भी रोक लगाए जाने की बातें सामने आ रही हैं।
कश्मीरी छात्रों के साथ हो रही मारपीट की घटनाओं को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है। गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही है। नॉर्थ ईस्ट के छात्रों के साथ देश के कई हिस्सों में दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है, उन्हें मारा पीटा जाता है तब सरकार की न तो एडवायजरी जारी करती है और न ही हेल्पलान और केंद्र उनके लिए  कोई संज्ञान लेती नजर नहीं आती हैं।
 इससे पहले भी हॉस्टल में बीफ खाए जाने के विवाद को लेकर भी कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट की गई थी जबकि २०१६ में भोपाल की बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में भी पीएचडी कर रहे उमर रशीद ने अपने साथ मारपीट की शिकायत दर्ज कराई थी।
पत्थरबाजों और मारपीट के बीच से डॉ. रूबैदा सलाम, फैशल शाह, अतर आमिर उल शफी चंद ऐसे नाम हैं जो कश्मीर की सूरत और सीरत को नया आयाम देते नजर आते हैं।

                           

निर्भया को इंसाफ पर क्या बदली मानसिकता ?


निर्भया गैंगरेप के मामले में देश की सर्वोच्च न्यायालय ने इंसाफ कर दिया है। चारों दोषियों को फांसी की सज़ा बरकरार रखी गई है। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट से सज़ा बरकारर रखने की खबर आई देश में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी ने एक ही बात कही, देर है अंधेर नहीं..इंसाफ मिल गया निर्भया को.. पिछले चार वर्षों में निर्भया केस से जुड़ी शायद ही ऐसी कोई सुनवाई रही हो जब देशवासियों ने उसे खुद से जोड़ कर न देखा हो। निर्भया के साथ १६ दिसंबर २०१२ की रात हुई दरिंदगी ने देश को शर्मशार कर दिया था। जिसने भी निर्भया के साथ हुई उस वहशियाना हरकत के बारे में सुना वह कांप गया, उसकी अंतरआत्मा कांप गई..आंख डबडबा गई, क्या महिला, क्या पुरुष और क्या बच्चे सभी घर से निर्भया के लिए इंसाफ मांगने निकल पड़े थे। देश महिला सुरक्षा को लेकर एकजुट दिख रहा था। देशवासियों की एकजुटता ने संसद को हिला कर रख दिया था। निर्भया के मामले को भले ही पांच साल होने को हैं..लेकिन अगर पीछे पलट कर देखें तो दिखेगा कि कुछ भी नहीं बदला है। महिलाएं और असुरक्षित हुआ हैं। रेप और छेड़छाड़के मामले बढ़ गए हैं। देश जितना महिला सुरक्षाको लेकर एकजुट दिख रहा था वह महज़ दिखावा भर था। बच्चियां आज ज्यादा असुरक्षित हैं..रेप के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है और हमारी मानसिकता संकीर्ण हुई है।
बहरहाल, निर्भया गैंगरेप को रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस मानते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने समाज की उम्मीदों के मुताबिक ही फांसी की सज़ा को बरकरार रखा है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश देश के लिए नज़ीर पेश करते हैं..इस मामले में न्यायपालिका ने ऐसा ही किया और लोअर कोर्टके आदेश को बरकरार रखते हुए फांसी की सज़ा को बरकरार रखा। जब निर्भया के साथ दरिंदगी हुई थी तब सरकार ने कई अहम फैसले लिए थे। उसी का नतीज़ा था फास्ट ट्रैक कोर्ट। यह विडंबना ही है कि मामले को पांच साल होने को हैं, सजा बरकरार रखी गई है लेकिन सजा हुई नही है। साकेत फास्ट ट्रैक कोर्ट ने नौ महीने के अदंर गैंगरेप के चारों दोषियों  अक्षय, पवन, मुकेश और विनय को फांसी की सजा सुनाई थी। केस दिल्ली हाई कोर्ट गया और वहां भी फांसी की सज़ा को बरकरार रखा गया और मुहर लगा दी थी। फिर मामला देश की सर्वोच्च अदालत पहुंचा, दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी लेकिन मामले की गंभीरता और इंसाफ की मांग करती निर्भया की आत्मा ने मामले को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट में ही तीन जजों की बेंच के पास गया। करीब एक साल तक सुनवाई चली। निर्भया के साथ दरिंदगी छह लोगों ने की थी। उसमें एक नाबालिग भी था। पुलिसिया जांच में पता चला था कि निर्भया के साथ सबसे ज्यादा दरिंदगी नाबालिग ने की थी..लेकिन नाबालिग होने के कारण वह फांसी से बच निकला..उसे सज़ा भी महज़ तीन महीने की हुई थी. इस मामले में नाबालिग अपराधी की उम्र घटा कर १६ साल कर दी. वहीं छठे आरोपी रामकुमार ने तिहाड़ में फांसी लगा कर खुद को सज़ा दे ली थी। चारों अभियुक्तों को फांसी की सजा बरकरार रखे जाने पर भी समाज दो भागों में बंटा दिख रहा है। और एक सवाल कर रहा है कि क्या इन चारों को फांसी दिए जाने के बाद देश में रेप के मामले कम हो जाएंगे? क्या बच्चियां इन्हें फांसी दिए जाने के बाद सुरक्षित हो जाएगी? बहस लंबे समय से चली आ रही है..और वैसे ही चलती रहेगी..लेकिन समाज में अगर कानून के प्रति डर उत्पन्न करना है तो न्यायिक प्रक्रिया को तेज करना होगा। त्वरित कार्रवाई से चीजों में जरूर बदलाव होता दिखता है। और इसका साक्षात उदाहरण है २०१० में हुए कॉमन वेल्थ गेम्स। पूरी दिल्ली गेम्स के बाद भी संस्कारी बनी रही थी। क्योंकि तब सज़ा और पुलिस दोनों सड़क पर मुस्तैद थे। प्रशासन चुस्त था।
 बहरहाल, सुरक्षित मानी जानी वाली दक्षिणी दिल्ली में निर्भया के साथ जिस तरह से दरिंदगी हुई, उसने देर रात काम करने वाली महिलाओं को हिला कर रख दिया था। तब कामकाजी महिलाओं की सुरक्षाको लेकर कई नियम बनाए गए थे, कानून में बदलाव किए थे, राजनीतिक पार्टियों ने बड़े बड़े दावे किए थे।  देर रात ड्यूटी करने वाली महिलाएं को कंपनियां गार्ड की सुरक्षा में घर तक पहुंचाए जाने की बात की गई थी। यह आदेश महिलाओं के लिए उल्टा साबित हुआ। महिलाओं को कंपनियों ने काम ही देना बंद कर दिया। मीडिया जो सबसे ज्यादा कंसर्न दिखाता है वह भी इससे अछूता नहीं है।
निर्भया के साथ हुई दरिंदगी देशभर की महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान का मुद्दा बना था। जिस तरह से युवा लड़कों ने आंदोलन में हिस्सा बने थे लगा था महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव होगा. लेकिन अफसोस हालात सुधरने की जगह और बदतर हुए हैं। पिछले पांच साल में  महिलाओं में असुरक्षा और बढ़ी है, उनके साथ होने वाले  हादसे और बढ़े हैं। प्रशासन कान में तेल डाल कर बैठ चुका है और जिनके बदलने की उम्मीद थी उन्होंने भी बुरी तरह से निराश किया है। लेकिन इस घटना के बाद महिलाएं और बेटियां मुखर हुईं हैं। जिस छेड़छाड़ को नियति मानकर वो चुप रह जाती थीं अब हंगामा होता है। इसका अंदाजा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। बलात्कार के मामलों में पिछले पांच सालों में इज़ाफा दर्ज है।  बदले माहौल ने महिलाओं को पुलिस में शिकायत करने का हौसला तो दिया,  लेकिन दुख इस बात का है कि बलात्कार के मामले कम नहीं हुए हैं। देश की राजधानी में ही पिछले पांच वर्षों में महिलाओं की छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार के कई बड़े हादसे हुए। वहशियों ने छोटी बच्चियों को भी शिकार बनाया। आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में साल 2012 में बलात्कार के 706 मामले सामने आए थे, जबकि 2016 में 2199 मामले दर्ज़ हुए हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट पर अगर नजर डालें तो दिल्ली में मुंबई के मुकाबले तीन तीन गुना ज़्यादा रेप होते हैं। 2015- 2016 के अक्टूबर तक दिल्ली में 3973 लड़कियों का रेप हुआ। मतलब हर चार घंटे में एक बलात्कार। अगर छेड़छाड़ के आंकड़ें पर नज़र डालें तो कान से धुआं निकलने लग जाएगा..रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में अकेले हर दो घंटे में कहीं न कहीं किसी लड़की को मॉलेस्ट किया जाता है।

 जिस देश में नारी को पूजने की परंपरा रही है वहां क्यों वे महज़ मनोरंजन और उपभोग की वस्तु बन गईं? क्यों सिर्फ निर्भया के लिए तो देश एकत्रित होता है? लेकिन घर में महिला को हर दिन निर्भया के दौर से गुजरना पड़ रहा है। इन सबकी सिर्फ बस एक वजह नज़र आती है वह है मानसिकता। जब देश निर्भया के लिए एकजुट दिखाई दे रहा था तब भी मानसिकता बदली हुई नहीं थी। मां बहन की गालियां आज भी हर किसी की जुबान का हिस्सा हैं। यही मानसिकता महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कराती है। और इस मानसिकता की जड़ में है हमारा घर और पुरुष प्रधानता। पहले बच्चियों को, महिलाओं को घर-परिवार में उपेक्षित और प्रताड़ित किया जाता है और जब वह उन बंधनों, प्रताड़नाओं को तोड़ते हुए बाहर निकलती हैं तो छेड़छाड़ और दुष्कर्म का शिकार बनती हैं। कानून की चाल इतनी सुस्त होती है कि गर्म लोहे पर चोट सी असर नहीं कर पाती। रेयर ऑफ रेयरेस्ट मामले में भी सजा देने में पांच साल लगते हैं तो कठोर कानून और कोर्ट का कड़ा फैसला भी अपना असर नहीं दिखा पाता हैं। अब समय आ गया है जब घर से मानसिकता को बदला जाए। जब तक नेता लड़को से गलती हो जाती है जैसे भाषण देते रहेंगे तब तक समाज में सुधार संभव नहीं है। मानसिकता में बदलाव की शुरूआत बच्चों के माध्यम से और शिक्षा-दीक्षा में सुधार करके किया जा सकता है। बच्चों को घर से ही स्त्री का सम्मान करना सिखाया जाना चाहिए और इस क्रम में स्कूली पाठ्यक्रमों में बदलाव करना पड़े तो करना चाहिए।  

यमुना पर कार्यक्रम आपने किया ही क्यों ???




देश में एक अध्यात्मिक गुरू हैं.बड़ा नाम है। सफेद धोती में लिपटे रहते हैं..मुस्कुराते हैं तो उनके अनुयायी मानो मर ही जाएं उनपर..देश की अध्यात्म की और जीने की कला सिखाते हैं..पिछले दिनों उन्होंने पर्यावरण की रक्षा करने के लिए बनाई गई अदालत पर भी कई तरह के प्रश्न लगाए..मुझे न तो उस गुरू से शिकायत है क्योंकि वो तो बाजार में है और अपना माल बेच रहा है..अध्यात्म माल है और वो उसका बाजार लगाता है और बेचता है...क्योंकि वो एक संस्था है और जब संस्था है तो लाभ हानि और बाजार सब का जुड़ना स्वाभाविक है। मुझे शिकायत है देश के प्रधानमंत्री और नमामी गंगा और यमुना का प्रोजक्ट देख रही हमारे नेताओं की टोली से और उसकी पूरी दिखावटी फौज से..
आज जीमेल एकाउंट पर असलम दुर्रानी साहब का युट्यूब लिंक आया है..मस्ट वॉच... एनजीटी के खिलाफ यमुना की रिपोर्ट भेजी है..यूट्रयूब पर है...उस पूरी रिपोर्ट को एक अमेरिकन स्टाइल लड़का पढ़ रहा है। वो बार बार यमुना के हालात की बात कर रहा है और खुद की सफाई देता दिख रहा है..कुछ इनसैट की इमेज का उपयोग भी किया गया है. कि यमुना के हालात पहले से ही खराब थे ..हमने या हमारी संस्था ने कुछ नहीं किया..हमने कोई पेड़ नहीं काटे..और ब्ला ब्ला....करोड़ों जी मेल यूजर्स को मेल गई होगी...
रविशंकर उर्फ अध्यात्मिक गुरू.. उर्फ जीने की कला सिखाने वाले .दुनियाभर को अध्यात्म का पाठ पढाते हैं.. पर्यावरण के प्रति बहुत चिंतित भी दिखाई देते हैं..बड़ी बड़ी बातें करते हैं.लोगों को जीने का तरीका सिखाते हैं संस्था का नाम है आर्ट ऑफ लिविंग। चूंकि उनके अनुयायियों की संख्या करोड़ों में देश में और विदेश में है तो हमारे देश के छोटे बड़े सारे सरदार तक उनकी चरण वंदना करते नजर आते हैं.. हमारे यहां तो चंद्रास्वामी, आशाराम से लेकर स्वामी ओम तक की चरणवंदना होती है..पलक झपकते लोग उनके दिवाने हो जाते हैं फिर नेता भी तो आम आदमी ही है..भले ही इंजीनियर ही क्यों न हो या फिर देश का प्रधानमंत्री...देश को नदी स्वच्छ बनाने का संदेश देने वाला मरती हुई यमुना पर रोक के बाद तीन दिन का कार्यक्रम करता है...और जब पर्यावरण पर नज़र रखने वाली कोर्ट कार्यक्रम पर रोक लगाती है  तो उस समय उसकी सारी बातें तक मान लेता है..और मंत्री से लेकर संत्री तक कोर्ट के आगे हाथ जोड़े खड़े नज़र आते हैं।

एनजीटी पर दबाव बनाया जाता है और जब कार्यक्रम हो जाता है तो दाढ़ी के पीछे मुस्कुराता कुटिल चेहरा सामने आता है। वो जो लोगों को आर्ट ऑफ लिविंग सिखाता है..चेहरे पर मुस्कार बिखेरे हुए थेथरई पर उतर जाता है। सच्चा और पवित्र दिखने वाले इंसान के पीछे की कायरता बार बार लोगों के सामने आती है। फिर भी लोगों की आंख नहीं खुलती ...नमामि गंगे और और यमुना की सफाई का दावा करने वाली सरकार चुप्प होकर उसके सामने नतमस्तक है।
पिछले साल संस्था के कार्यक्रम की वजह से यमुना को बहुत नुकसान हुआ है।  उन्होंने दिल्ली की मरणासन्न यमुना के किनारे को तबाह कर दिया है। यमुना के अंदर बचे खुचे जीव जंतु.. यमुना का वेजिटेटिव एरिया.और यमुना नदी के बाढ का क्षेत्र सबकुछ बर्बाद हो चुका है। जिसे ठीक होने में कम से कम दस साल का समय लग जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि उस सांस्कृतिक महोत्सव के कारण 'बर्बाद' हुए यमुना के डूब क्षेत्र के पुनर्वास में 13.29 करोड़ रुपए की लागत आएगी और इसमें करीब 10 साल का वक्त लगेगा. एक विशेषज्ञ समिति ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को यह जानकारी दी है. जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने एनजीटी को बताया है कि यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र को हुए नुकसान की भरपाई के लिए बड़े पैमाने पर काम कराना होगा.

समिति ने यह भी कहा, "ऐसा अनुमान है कि यमुना नदी के पश्चिमी भाग (दाएं तट) के बाढ़ क्षेत्र के करीब 120 हेक्टेयर (करीब 300 एकड़) और नदी के पूर्वी भाग (बाएं तट) के करीब 50 हेक्टेयर (120 एकड़) बाढ़ क्षेत्र पारिस्थितिकीय तौर पर प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं."बाद में सात सदस्यों वाली एक विशेषज्ञ समिति ने एनजीटी को बताया था कि यमुना पर आयोजित कार्यक्रम ने नदी के बाढ़ क्षेत्र को 'पूरी तरह बर्बाद' कर दिया है.
देश की सबसे बड़ी पर्यावरण अदालत ने जब इस आध्यात्मिक गुरू रविशंकर के खिलाफ नाराज़गी जताई और पूछा कि 'क्या आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती. आपको लगता है कि आप जो मन में आया बोल सकते हैं?'

बड़ी बड़ी बाते करने वाले ये बाबा रविशंकर की भलमनसाहत और पर्यावरण के प्रति और देश के प्रति जागरूकता और समर्पण का नमूना ये देखने को मिला कि वह कहते पाए गए कि पिछले साल यमुना नदी के किनारे हुए तीन दिन के सम्मेलन के आयोजन के लिए सरकार और अदालत जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि यह तो सरकार और अदालत की गलती है कि उन्होंने इस कार्यक्रम की अनुमति दी.

जब कार्यक्रम पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी तब रविशंकर घुटनों के बल थे और जब अनुमति मिल गई और हर्जाने की भरपाई करने का समय आया तो रविशंकर अपनी  फेसबुक पोस्ट में लिखते है कि 'अगर किसी तरह का जुर्माना लगाना ही है तो केंद्र, राज्य और एनजीटी पर लगाया जाना चाहिए जिसने इस कार्यक्रम की अनुमति दी थी. अगर यमुना इतनी ही नाज़ुक और पवित्र है तो उन्हें वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल करने से हमें रोकना चाहिए था.'

Friday 17 March 2017

आई एम इंडियन..डोंट कॉल मी नेपाली...



कुछ बातें आपके अंदर गहरी बैठ जाती हैं..जिससे आप लाख पीछा छुड़ाना चाहें लेकिन  छुड़ा नहीं पाते..मुझे दिल्ली में २०वां साल है..लेकिन एख चीज़ जो नहीं बदली है वो है नार्थईस्ट के लोगों के प्रति हमारा व्यवहार...
चार दिन से ज्यादा हो चुका है लेकिन मेरे कान में आज भी आवाज गूंज रही है...आई एम इंडियन..डोंट कॉल मी नेपाली...
नॉर्थ ईस्ट से आए हमारे देशवासियों के साथ भेदभाव कोई नई बात नहीं है..चूंकि उनमे मंगोलियन जीन डोमिनेटिंग है इसलिए वो गोरे-गोरे चिकने चुपड़े से होते है उनकी नाक चपटी और आंख छोटी होती है..इसलिए वो थोड़े से अलग दिखते हैं...लेकिन उन पर और उनके भारतीय होने पर सवाल नहीं उठना चाहिए..लेकिन क्या करें..एक खास वर्ग है हमारे देश में जो कुएं का मेढ़क है..जो दरबे से बाहर निकला ही नहीं..पढ़ा लिखा तो है लेकिन वही मानसिकता है हमसे बेहतर कौन...हम सब जानते हैं...हमे देश क्या दुनिया भर की जानकारी है...ऐसे एक दो नहीं ढ़ढ़ने निकलिए एक दो नहीं लाखों मिलेंगे ज्ञानी..ठाकरे जैसे ज्ञानी..जिसका किसी पर बस नहीं चलता तो गरीब लाचार गरीब मजदूर बिहारी पर अत्याचार करता है...
सोमवार मेरे लिए कुछ ऐसा ही था...एकबार फिर मैं इस खासवर्ग के ज्ञानी को यह समझाने की कोशिश कर रही थी....बता दूं कि मैं बस में थी...दक्षिणी दिल्ली में...जहां एक नार्थ ईस्ट के दो युवाओं को बस के कंडक्टर ने नेपाली बुलाया था...और उसमें से एक ने उतनी ही तेज आवाज़ में जवाब दिया था ...आई एम नॉट नेपाली...आईएम इंडियन...। छोटी आंखें बड़ी करने की नाकामयाब कोशिश..बुदबुदाता रहा बहुत देर तक...तब तक मैं पीछे पलट चुकी थी और उस नॉर्थ ईस्ट के हैंडसम भारतीय का गुस्सा साफ साफ नजर आ रहा था...

मैं बस कंडक्टर के पास पहुंची..कंडक्टर ने बड़े प्यार से पूछा क्या हुआ..टिकट मिली नहीं क्या?
मैंने कहा मिल गई...दरवाजा खुलवाना है मैंने कहा नहीं...कुछ पूछना है. बोला पूछो..
मैंने कहा आपने चाय पी है कभी...जी रोज पीता हूं..खूब पीता हूं...मैंने पूछा कहां होती है चाय की खेती...बोला असम सहित नॉर्थ ईस्ट के कई ईलाकों में...मैंने कहा आप तो पढे लिखे मालूम होते हो...बोला जी मैडम..ग्रेजुएट हूं...मैंने पूछा फिर उसे नेपाली क्यों बुलाया?
मैंने दूसरे इंसान की तरफ ईशारा कर पूछा.. भाई अगर उस आदमी को बुलाना होता तो कैसे बुलाते...बोला जी हरी शर्ट वाला भाई ओए..ऐसे बुलाता...
फिर मैंने कहा ---फिर ये नेपाली क्यों..
वो समझ चुका था..मेरी बात कंडक्टर के समझ आ गई थी..लेकिन नॉर्थईस्ट वाला गर्म खून बुदबुदा रहा था...
आए दिन खबरें सुनने को पढ़ने को मिल जाती है कि नॉर्थ ईस्ट की लड़कियों को छेड़ा गया..लड़कों के साथ मारपीट की गई.. 
कुछ ऐसा ही वाक्या मेट्रो में हुआ था..खासवर्ग की महिलाएं अपनी पढ़ी लिखी बेटियों के साथ कश्मीरी गेट की मेट्रो में चढ़ रही थीं..नॉर्थ ईस्ट की बच्चियों का ग्रुप गलती से गलत रूट की मेट्रो में चढ़ गया था..दोनों ही झगड़ते हुए मेट्रो में घुसी...खासवर्ग वाली उन्हें गंदी गंदी उपमाएं दिए जा रही थी..जिसे वो लड़कियां समझ नहीं पा रहीं  थी क्योंकि वो हिंदी तो बोल रहीं थी लेकिन अंदाज..थोड़ा हटके वाला था... वो महिलाएं उन स्मार्ट खूबसूरत लड़कियों की शान में हर वो अच्छी बातें बोल चुकीं थी जो किसी पढी लिखे से उम्मीद नहीं की जा सकती...वो महिलाएं उन बच्चियों को बाहर से आई धंधे करने वाली तक कह चुकी थीं...वो बच्चियां सिर्फ एक ही बात कह रहीं थी...वी आर प्राउड इंडियंस...
उस खास वर्ग महिला को कई लोग तबतक समझा चुके थे..चुप हो जाइए..आपके साथ भी बेटियां हैं..ये बी किसी की बेटियां है..कोई छोटे कपड़े पहने है तो विदेशी नहीं है..उसका चाल चलन खराब नहीं हो जाता है...लेकिन वो नॉन स्टॉप बोल रही थी..मेरी सब्र की सीमा जवाब दे रही थी...


मैंने पूछा..क्या कहा इन्होंने..एक बच्ची बोली दीदी...ये हमलोगों के कपड़े से लेकर हमसभी को विदेशी और गंदी लड़कियां कह रही हैं..बच्ची ने सारी बात अंग्रेजी में बोली...सामने की कुस्री पर बैठी उस महिला को लगा कि वो लड़कियां शिकायत कर रहीं है...वो फिर चिल्लाने लगी...उस महिला के साथ तीन कॉलेज जाने वाली लड़कियां थीं...मैंने सब्र का बांध टूटने के बाद पूछ ही लिया...आपलोग पढ़ती हैं..बोलीं हा...सभी ने कॉलेज के नाम तक बता दिए..मैंने पूछा ये आपकी कौन हैं..बोली ...मां... मैंने कहा आप इन्हें समझाइए कि वो गलत बोल रही हैं...उसके कपड़े छोटे हैं..वो हम जैसी नहीं दिख रहीं हैं तो वो बाहर से आई धंधा करने वाली नहीं है...जो वो लगातार बोल रहीं है...आपलोगों को तो समझ होनी चाहिए कि आप बताएं उन्हें...उस औरत को एहसास हो चुका था लेकिन हार कैसे मानती..क्योंकि वो भी एक ज्ञानी बिरादरी से ही थी...मैंने कहा आप इतनी देर उन्हें गलत बोल रहीं हैं...लेकिन उन्होंने आपकी एक बात नहीं बोली..उनलोगों ने बस इतना कहा...वी आj प्राउड इडियंस....

अब समय आ चुका है कि कोई नॉर्थ ईस्ट के लोगों के खिलाफ कुछ बोले तो हमें आगे आना चाहिए..पिछले २० सालों में दिल्ली में भले ही बहुत बदलाव होते मैंने देखे लेकिन एक चीज जो नहीं बदली है वो है नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति हम लोगों की नासमझी...जब मैं दिल्ली आई थी तो लोग अक्सर एक दूसरे को बिहारी है क्या? कह कर बुलाते थे..अब वो थोड़ा कम हुआ है...लेकिन नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति दुर्व्यवहार आज भी जस का तस बना हुआ है...

Sunday 29 January 2017

यमुना को आंदोलन बनाकर ही साफ किया जा सकता है..



पूजा मेहरोत्रा
यमुना नदी देश की सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल है और दिल्ली में नाला बन कर बह रही है..मेट्रो से गुजरते हुए जब माएं अपने बच्चों को बताती हैं देखो यमुना नदी... तो बच्चे मां की ओर देखते हुए पूछते हैं..क्या ये नदी है?




ये तो कालिंदी के पास गुजरता हुआ नाला लग रही है...मां फिर कहती है वो कालिंदी के पास वाला जिसे आप गंदा नाला कह रहे हो वो भी यही यमुना है..
यमुना अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ले रही है। बरसात के दिनों को छोड़ दें तो दिल्ली में तो कम से कम इस नदी में पानी नजर ही नहीं आता। हां, गंदा नाला जरूर कहा जा सकता है। वास्‍तव में दिल्ली से गुजरते हुए इसमें केवल गंदगी ही बहती हुई मिलती है। इस गंदगी का परिणाम यह है कि नदी में ऑक्‍सीजन नाम मात्र को भी नहीं रह गया है। जिसके कारण यमुना में रहने वाले जीव जंतु समाप्‍त होते जा रहे हैं। इस नदी से उठने वाली सड़ाध से इसे पार कर के आने जाने वाले तो फटाफट भागते हैं लेकिन मामला तो और भी गंभीर है। पर्यावरण से जुड़ी एजेंसी का दावा है कि यमुना किनारे उगाई जा रही सब्जियां तक जहरीली हो चुकी हैं और इसके किनारे पर रहने वालों में भी विभिन्‍न प्रकार की गंभीर बीमारियां घर कर रही हैं।
यमुना की दिन ब दिन बिगडती हालत पर पिछले 30 वर्षों से लगभग हर सरकार अपनी-अपनी राजनीति कर रही है। यमुना की साफ सफाई के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए बहा दिए गए हैंA इसके बावजूद इस नदी में पानी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि साल दर साल पानी और गंदा और यमुना की स्थिति और खराब हुई है। यमुना की बेहतरी तो दूर की बात है इसके हालात में जरा भी अच्‍छाई की ओर परिवर्तन होता नहीं दीख रहा है।
यमुना के उद्धार के लिए  दिल्ली सरकार ने यमुना एक्‍शन प्‍लान वन, टू और थ्री जैसी कई योजनाएं लागू की गई हैं लेकिन इसके पानी के किस्‍म में कोई सुधार नहीं हुआ हालत जस की तस बनी होती तो कोई बात होती यहां हालत बद से बदतर ही होती जा रही है। ऐसा तब हो रहा है जब यह मामला दिल्‍ली देश की राजधानी का है और यहां केंद्र और राज्‍य सरकार तथा संसद है और देश के सभी पैरोकार यहां बैठकर बडी बडी योजनाएं बनाते हैं। यमुना का मामला आम जनता की अदालत से देश की सर्वोच्‍च अदालत में वर्षों से विचाराधीन ही बना हुआ है।

 ग्रीन ट्रिब्‍यूनल कोर्ट ने यमुना में गंदगी फेंकने वालों पर पांच हजार तक जुर्माने का ऐलान तक कर दिया लेकिन क्या सचमुच जुर्माना लगाया जा रहा है?  याफिर एनजीटी का यह फैसला भी अन्‍य फैसलों की तरह बस अखबारों और खबरिया चैनलों की सुर्खियां बटोर कर रह गईं. हमने कई-कई बार यमुना किनारे की यात्रा भी की। हमने जो देखा वो रुला देने वाला था। कोई यमुना में फूल डाल रहा था तो कोई मीठा चढा रहा था और कोई आरती कर रहा था, कुछ लोग तो अपने घर की पूजन सामग्री लाकर यमुना में विसर्जित कर रहे थे। जबकि यमुना के किनारे जगह-जगह मां दुर्गा, गणेश, लक्ष्मी सहित कई देवी देवताओं की मूर्तियां बिखरी पड़ी मिलीं. जगह जगह पूजन सामग्री, घड़े, कपड़े तक दिखे.
 जबकि वजीराबाद बैराज से महज १०० मीटर की दूरी पर यमुना नजफगढ़ नाला यमुना में गिर रहा है। लगभग आधी दिल्ली की गंदगी लिए ये नाला साफ सुथरी यमुना के पानी को विशैला और खुद की तरह बदबूदार बना रहा है. एनजीटी के आदेश का पालन होता कहीं नहीं दिखाई देता है।  यमुना की सफाई की जिम्मेदारी केद्र से लेकर राज्य सरकार पर तो है ही देश के नागरिक भी उतने ही जिम्मेदार हैं
 क्‍या ऐसे साफ हो पाएगी यमुना ? ऐसे कई सवाल मेरे अंदर उमड़ घुमड़ रहे हैं। मुझे पानी से जितना डर लगता है उतना ही नदियों से प्‍यार है।
यमुना वजीराबाद बैराज से ओखला बैराज तक यमुना 22 किलोमीटर तक फैली है और शहर के बीचों-बीच बहती है। यह 22 किलोमीटर पूरी यमुना की 1376 किलोमाटर का महज 2 फीसदी ही है। वैज्ञानिकों और जानकारों का कहना है कि यमुना जितनी बदहाल दिल्‍ली में होती है उतनी अपने 14 सौ किलोमीटर के सफर में कहीं नहीं होती है। यहां प्रतिदिन औसतन 3800 मिलियन लीटर सीवेज निकलता है। दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट करने वाले संयत्रों की क्षमता 2460 मिलियन लीटर प्रतिदिन है। जिसमें से महज 1558 एमएलडी ही साफ हो पाता है। इस प्रकार औसतन करीब 2242 मिलियन लीटर सीवेज की गंदगी को बिना साफ किए हुए यमुना मे बहा दिया जाता है।
 मानसून के महीनो अलावा वजीराबाद बैराज से पानी कभी भी यमुना में नहीं डाला जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि दिल्ली में पहले ही पानी की बहुत कमी होती है और यमुना ही पीने का पानी का सहारा है। इसका परिणाम यह होता है कि वजीराबाद के बाद यमुना में जो भी नाले गिर रहे है वह केवल शहर की गंदगी ही होती है। यदि यमुना में साफ पानी छोडा जाता तो शायद वह गंदे नाले के पानी को वह बहा ले जाता चूकि पानी वहां रोककर पीने योग्य बनाया जाता है इसलिए यमुना वहीं शांत हो जाती है।

योजनाएं बनती रहीं यमुना मैली होती रही

पिछले 30 सालों में यमुना की सफाई के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई है। जल बोर्ड द्वारा वर्ष 1998-99 में 285 करोड रूपए खर्च किए जबकि 1999 से 2004 के बीच जल बोर्ड ने 439 करोड रूपए खर्च किए गए है। यमुना की सफाई के नाम पर डीएसआईडीसी ने लगभग147 करोड रूपए खर्च किए है। यमुना सफाई अभियान के नाम पर दिल्ली में पब्लिक टॉयलेट और दूसरे मदों में 171 करोड रूपए खर्च किए गए। इस लागत में पूरी दिल्ली में लगभग 558 कम कीमत के पब्लिक टॉयलेट बनाया। आज इनमें से कई टॉयलेट प्रयोग में नहीं है, कई का कहीं अस्तित्‍व ही नजर नहीं आता है। कुछ ऐसी जगह बनाए गए हैं जहां कोई जाएगा भी नहीं। बस्तियों को ध्‍यान में रखकर बनाए गए होते तो महिलाओं को खुले में शौच जाने की जरूरत नहीं होती। दिल्‍ली की सरकारी कॉलोनियों के इर्द गिर्द बसी बस्तियों के आस पास यदि आप गुजर जाएं तो आपको रास्‍तों पर ही बच्‍चे गंदगी करते मिल जाएंगे। गरीब बस्‍ती वालों को टॉयलेट के प्रति सरकार और एजेंसियों ने सजग नहीं किया। स्‍वास्‍थ्‍य की जानकारी भी नहीं दी। कही पानी की व्‍यवस्‍था नहीं है तो कहीं सफाई की व्‍यवस्‍था नहीं है।

 कितनी पवित्र है यमुना
सेंट्रल पॉलुशन कंट्रोल बोर्ड ने 1,376 किलोमीटर लंबे यमुना के स्ट्रेच को जिओग्राफिकल और इकोलोजिकल सेगमेंट के हिसाब से पांच भागों में बांटा है। हिमालयन सेगमेंट यानि यमनोत्री से ताजेवाला तक 172 किलोमीटर स्ट्रेच को क्लीन फेज की श्रेणी में रखा है। जबकि अपर स्ट्रेच यानि ताजेवाला से वजीराबाद तक फैले 224 किलोमीटर के स्ट्रेच को थोडा साफ स्ट्रेच की श्रेणी में रखा गया है। दिल्ली का 22 किलोमीटर का वजीराबाद से ओखला बेराज तक के स्टेज को सबसे ज्यादा प्रदूषित श्रेणी में रखा है। यूट्रोफिकेटेड स्टे्रच 490 किलोमीटर यानि ओखला से चंबल तक की दूरी को कहा है। इस स्ट्रेच में यमुना दिल्ली, मथुरा और आगरा से होकर गुजरती है। यमुना पश्चिमी किनारे पर बसा दिल्ली सबसे अधिक जनसंख्या वाला और महत्वपूर्ण शहर है। दिल्ली में यमुना के दोनों किनारों पर बस चुकी है। यमुना यमुनोत्री से 425 किलोमीटर की दूरी तय करके दिल्ली के उत्तर में गांव पल्ला से प्रवेश करती है। ओखला के निकट जैतपुर में उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करती है। दिल्ली में इसकी चैड़ाई एक किलोमीटर से लेकर 4.5 किलोमीटर तक फैली है।

यमुना गंदे होने के सफर में सात राज्यों से होकर गुजरती है। यमुना अपना सबसे लंबा सफर मध्य प्रदेश में 40.6 फीसदी तय करती है, फिर राजस्थान में 29.8 फीसदी, उत्तरांचल और उत्तर प्रदेश में अपने सफर का 21 फीसदी सफर पूरा करते हुए हरियाणा में 6.1 और हिमाचल प्रदेश में 1.6 और सबसे कम सफर 0.4 फीसदी सफर दिल्ली में तय करती है।  यमुना की ऊंचाई समुद्रतल से ग्लेशियर से 3320 मीटर है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में सोनीपत, रोहतक और गुडगांव से घिरा है। पूर्व की ओर से उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद से घिरी है। यमुना दिल्ली की पूर्वी सीमा से होती हुई उत्तर दक्षिण की दिशा में बहती है।  दिल्ली में यमुना की लंबाई लगभग 50 किलोमीटर है। नदी की चैडाई जगह के हिसाब से घटती बढती रहती है। यमनोत्री से इलाहाबाद तक अगर इसकी लंबाई पर नजर डालें तो यह लगभग 1400 किलोमीटर है। यमुना में चंबल, हिंडन, केन और साहिबी नदी मिलती है। कहने को तो यमुना देश की सबसे पवित्र माने जाने वाली नदियों में से एक है। यमुना गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यमुना किनारे आने वाले दिल्ली के अलावा प्रमुख राज्य हैं उत्तरांचल, हिमांचल, उत्तर प्रदेश और हरियाणा।
यमुना में प्रदूषण हरियाणा के ताजेवाला से शुरू होता है। ताजेवाला से हीं यमुना नदी से दो नहरें निकाली जाती है। एक नहर पश्चिमी यमुना केनाल और दूसरी पूर्वी यमुना केनाल कही जाती है। ताजेवाला के पास ही अब यमुना पर एक नया अधिक क्षमता का बांध बना कर बचे खुचे पानी को और भी अधिक व्यवस्थित तरीके से रोकने की व्यवस्था की गई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि मानसून के तीन महीनों को छोड कर यमुना नदी का अधिकतर पानी इन्हीं दोनों नहरों के मार्फत हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सिचाई और पीने के पानी के लिए उपयोग किया जाता है। पूर्वी यमुना केनाल का पानी उत्तर प्रदेश के काम आता है जबकि पश्चिमी केनाल का पानी हरियाणा होते हुए दिल्ली आता है। दिल्ली के हैदरपुर जल संयत्र तक पहुचने के पहले पश्चिमी यमुना केनाल यमुना नगर, करनाल से गुजरता हुआ आता है। पश्चिमी यमुना केनाल से निकलने वाले नाला नंबर 2 और 8 से मिलने वाला पानी यमुना में जाकर मिलता है। इससे यमुना नदी में पानी की बढोतरी होती है। पश्चिमी यमुना केनाल से एक और नहर निकलती है जो करनाल से करीब 80 किलोमीटर दूर वापस आकर इसी केनाल में मिल जाती है। इस केनाल से मिलने वाले पानी का इस्तेमाल हरियाणा के खेती किसानी के लिए किया जाता है। यमुना नगर से निकलने वाली सारी गंदगी बिना किसी तरह से साफ किए इसी केनाल में बहा दी जाती है। यह सारी गंदगी पश्चिमी यमुना केनाल में मिल जाती है। इसी कारण कई बार हैदरपुल जल संयत्र उत्तरी और पश्चिमी दिल्ली के बहुत बडे भाग को पीने का पानी सप्लाई करता है। इस नहर में पानी का स्तर गिरने या उसमें अधिक प्रदूषण होने के कारण कई बार पानी को साफ करना संभव नहीं हो पाता उससे दिल्ली को पानी की आपूर्ति में भी बाधा पहुंचती है।

इसके अलावा पानीपत शुगर मिल और शराब बनाने वाले कारखाने से निकलने वाली गंदगी पास में इस्तेमाल नहीं की जा रही पुरानी कच्ची नहर मे बहा दी जाती है। इस नहर के किनारे कच्चे हैं इसलिए यह गंदगी बहकर पश्चिमी यमुना केनाल में मिल जाती है और जब ऐसा होता है तो पश्चिमी यमुना नहर के पानी में बायोलोजीकल ऑक्सीजन डीमांड में भारी बढोतरी हो जाती है। फिर यह पानी हैदरपुर जल संयत्र में पहुंचता है तो कई बार इस पानी को पूरी तरह साफ कर पाना असंभव हो जाता है। हरियाणा में होने वाली खेती में बडे पैमाने पर रसायनिक खादो और दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इनके प्रभाव से भी यमुना में प्रदूषण बढ रहा है। हरियाणा में खेती किसानी प्रगति के साथ साथ इन रसायनिक खादो और दवाओं मे भी सार दर साल बढोतरी हो रही है और इसका प्रभाव भी यमुना में बढते प्रदूषण में देखा जा सकता है।
यमुना के पानी पर देश के लगभग ६ करोड लोग निर्भर करते हैं। यमुना में हर साल औसतन 10,000 क्यूबिक मीटर पानी बहता है। जिसमें से 4400 क्यूबिक मीटर पानी का इस्तेमाल हो पाता है बाकी बर्बाद हो जाता है। इस 4400 क्यूबिक मीटर पानी का लगभग 96 फीसदी पानी खेती के काम आता है। दिल्ली के 70 फीसदी आबादी को पानी यमुना से मिलता है। दिल्ली में लगभग पीने के पानी समेत आम जीवन के उपयोग के लिए लगभग 70 फीसदी लोग यमुना के पानी पर निर्भर करते हैं। दिल्ली में पानी की सफाई के लिए लगाए गए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट पानी में से पेस्टीसाइट नहीं निकाल पाते हैं। दिल्ली के बनाए गए जल संयत्रों में इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है कि वह पानी में मिले हुए रसायनिक दवाओं के प्रभाव को हटा सकें। पीने के लिए उपयोग किए जा रहे वाटरवक्र्स पानी में मिले पेस्टीसाइट को पहचान भी नहीं पाता है।


हर साल इन शहरों में लाखों की संख्या में लोग हैजा पीलिया जैसी बीमारियों से पीडित होते हैं। यह ऐसी बीमारियां है जो साफ पानी की आपूर्ति कर आसानी से रोकी जा सकती हैं। इस खराब पानी के इस्तेमाल करने का असर बच्चो और गरीबों पर पडता है क्योंकि वह इन नदियों के तलहटियों में डेरा डाले हुए हैं। केद्रीय प्रदूषण जांच बोर्ड ने यमुना के पानी की जांच के दौरान इसमें इंडोसल्फेन के प्रमाण पाए थे। इसके पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एच सी अग्रवाल द्वारा किए गए एक अध्ययन के दौरान यमुना के पानी में डीडीटी पाए जाने के भी प्रमाण मिले थे। यमुना नदी के पानी में पाए गए रसायनिक तत्वों के बाद इस बात की आवश्यकता है कि ताजेवाला से इलाहाबाद तक के पूरे रास्ते में इन रसायनिक तत्वों के बारे में जांच की जाए।