Tuesday 27 January 2015

आज मेहू के मन की बात, उसे उसका प्‍यार मिले

मासूम ‘मेहू’ के लिए दुआ कीजिए, उसे उसका प्‍यार मिले

आज जब पूरा देश मोदी और ओबामा की मन की बात सुन रहा है। ठीक उसी वक्‍त मेहू (मेरे पड़ोस की लड़की) मेरे बालों को सहलाते हुए, डबडबाई आंखों और रुंधे गले के साथ अपनी मन की बात कर रही थी। उसकी डबडबाई आंखें मुझसे कई कई सवाल एक साथ कर रहीं थीं। मैं निरुत्‍तर शून्‍य देखने को मजबूर खुद से कई सवाल कर रही थी।
मेरी तबियत कई दिनों से खराब है। मुझे बुखार है। मेहू आकर रोज मेरे लिए कुछ पका जाती है और अपनी चहकती आवाज से दिल बहला देती है। हमेशा चहकने वाली मेरी प्‍यारी ‘मेहू’ धीरे धीरे कुछ शांत और गुमसुम सी रहने लगी है। उसकी आंखे कुछ तलाशती रहती हैं। आंखें बात बात पर डबडबा जाती हैं। मैं चाह कर भी उससे कुछ नहीं पूछ रही थी पता नहीं क्‍या परेशानी है, पूछूं तो कहीं कुछ गलत न हो जाए। ‘मेहू’ नाम उसी ने रखा है जिससे वो प्‍यार करती है। और अब उसे यह नाम इतना अच्‍छा लगता है कि वह यही सुनना चाहती है। फिर मैंने उसकी इस मांग को पूरा करने में समय न लगाते हुए उसे मेहू बुलाया। अजीब चीज है ये प्‍यार भी। एक बार तो खुशियां देता है उसके बाद आंसू ही आंसू।  
आज मेहू ने मुझे थोड़ा ठीक देखा तो मानों फट पड़ी। सिर सहलाते हुए पूछा- दीदी मैं ही क्‍यों ? कई लड़कियां होगी उसके आस पास उसने मुझे क्‍यों, बोलते बोलते चुप सी हो गई।
मैंने उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर पूछा बताओ क्‍या चल रहा है तुम्‍हारे मन में…….
क्‍यों परेशान हो। 
बोली दीदी मुझे ‘मेहू’ बुलाइए। उसकी आंखें झरने की तरह बह रही थीं। बीच बीच में सिसकियां। उसके आंसू मुझे अंदर तक कब रुलाती चली गईं पता ही नहीं चला।
 मैंने उसे गले लगाया और कहा रो लो मेहू।
उसने सिसकियों और रुंधी आवाज के बीच अपनी प्रेम कहानी सुना दी। प्‍यार है तो बड़ा फिल्‍मी लेकिन प्‍यार तो प्‍यार ही है न….! उसके मन के बोझ को कम करने की कोशिश में मैंने कहा, लड़के ऐसे ही होते हैं। भूलने की कोशिश करो उसे।
  उसने मेरी बात को झट से काटते हुए कहा दीदी उसकी आंखें सच बोल रही थीं। मुझे उसपर विश्‍वास है। उसने कहा था कि वो सोमवार को आएगा।
 हर सोमवार को मेहू पागलों की तरह उसका, उसके फोन का और उसके किसी भी तरह के संदेश का इंतजार करती है। फोन हाथ से हटने नहीं देती।
दीदी उसने कहा था कि हम बहुत सारी बातें करेंगे।
मैंने पूछा तुम्‍हें विश्‍वास है कि वह सच्‍चा इंसान था?
 बोली हां दीदी ! बहुत सच्‍चा। मैंने पूछा सच्‍चा होता तो जाता ही नहीं, जिंदगी में आगे बढ़ो भूल जाओ। वो जा चुका और वो कभी नहीं आएगा।  जो चले जाते हैं वो वापस नहीं आते । आज जी भर के रो और भूल जाओ उसे।
उसकी सिसकियां मुझे अंदर तक तोड़ती चली गईं, जब उसने कहा ‘दीदी मैंने किसी का कुछ गलत नहीं किया फिर ये सजा मुझे क्‍यों दी’ उसने कहा था हम साथ साथ हैं, हमारे बीच कोई नहीं। दीदी उसकी बातें मुझे सच्‍ची लगती हैं। दीदी उसने मेरे ‘माथे को चूमा था’ आप ही कहती हैं न इसका मतलब है कि वह इंसान आपसे बहुत प्‍यार करता है।
मैं चुप थी, क्‍योकि बातों बातों में जब उसने मुझसे पूछा था कि जब कोई बात करते हुए आपके माथे को चूमे तो क्‍या मतलब समझना चाहिए।
मैंने पूछा और कुछ बात हो तो बताओ, मेरी नजरें तिरछी थीं, लेकिन उसकी आंखों में विश्‍वास।
आंसू पोछते हुए बोली दीदी हमने तो सिर्फ दोस्‍ती का हाथ बढ़ाया था, प्‍यार का इजहार उसने किया था। उसने मुझे मजबूर किया कि मैं उसे प्‍यार करूं। और अब जब कर रही हूं तो
मैंने समझाने का प्रयास किया परेशान होगा, व्‍यस्‍त होगा, आ जाएगा।
दीदी सोमवार को आएगा कह के गया था दो सोमवार बीत गया, सिर्फ इंतजार कर रही हूं। क्‍या ऐसा होता है प्‍यार
मैं चुप।  
दीदी, उसने कहा था वो मेरे साथ है, हमेशा।
फिर क्‍यों नहीं आया वापस?
मैंने उसके विश्‍वास को विश्‍वास करते हुए उसे कहा समय दो हो सकता है सचमुच परेशान हो?
उसने रोती हुई आंखों को पोछते हुए कहा दीदी मैं उसे बताउंगी प्‍यार क्‍या होता है? मैं करूंगी उसका इंतजार। अब लोग मुझे मेहू के नाम से जानेंगे। उसे पता होना चाहिए हम लड़कियां गुडि़या नहीं है। हमारा दिल है।

मुझे कोई प्‍यार करेगा ऐसी चाह मेरी नहीं थी, भगवान से बोलो न कि अगर अब मिलने नही ंआया तो किसी को पता भी नहीं चलेगा और मैं सो जाउंगी हमेशा के लिए।  गहरी शांति.... मैंने उसके मुंह पर हाथ रख दिया और कहा अगर वो सच्‍चा है तो जरूर आएगा। अपने प्‍यार पर विश्‍वास करो।   

मेहू की डबडबाई आंखें मुझे आंख बंद करने नहीं दे रही हैं। मेरा दिल रो रहा है।
बेचारी मासूम मेहू। काश उसे उसका प्‍यार मिल जाए। 

Sunday 25 January 2015

आज सिर्फ मन की बात

प्रधानमंत्री हर महीने देशवासियों से करते हैं मन की बात। और पत्रों द्वारा देशवासी ही नहीं विदेशों में बैठे देशवासी भी पहुंचा रहे हैं अपनी मन की बात। यही नहीं पत्रों के साथ आता है चंदा। किसी ने  भेजा है 10 रुपए तो किसी पत्र में निकला है 50 रुपए। स्‍वच्‍छता अभियान के लिए विदेश से भी आ चुका है 50 डॉलर। हजारों की संख्‍या में हर दिन आ जाते हैं पत्र। पत्र में होती हैं शिकायतें, सुझाव, परेशानियां,समस्‍याएं और उनके समाधान की बात। एक एक पत्र को न केवल पढ़ा जाता है बल्कि उन पत्रों का रिकॉर्ड भी रखा जाता है।

पूजा मेहरोत्रा

गण्‍ातंत्र दिवस की आप सभी साथियों को बधाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 तारीख को एक बार फिर मन की बात करेंगे। इसबार उनके साथ अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा भी साथ होंगे। जब से आकाशवाणी पर प्रधानमंत्री ने मन की बात करनी शुरू की है आकाशवाणी और डाक विभाग के दिन फिर गए हैं। दोनों ही देश के सबसे बड़े सूचना केंद्र गर्त में जा रहे थे अब चर्चा में हैं। ईमेल, सोशल मीडिया के जमाने में दोनों का सफल उपयोग किया जा रहा है। एफएम रेडियो और इंटरनेट रेडियो के जमाने में पहचान खो रही आकाशवाणी एक बार फिर घर घर पहुंच गया है। देश का कोई ऐसा कस्‍बा मोहल्‍ला नहीं बचा है जहां से प्रधानमंत्री से अपनी मन की बात करने के लिए पत्र न आ रहे हों। हर दिन मन की बात के लिए हजारों पत्र पहुंच रहे हैं। दिन में तीन बार डाक आती है और हर बार सौ दो सौ पत्र होते हैं। कभी कभी यह संख्‍या हजार से दो हजार दिन की भी होती है। आकाशवाणी के दस बेहतरीन कर्मचारी मन की बात को सफल बनाने में दिन रात जुटे हैं। हर एक पत्र को संजीदगी से न केवल पढा जाता है बल्कि उसे दो दो बार रजिस्‍टर कर हर एक पत्र का रिकॉर्ड भी रखा जाता है। पत्र में होती हैं शिकायतें, सुझाव, परेशानियां,समस्‍याएं और उनके समाधान की बात। पंजाब ही नहीं महाराष्‍ट्र भी है ‘नशे की चपेट’ में। तेलंगाना, आंध्र या यूं कहें पूरा दक्षिण भारत ‘दहेज प्रथा’ से पीडि़त है। सेवेन सिस्‍टरर्स राज्‍यों की नजरअंदाजी का क्‍या पड़ रहा है युवाओं पर प्रभाव। क्‍या है वहां की मूल भूत समस्‍याएं।  खेती किसानी की समस्‍याएं। बिहार, उत्‍तर प्रदेश, राजस्‍थान, माहाराष्‍ट्, कोलकाता में सरकारी से लेकर निजी कंपनियों में हो रहे घोटाले, कैसे कैसे भ्रष्‍टाचार। सबकी पोल एक पत्र के माध्‍यम से खुल रही है।

 हर दिन हर जगह की कहानी फर्स्‍ट हैंड प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच रही है। देश की छोटी से लेकर बड़ी समस्‍याओं का अंबार पीएमओ तक है। और अब  पीएमओ देश के हर आम आदमी से जुड़ चुका है। अब न केवल प्रधानमंत्री तक देशवासियों की पहुंच आसान हो गई है बल्कि हर किसी की बात प्रधानमंत्री तक पहुंच रही है। देशवासी प्रधानमंत्री की इस पहल से काफी प्रसन्‍न हैं। 

Friday 23 January 2015

आयरन लेडी इरोम से डरती है सरकार और पुलिस, खेल रही है गिरफतारी और रिहाई की आंख मिचोली


इरोम की मां का त्‍याग भी बड़ा है
पूजा मेहरोत्रा
इरोम ‘’शर्मिला चानू आयरन लेडी। जी हां, बस नाम ही काफी है। इरोम देश ही नहीं पूरे विश्व में इतनी लोकप्रिय हो चुकी हैं कि अब उन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। 14 साल से भूख हड़ताल कर रही इरोम को यदि आज का गांधी कहा जाए तो वह अतिश्योक्ति नहीं होगी। वर्ष 2000 में जब उन्होंने भूख हड़ताल की शुरुआत की थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह 27 साल की लड़की अपने प्रदेश में अमन शांति के लिए सरकार से इतनी बडी जंग लड़ेगी। इरोम के भूख हड़ताल की वजह उनके या उनके परिवार वालों के साथ हुआ कोई अत्याचार नहीं, बल्कि सुरक्षा बलों द्वारा मालोम के बस स्टैंड पर अंधाधुध गोलियों से मरे उन दस लोगों के लिए इंसाफ की मांग थी जिसमें सुरक्षा बल ने 62 वर्ष की वृदघ् महिला से लेकर 18 साल के एक राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार प्राप्त युवक को अपनी गोलियों भून डाला था। मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून अफस्पा के इस विशेषाधिकार को समाप्त किए जाने की मांग को लेकर 2000 शुरू की गई भूख हडताल की जंग आज तक जारी है। इरोम को हर साल कोर्ट रिहा करने का आदेश देती है और पुलिस हर दूसरे दिन गिरफतार कर लेती है। इरोम को बुधवार को रिहा किया गया और आज फिर जेल में ढकेल दिया गया। इससे पहले 20 अगस्त 2014 को मणिपुर की अदालत ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया था तो पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। अभी इस खुशी को लोग आत्मसात भी नहीं कर पाए थे कि 22 अगस्त को फिर से गिरफतार कर लिया गया। कुछ ऐसा ही उनके साथ आज भी किया गया है। मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू पर आरोप हर बार यही लगाया जाता है कि उन्‍होंने स्वास्थ्य परीक्षण के लिए पहुंची पुलिस और मेडिकल टीम से स्वास्थय जांच कराने से इनकार कर दिया था। पिछले 14 वर्षों से इरोम को जबरन नली के सहारे खाना खिलाया जाता रहा है। इरोम को आइपीसी की धारा 309 के तहत पिछले 14 वर्षों से हिरासत में रखा जा रहा है। इस धारा के मुताबित आत्महत्या के प्रयास के लिए एक साल से अधिक कैद में किसी को नहीं रखा जा सकता है। जिसकी वजह से हर वर्ष इरोम को एक दिन के लिए रिहा कर अगले दिन फिर हिरासत में ले लिया जाता है। इसलिए इरोम को रिहा किया जाना और अगले ही दिन उसे खाना न खाने के विरोध में गिरपफतार कर लिया जाना कोई अकस्मात घटना नहीं है। इरोम के प्रशंसकों की बढती तादाद ने सरकार को भी अब सोचने पर मजबूर कर दिया है। चौदह साल में हर एक साल बाद इरोम एक दिन के लिए रिहा होती रहीं हैं लेकिन 21 जनवरी को इरोम को रिहा किया जाना एक चौंकाने वाली बात थी लेकिन जब उन्‍हें आज गिरफ़तार किया गया तो प्रशासन का डर साफ साफ दिखा। इरोम के प्रशंसकों की संख्या चौगुनी हो चुकी है। पिछले दो बार से इरोम के साथ पूरा देश और राष्ट्रीय मीडिया भी है। इरोम की बार बार होने वाली गिरफतारी और रिहाई पर राष्‍ट्रीय मीडिया ने बहस शुरू कर दी है। उनके रिहा होने से लेकर गिरफतारी तक के एक एक पल को पूरी दुनिया को दिखाया जा रहा है।
जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के छोटे से वार्ड में कुछ किताबों और पौधों के साथ इरोम चानू शर्मिला को पिछले चौदह सालों से नजरबंद रखा जा रहा है।  वह जब भी खुली हवा में आती हैं लड़खड़ाती आवाज में खाना मांगती हैं।  मैं भी खाना खाना चाहती हूं। मेरी मदद करिए। आप मेरे संघर्ष में शामिल हो जाइए। जब तक दमनकारी आफसपा की समस्या के लिए हम एक जुट होकर प्रयास नहीं करेंगे तब तक हमपर इसी तरह अत्‍याचार होता रहेगा। हमारे भाई बहन मांए मारी जाती रहेंगी। हमसब एक जुट होकर रह सकें, साथ खा सकें साथ पी सकें और साथ ही सो सकें। इसके लिए एकजुटता जरूरी है।  मैं भी हर इंसान की तरह ही सामान्य हूं जो भोजन करना चाहता है। मैं भी भोजन करना चाहती हूं।
गुरुवार को जैसे ही इरोम के रिहा होने की खबर आई भारी तादाद में समर्थकों ने इरोम की जयकार की। पूरे दिन इरोम से मिलने वालों का तांता सा लगा रहा। इरोम इंफाल के बीच हर स्थित इमा कैथेल यानि माताओं का बाजार में ही ठहरती आ रही हैं। जहां उनसे मिलने वालों और जयकार करने वालों की संख्या समय के साथ बढती ही चली जा रही है। इरोम के रिहाई की खबर आते ही पूरा हर मानो रुक जाता है। महिलाएं उन्हें देखते ही चिल्लाने लगीं। युवा उनकी तस्वीर उतारने में लगे थे। इरोम का रीर और उनकी दुर्बलता उनका साथ नहीं दे रही थी फिरभी उन्होंने प्रदेशवासियों को संदेश दिया अब जागने का वक्त आ गया है, आइए संघर्ष में मेरा साथ दीजिए ताकि हम सभी नागरिक जीवन के अधिकारों का उपयोग कर सकें। मैं इतनी बडी संख्या में अपने प्रशंसकों को देख कर भावुक हो रही हूं। कई लोग मेरे इस संघर्ष को प्रचार पाने मात्र का एक जरिया मानते हैं। क्या वे एक दिन अपने लिए नहीं अपने देशवासियों के लिए भूखा रहने की हिम्मत रखते हैं? क्या वे जानते हैं कि चौदह साल से अन्न का एक भी दाना मुंह में न रखते हुए अपने प्रदेशवासियेां के लिए लडाई लडना कैसा होता है।
आपको यह भी बता दें कि इरोम अपनी इस रिहाई के बाद भी न तो अपने घर गईं और न ही अपनी मां से मिली। उन्होने कहा जब तक सरकार दमनकारी कानून आफस्पा को समाप्त नहीं करेगी वह अपना अनशन चालू रखेंगी। सिंघाजीत इरोम के बडे भाई अपनी बहन के इस पल में साथ साथ हैं वह कहते हैं कि इरोम हिम्मती हैं। उन्होंने फैसला किया है कि जब तक सरकार की ओर से लगाया गया अफस्पा कानून हटाया नहीं जाता तब तक वो न तो अपने घर जाएंगी और न ही मां से मिलेंगी। मेरी मां भी र्मिला के इस फैसले का समर्थन करती हैं। वह कहती हैं कि उसे अनशन जारी रखने दे मैं उससे तभी मिलूंगी जब वह अपने काम में सफल हो जाएगी। इरोम की मां शाखी देवी की उम्र 80 वर्ष है वह नहीं चाहती हैं कि उनके आंसू देख इरोम कमजोर पडे। 

   

Saturday 17 January 2015

इल्‍मी को अब राजनीति का इल्‍म हो चुका है


पूजा मेहरोत्रा
आम आदमी पार्टी की चर्चित नेता शाजिया इल्मी अब भाजपाई हो गईं हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उन्‍हें पार्टी की सदस्यता दिलाई है। इल्‍मी को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं कि इल्मी ने एलान किया कि वे विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं। आखिर क्‍यों? फिर कैसे सेवा होगी देश की और जनता की?
आप की सेवा कर चुकीं इल्‍मी को अब राजनीति का इल्‍म हो चुका है इसलिए वो बीजेपी की सेवा करने आईं हैं। क्‍या सचमुच सेवा कर पाने में सक्षम हैं शाजिया?
लोकसभा चुनाव के  वक्‍त एक दिन शाजिया के साथ गुजारा था। शाजिया किसी की सेवा कर सकती हैं या उन्‍हें ही हर कदम पर सेवादारों की जरूरत पड़ती रहती है। शाजिया इतनी कोमल हैं कि हर आधे घंटे बाद थक कर बैठ जाती हैं। लेट जाती हैं। कभी उन्‍हें सिर दर्द की शिकायत होती है तो कभी मितली आने की। कभी पैर दर्द हो जाता है तो कभी गला खराब। मैडम किसी कार्यकर्ता के घर में आराम फरमाती हैं। सेवादार जुटे रहते हैं।  बेचारे कार्यकर्ता कतार में खड़े मैडम की तबियत ठीक होने का इंतजार करते रहते हैं। बुदबुदाते हैं ऐसे कैसे जीतेंगे चुनाव।  
बदलाव प्रक़ति का नियम है। और यदि आपको बदलाव के साथ प्रसिदि़ध भी चाहिए तो राजनीति से जुडि़ए। मौका अच्‍छा था जुड़ गईं राजनीति से। लेकिन क्‍या पता था कि इतनी कठिन डगर है राजनीति की। दो दो बार हार मुंह देख चुकीं शाजिया बहुत अच्‍छे से जानती हैं कि अगर वह तीसरी बार भी हारीं तो पत्रकारिता की तरह राजनीति का करियर खत्‍म हो जाएगा। इसलिए कल तक भाजपा, कांग्रेस को आगाह करने वाली और मुसलमानों को सजग करने वालीं, यह बताने वाली कि हम मुसलमान कमजोर नहीं हैं, हम अपनी रहनुमाई खुद कर लेंगे। आज खुद केसरिया रंग में रंग चुकी हैं। सेवा भाव उमर घुमर रहा है। और जब सब कुछ आराम से मिल रहा हो तो क्‍या जरूरत है दौड़ने भागने की।  
गंदगी, कीचड़, कूड़े का ढेर देखते ही बीमार हो जाने वाली ये नेता दीदी बहुत अच्‍छे से समझती हैं कि चुनाव-चुनाव  खेलना बच्‍चों का खेल नहीं है। इसमें दिनरात एक कर देना पड़ता है। राजनीति नेता को बीमार होने की इजाजत नहीं देती है।  ऐसे में जब देश की सबसे बड़ी विजेता पार्टी आगे बढ़ कर उन्‍हें बुला रही हो तो इसमें बुराई क्‍या है। मार्केट तो यूं ही गर्म है। जरूरत क्‍या है चुनाव लड़ने की। शाजिया बहुत अच्‍छे से समझती हैं कि जब हारे हुए नेता केंद्रीय मंत्री पद पर विराजमान हैं तो उन्‍हें भी बिना चुनाव लड़े कोई न कोई बेहतरीन विभाग मिल ही जाएगा।
आज राजनीति का मतलब खबरिया चैनलों पर बैठकर आरोप प्रत्‍यारोप लगाना भर रह गया है। जो जितना लंबा चौड़ा आरोप लगाता है वह उतना बड़ा नेता घोषित हो जाता है। शाजिया का पत्रकार दीमाग इन बारीकियों को बहुत अच्‍छे से समझ चुका है। इसका फायदा उठाते हुए उन्‍होंने आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा है। वे कहती हैं कि जिस बदलाव के लिए और आम आदमी को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पार्टी का गठन हुआ था, वे सारे मुद्दे गायब हैं। वे बताती हैं कि उन्‍हें पार्टीं में बहुत अपमान सहना पड़ा है। शाजिया अपने साथ हुए अत्‍याचार के खिलाफ एक किताब भी लिख रही हैं। बहन  शाजिया आर के पुरम और गाजियाबाद की समस्‍या को बहुत अच्‍छे से समझ चुकी थीं। शायद यही वजह थी कि गाजियाबाद चुनाव के दौरान उनके कार्यकर्ता उनसे कतराने लगे थे। शाजिया गाजियाबाद में प्रचार के दौरान आदतन एक दिन में हर आधे घंटे बाद एक डेढ घंटे के लिए बीमार पड़ जाती थीं। वे किसी कार्यकर्ता के घर में आराम फरमाती थीं और दुखी कार्यकर्ता इसी उधेड़ बुन में रहते थे कि ऐसे कैसे चुनाव जीतेंगे। जयजयकार लगाते प्रशंसक दबी जुबान से अपनी नेता और पार्टी की कार्यप्रणाली पर ही संदेह करने लगते थे। शाजिया अब ज्ञानी हो चुकी हैं। बिना मैदान में उतरे यह मानने लगी हैं कि नकारात्‍मक और अराजकता वाली राजनीति का दौर खत्म हो गया है। अब सकारात्मक राजनीति की जरूरत है। अब बदले से बदलाव की राजनीति नहीं चल सकती।



Monday 12 January 2015

जरा सोच समझ कर इवीएम का बटन दबाइएगा

पूजा मेहरोत्रा
सात फरवरी को बटन दबेगा और दस फरवरी को भाग्‍य खुलेगा। मिल जाएगी दिल्‍ली को सरकार। लेकिन फिर हैं वही सवाल  क्‍या खत्‍म हो जाएगी महंगाई, सुरक्षित हो जाएंगी लड़कियां, बिजली पानी की समस्‍याएं दूर होंगी, भ्रष्‍टाचार खत्‍म होगा, अनाधिक़त कलॉनियां नियमित होगी, खुली सड़कों पर सोने वालो छत मिलेगी, अस्‍पताल मे दवाईयां और इलाज मिलेगा। पीने का साफ पानी मिलने लगेगा और गरीब के बच्‍चे पीने के पानी के कारण बीमार नहीं होगे। झुग्‍गी बस्तियां साफ होगी।  
हमारी सबसे बड़ी समस्‍या सुरक्षा व्यवस्था है और दिल्ली की सबसे प्रमुख चिंताओं में से एक है। 2013 में दिल्ली में अपराध 99 प्रतिशत तक बढ़ गए हैँ, जबकि पुलिस को क्राइम के सिर्फ 30 फीसदी मामले सुलझाने में ही सफलता मिली है। बीते कुछ सालों में दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर बन चुकी है। 2014 में यहां रेप के दो हजार से अधिक मामले दर्ज हुए, जो 2013 के मुकाबले 30 प्रतिशत ज्यादा हैं। 2014 में स्नैचिंग की घटनाएं दोगुनी हो गई हैं, जिनमें से सिर्फ 25 फीसदी मामलों में आरोपियों को पकड़ा गया है। आप पार्टी की सरकार ने अपने वादे के तहत हर दिल्लीवालों के लिए रोजाना 700 लीटर मुफ्त पानी की सप्लाई की योजना शुरू की थी, लेकिन सरकार गिरने के बाद यह योजना बंद हो गई। दिल्ली हर रोज 172 एमजीडी पानी की किल्लत झेलती है। द्वारका जैसे इलाकों में यह समस्या विकाराल रूप ले चुकी है, जहां लोगों को निजी टैँकर चालकों से पानी खरीदना पड़ता है। झुग्‍गी झोपड़ी वालों को तो पानी हफते में दो दिन पानी के टैंकर से पहुंचाया जाता है। पानी की आपूर्ति दिल्‍ली की प्रमुख समस्‍या है।
महंगाई से त्रस्‍त दिल्‍ली वालों के लिए अरविंद केजरीवाल आश के रूप में उभरे थे। लेकिन सारी आस 49 दिनों में ही ढह गई और केजरीवाल के इस्तीफे के बाद बिजली बिलों पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया गया। लोगों को तभी से बढ़े हुए बिजली के बिल देने पड़ रहे हैं। हालांकि केंद्र की एनडीए सरकार ने अब 400 यूनिट तक बिजली का उपभोग करने वालों को सब्सिडी देना शुरू किया है। इस बार भाजपा ने बिजली के बिल घटाने का वादा किया है। लेकिन रामलीला मैदान में हुई मोदी की रैली में मोदी इफेक्‍ट नजर नहीं आया है।
  दिल्ली के करीब 50 लाख लोग यानी राजधानी का हर तीसरा बाशिंदा अवैध कॉलोनी में रहता है। भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर 1,939 अवैध कॉलोनियों को वैध करने का फैसला किया है। कांग्रेस सरकार यही झुनझुना कई वर्षों से देती आ रही है। हालांकि इन अवैध कॉलोनियों में विकास कार्य कराना एक बड़ी चुनौती होगा। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या इन कॉलोनियों में लोग प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त कर पाएंगे।
 पूरे देश की बड़ी समस्‍या भ्रष्टाचार है और पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रमुख मुद्दा भी भ्रष्‍टाचार था जिसने उसे ऐतिहासिक जीत दिलाई थी। पार्टी ने लोगों से भ्रष्टाचार की शिकायत करने की अपील की थी और उनकी शिकायत के निवारण के लिए एक हेल्पलाइन भी जारी की थी। आप सरकार के गिरने के बाद दिल्ली पुलिस ने भी ऐसी ही एक हेल्पलाइन शुरू की। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति अपनाने का फैसला किया है। लेकिन इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि आज भी केंद्र सरकार में अपराधी और साधु संत मोदी इफेक्‍ट में बफरिंग लाने की पूरी तैयारी कर दी है। लेकिन एक बात यह नहीं भूलना चाहिए कि ये दिल्‍ली की जनता है और पूरे देश की जनता और दिल्‍ली की जनता में बड़ा फर्क है। उम्‍मीद के साथ यहां की जनता को  सबकुछ झटफट पा लेने की आदत है। वैसे पिछले साल कि चुनाव में महंगाई एक बड़े मुद्दे के रूप में उभरकर सामने आई थी और यह अब भी लोगों की चिंता की कारण बनी हुई है। रोजमर्रा की जरूरत की चीजें खासतौर पर सब्जियों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। आज भी प्‍याज आठ आठ आंसू रुला रहा है और टमाटर हर दिन अपनी आंख लाल कर के दिखा रहा है। मेथी, धनिया, लौकी सभी की हरियाली गायब है। शहर में कॉस्ट ऑफ लिविंग बढ़ती जा रही है, लेकिन आय में अधिक परिवर्तन नहीं आया है। इसके साथ दिल्‍ली की बड़ी समस्‍या स्‍वास्‍थ अस्‍पताल और दवाइयां भी है।  वैसे तो दिल्ली में काफी सरकारी और प्राइवेट अस्पताल हैं, लेकिन दिल्ली और आसपास के राज्यों से आने वाले मरीजों की वजह से यह संख्या भी कम पड़ती जा रही है। हर दिन बेड की कमी की वजह से और इलाज न हो पाने की वजह से सड़क पर लोग मर जाते हैं। दिल्ली में हर 10 हजार लोगों पर सिर्फ 2.6 बिस्तर ही हैं और सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था के कारण 80 प्रतिशत लोगों को प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज कराना पड़ रहा है।
दिल्‍ली की सबसे बड़ी समस्‍या बेरोजगारी और शिक्षा है।  2003 से लेकर अब तक 10 लाख से अधिक लोग रोजगार कार्यालय में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं, लेकिन करीब 11 हजार लोगों को नौकरी मिल पाई है। बेरोजगारी के अलावा, युवाओं का अपनी काबिलियत से कमतर काम करना भी एक प्रमुख मुद्दा है। युवा पैरंट्स के लिए अफोर्डेबल और क्वॉलिटी एजुकेशन भी एक बड़ा मुद्दा है। वैसे तो शहर में बड़ी संख्या में स्कूल मौजूद हैं, लेकिन लोग अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए नामीगिरामी स्कूलों के आगे लगती पैरेंटस की भीड़ और जेब का ख्‍याल कौन सी पार्टी रखेगी। पैरंट्स का अपने बच्चे का नर्सरी में एडमिशन कराना और सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति भी एक बड़ा मुद्दा है। तो चलिए तैयार हो जाइए अब अपना मुक्‍क्‍दर आपके हाथों में है जरा सोच समझ कर इवीएम का बटन दबाइएगा।



महिलाओं के करियर को एग फ्रीजिग पैकेज देगा नई ऊंचाइयां


पूजा मेहरोत्रा
महिलाओं को जब भी करियर और परिवार के बीच किसी एक को चुनना होता है तो वे परिवार को चुनती हैं! जिसकी वजह से वे अपने करियर में सहयोगियों से बेहतर होते हुए भी पिछड़ती जाती हैं। इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए जहां पुरुष सहयोगी उन्‍हें कमतर आंकते हैं और कंपनियां और मैनेजमेंट महिलाओं से दोयम दर्जे का व्यवहार करती है। लेकिन अब समय बदल रहा है। काम करने की सूझ बूझ को देखते हुए कंपनियां महिलाओं के लिए विशेष पैकेज इंट्रोड़यूज किया है। फेसबुक और एप्पल जैसी कंपनियों ने महिलाओं के काम को बखूबी पहचाना है। दोनों कंपनियों ने महिलाओं की सैलरी में 20,000 डॉलर का विशेष पैकेज जोड़ दिया है। अब महिलाएं अपना एग बेहतरीन अस्‍पताल में फ्रीज कराकर जब चाहें मां बन सकेंगी। उन्‍हें अपना करियर उम्र के 25-26वें साल में नहीं छोड़ना होगा।  फेसबुकऔर एप्पलने मां बनने की प्रक्रिया को अपने करियर में रोड़ा न बनने देने का प्रस्ताव देकर उन्हें एग फ्रीज करने का एक विशेष पैकेज दे रही है।  पिछले दिनों यह खबर जब आई तो पूरी कॉरपोरेट दुनिया में जैसे भुचाल ही आ गया। महिला कर्मचारियों को ये विशेष पैकेज दिए जाने के बाद उम्‍मीद है कि अब महिलाएं अपना करियर बीच मे नहीं छोड़ेंगी। और 40 पार कर जाने के बाद भी मां बनने के सपने को साकार कर सकेंगी।
फेसबुक और एप्पल जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों को मुफत लंच, ड्राय क्लीनिंग और काम की थकान को मिटाने के लिए मसाज जैसी सुविधाएं तो पहले से देती आ रहीं हैं। लेकिन महिलाओं के लिए कंपनियों का यह कदम जरूर एक क्रांति लाएगा। महिलाएं अपने करियर में नया मुकाम हांसिल कर सकेंगी। फेसबुक और एप्‍पल ने महिला कर्मचारियों को इंफर्टिलिटी ट्रीटमेंट, स्पर्म डोनर्स और एगस फ्रीज करने के लिए 20000 डॉलर करीब 12 लाख रुपए सैलरी के अलावा दे रही है। कंपनियों का मानना है कि ऐसा करने से महिलाएं अधिक से अधिक अपने करियर पर फोकस कर सकेंगी और 40 की उम्र के बाद  भी असानी से मां बन सकेंगी।
 फेसबुक ने अपनी महिला कर्मचारियों को भुगतान करना 2014 में ही शुरू कर दिया था जबकि एप्पल 2015 में यह भुगतान शुरू करेगी। फेसबुक नए अभिभावकों को बेबी कैश के तौर पर भी ढाई लाख रुपए देती है जबकि एप्पल 18 हफतो का सवेतन मातृत्व अवकाश देता आ रहा है।

एक अध्‍ययन से पता चला है कि 95 फीसदी महिलाएं करियर और परिवार के बीच में परिवार को ही चुनती हैं। जिससे कंपनियां एक बेहतरीन इंप्लाई को खो देती है। समाजशास्त्री प्रोफेसर और स्टैनफोर्ड विश्‍विघालय में क्लेमैन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर रिसर्च की निदेशक शैली कोरेल बताती हैं कि हमेशा से ही महिलाओं को अपने बायोलोजिकल क्‍लॉक और क्लॉक वर्क में सामजस्य बैठाने में समस्या होती रही है यह तब होता है जबकि महिलाएं कंपनी को बेहतर तरीके से संभालती हैं और बेहतरीन कर्मचारी होती हैं। जिस वक्त महिलाएं अपने करियर के पीक की तरफ बढ रही होती हैं, उसी दौरान उन पर मां बनने का भी दबाव होता है क्योंकि इसमें देरी करने पर उम्र बढने से मां बनने में मुश्किलों का सामना करना पडता है। कंपनियों द्वारा महिलाओं के लिए उठाया गया यह कदम अवश्‍य ही महिलाओं की एक बहुत बडी समस्या को सुलझााने में मदद करेगा। कॉरपोरेट वर्ल्‍ड , स्वास्थ्य और मीडिया से जुडी महिलाएं निजी तौर पर पहले से ही इस सुविधा लाभ उठाती आ रही हैं। 

 वैसे एग फ्रीजिंग संस्कृति निजी तौर पर भारत में भी खूब पॉपुलर हो चुकी है लेकिन यह अभी कॉरपोरेट वर्ग में उच्चपद पर बैठी महिलाओं तक ही सीमित है क्योंकि एग फ्रीज करने के लिए हर वर्ष एक निश्‍चत राशि अदा करनी पडती है जो हर लडकी के बस की बात भी नहीं है। वैसे एग जितनी जल्दी और छोटी उम्र में फ्रीज कराया जाए वह उतना ही अच्छा होता है क्योकि उम्र बढने के साथ एग की क्वांटिटी और क्वालिटी दोनो कम होती जाती है।  महानगरों में  25 से 30 वर्श की लड़कियों में एग फ्रीज कराने में काफी रुचि है वह मानने लगी है कि यही समय है जब आप अपना एग फ्रीज कराकर अपने मां बनने के सपने को कुछ और वर्ष तक टाल सकते हैं। कविता मार्केटिंग में हैं उनकी उम्र 28 साल की हो चुकी है अभी वह कुछ समय और अपने करियर को देना चाहती हैं लेकिन अपनी जॉब से संतुष्‍ट न होने की वजह से भी वह परेशान हैं। वह कहती हैं मैं अपने करियर को और तीन चार साल और मां नहीं बनना चाहती हूं। इसलिए एग फ्रीज करवाकर कुछ साल और करियर को दे सकती हूं क्योंकि मुझे अभी “शादी नहीं करनी है और मां बनने का एक सुरक्षित जरिया भी है तो मां बनने की प्रक्रिया में कोई चिंता नहीं रहेगी। कुछ ऐसा ही मनीषा भी मानती है मनीषा वकील हैं और वो कहती हैं कि आज बहुत प्रतियोगिता है और यही वक्त “शादी, बच्चे और करियर का होता है। लडके इसलिए सफल रहते हैं क्योंकि उन्हें अपना करियर बीच में नहीं छोडना होता है और फिर वे हमपर अकड दिखाते हैं। लेकिन जब मेरी डॉक्टर दोस्त ने एग फ्रीज की सुविधा लेने की सलाह दी तो मैं बहुत खुष हो गईै। मैंने तत्काल वह सारे कदम उठाए और अपना अंडा फ्रीज करवा दिया है।
एग फ्रीजिग के विषय में मैक्स हॉस्पिटल की आवीएफ विशेषज्ञ डॉ तान्या बखशी कहती हैं एग फ्रीज के कई फायदे हैं। एग फ्रीज से बांझपन झेल रही महिलाओं के लिए भी एक विकल्प पेश करता है। साथ ही बच्चे को जन्म देने की सही उम्र और सामाजिक आर्थिक नजरिए से बच्चे पैदा करने की उम्र के बीच बढते अंतर का मां बनने की प्रक्रिया में कोई फर्क नहीं पडता है। दिल्ली के ही रॉकलैंड अस्पताल की गाइनो कॉलिजिस्ट डॉ आषा “शर्मा कहती हैं पश्चिमी देशों की तुलना में अभी भारत में एग फ्रीजिग की प्रक्रिया “शुरुआती दौर में हैं लेकिन पिछले वर्शों की तुलना में हर वर्श 20 से 25 फीसदी लडकियां एग फ्रीज की सुविधा ले रहीं हैं। इसमें भी अकेली महिलाओं की संख्या ज्यादा है। 35 वर्शीय मीडिया में कार्यरत एक प्रोफेषनल का कहना है कि यह “शानदार विकल्प है, यह हमें अपना करियर को दांाव पर लगाए मां बनने का आॅप्षन देता है।
एग फ्रीज कर बच्चा पैदा करने की पूरी प्रक्रिया अभी भी 100 फीसदी सुरक्षित नहीं है फिर भी महिलाएं इसे आजमाने को तैयार हैं। आइसिस आइवीएफ हॉस्पिटल की निदेषक डॉ शिवानी सचदेव गौड कहती हैं एग फ्रीजिंग एक भावनात्मक अवस्था है क्योंकि महिला को सबसे पहले मानसिक तौर पर यह लडाई लडनी होती है कि उसे अपने अंडाणु को फ्रीज करने का विकल्प अपनाना है या नहीं। एग फ्रीजिग एक महंगी प्रक्रिया है और यह कितने समय तक फ्रीज करवाना है इसका खर्च उस पर भी निर्भर करता है।

Wednesday 7 January 2015

इसलिए बीमार है हर शख्‍स इस शहर में



पूजा मेहरोत्रा
क्‍या आप अपने परिवार को मोटापा, कोलेस्‍ट्रॉल और दिल की बीमारियों से बचाने के लिए खाने पीने की हर फरमाइश घर पर ही पूरी करती हैं। इसके लिए आपकी रसाईगैस पर एक तेल भरी कड़ाही चढ़ी ही रहती है। जिसने जब फरमाइश की आपने झटपट पूरी कर दी। सुबह बच्‍चों को जिस तेल में पूरियां तल कर खिलाई थीं, उसी तेल में दिन में घर के बुजुर्गों के लिए पूरियां तल दीं और जब पति शाम में थके मांदे आए और पकौड़े खाने की इच्‍छा जाहिर की आपकी कड़ाही तेल के साथ तैयार थी आपने दनादन पकौड़े भी तल दिए। क्‍या आप जानती हैं कि आप अपने परिवार को स्‍वस्‍थ नहीं रख रही हैं बल्कि आप खुद उनकी  बीमारियों की जिम्‍मेदार हैं। बार बार एक ही तेल को गर्म करने से वह जहरीला हो जाता है। उसमें ट्रांस फैटी एसिड की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है कि वह दिल की बीमारी, मोटापा, डायबिटीज, किडनी में खराबी के साथ, मां न बन पाने से लेकर कैंसर जैसी बीमारियों की बड़ी वजह बन सकता है। डॉक्‍टर और न्‍यूट्रीनिशट की टीम ने हाल ही में  सर्वे किया है जिसमें यह गंभीर बातें सामने आई हैं। भारतीयों में कॉलेस्‍ट्रॉल का बढ़ना, मोटापा का महामारी का रूप लेना, दिल की बीमारी होना, लीवर का काम न करना, बांझपन, और अस्‍थ्‍मा जैसी खतरनाक बीमारियों की एक बड़ी वजह आपके किचन में लगातार चढ़ी हुई कड़ाही और उसमें गर्म होता तेल है। तेल जब तक खत्‍म नहीं हो जाता आप उसी तेल में सामान तलती रहती हैं। विशेषज्ञों की मानें तो तेल में सिर्फ एक बार ही फ्राई किया जाना चाहिए और फिर उस तेल का उपयोग थोड़ी थोड़ी मात्रा में सब्‍जी बनाने या अन्‍य किसी काम में लेना चाहिए। अध्‍ययन में यह भी पता चला है कि महिलाओं को ट्रांस फैटी एसिड के जोखिम की जानकारी ही नहीं है। डायबिटीज फाउंडेशन ऑफ इंडिया कि सीनियर रिसर्च ऑफिसर स्‍वाति भारद्वाज ने बताया कि शोध के दौरान पता चला कि लगभग 44 फीसदी महिलाएं एक बार जो तेल कड़ाही में फ्राई करने के लिए डालती हैं उसे दो से तीन बार उपयोग करती हैं जबकि 54 फीसदी महिलाएं तो कड़ाही में ही तेल पड़ा रहने देती हैं जब जरूरत होती है उसे गर्म कर सामान फा्ई करती रहती हैं। स्‍वाति बताती हैं कि भारतीय महिलाओं में टीएफए क्‍या है और इसके क्‍या नुकसान है इसकी जानकारी ही नहीं है। खाना बनाने और फ्राई क्‍या और कैसे की जानकारी भी नहीं है। अमूमन सारी महिलाएं किसी भी सामान को फ्राई करने से पहले तेल को जलाने तक गर्म करती ही रहती हैं। नेशनल डायबिटीज, ओबेसिटी और कॉलेस्‍ट्राफल के अध्‍यक्ष प्रोफेसर डॉ अनूप मिश्र कहते हैं कि हमारे देश में अभी तक लोगों को यह भी जानकारी नहीं है कि खान पान में ट्रांस फैटी एसिड कितना खतरनाक है। हम में से कई आज भी यह मानते हैं कि घर में बना खाना सुरक्षित और स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छा होता है। लेकिन जैसा हमने अपने अध्‍ययन में पाया है कि भारतीय रसोई में तेल को बार बार गर्म कर उसे जहरीला बनाया जा रहा है ऐसा भोजन हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक है। हमें आज से नहीं अभी से अपनी रसोई में बनाए जा रहे भोजन के स्‍टाइल और खान के स्‍टाइल को बदलना होगा तभी हम स्‍वस्‍थ् हो सकेंगे। हमारे देश में मोटापा और डायबिटीज महामारी की तरह फैल रही है इसकी बहुत बड़ी वजह हमारा खान पान और रहन सहन ही है। हमारे छोटे छोटे बच्‍चे उच्‍च रक्‍तचाप, डायबिटीज और मोटापा जैसी बीमारी से ग्रसित हैं। अगर जल्‍द से जल्‍द  खान पान और रहन सहन में बदलाव नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हम पूरी दुनिया में जनस्ंख्‍या के बाद बीमारियों के लिए जाने जाएंगे।


Monday 5 January 2015

भेदभाव किया आवाज उठाई तो लगा दिया प्रतिबंध



 दक्षिण कोरिया के इंचीयोन मे हुए 17 वे एशियन गेम्स मे जिस तरह से भारतीय मुक्केबाज सरिता देवी के साथ भेद भाव किया गया उसे पूरे विश्व ने देखा था। भावुक सरिता ने पोडियम पर पदक लेने से इंकार कर दिया था जिसका खामियाजा उसे एक साल तक भुगतना पड़ेगा। सरिता अब एक साल तक किसी भी मुक्‍केबाजी प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकेंगी। अंतर्राष्‍ट्रीय मुक्‍केबाज संघ ने सरिता देवी पर एक साल का प्रतिबंध लगा दिया है। संघ ने भारत में विदेशी कोच फर्नांडीज पर भी दो साल का प्रतिबंध लगाया है। आइबा का यह मानना है कि सरिता ने पदक न लेकर खेल भावना को चोट पहुंचाई है। लेकिन एक सवाल जो बार बार उठ रहा है वह यह कि क्‍या सचमुच अपने खिलाफ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने वाले को इंसाफ कभी नहीं मिलेगा और खिलाड़ी हमेशा ही प्रतिबंधित किए जाएंगे। क्‍या ऐसा नहीं होना चाहिए था कि जब सरिता के साथ भेदभाव किया जा रहा था तभी वहां मौजूद भारतीय ओलंपिक संघ के अधिकारी अपनी खिलाड़ी के साथ होते और आवाज बुलंद करते । अगर भारतीय खेल संघ के अधिकारी अपने खिलाडि़यों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे होते तो आज हमारे खिलाडि़यों का मनोबल न गिरता। सरिता पर एक साल का प्रतिबंध लगने के बाद क्‍या अब कोई भी भारतीय खिलाड़ी अपने खिलाफ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने का साहस करेगा। महिला खिलाड़ी वैसे ही हमेशा हाशिए पर ही रहती रही हैं। कभी अधिकारी उन्‍हें मानसिक रूप से परेशान करते हैं तो कभी शारीरिक रूप से। जब खिलाड़ी आवाज उठाती हैं तो उनका करियर खराब कर दिए जाने की धमकी दी जाती है और करियर का लालच खिलाडि़यों को चुप रहने पर मजबूर कर देता है।
समय बदल रहा है।  सरिता के साथ भारत रत्‍न मास्‍टर ब्‍लास्‍टर सचिन तेंदुलकर सहित मैरी कॉम, विजेंदर, योगश्‍वर दत्‍त जैसे खिलाड़ी खुल कर बोल रहे हैं लेकिन एक सवाल जो बार बार उठता है कि आखिर कब तक हमारे खिलाड़ी भेदभाव का शिकार होते रहेंगे।  क्‍या हमें अपने साथ हो रहे भेदभाव को हमेशा चुपचाप ही सहना होगा कभी कोई आवाज उठाएगा तो सही होने के बावजूद उसे प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।
खिलाड़ी की भावना देखिए अपने साथ घटित घटना को भुला कर फिर सरिता रियो ओलंपिक की तैयारी मे जुट गईं हैं। वह कहती हैं मैंने उस घटना को भुला दिया है। मुझे आगे बढना है और रियो मे पदक जीतना है। सरिता उस समय को याद करते हुए कहती हैं -भावुक सरिता भारतीय सरिता है, जिसने हमेशा अपने देश के झंडे को ऊंचा रखा है। जब मुझे तीसरे नंबर पर खड़ा किया गया तो मैं आसुओं पर नियंत्रण नहीं रख पाई और मैंने मेडल लेने से इंकार कर दिया।

इस बात को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता की जब एक खिलाड़ी खासकर महिला खिलाड़ी बनती है तो उसे अपना सबकुछ कुर्बान कर देना होता है। वह महीनों प्रैक्टिस के लिए घर से बाहर रहती हैं तो न केवल वे बल्कि उनका परिवार भी बहुत कुछ खो रहा होता है। सरिता बताती हैं कि वे पिछले वर्ष प्रेकिटस के लिए कई महीने तक घर के बाहर रहीं थीं। जब वे वापस आईं तो उनके एक साल के  बेटे ने उन्हे पहचाना नहीं, गोद मे लेते ही रोने लग गया था। जब एक मां देश के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी दे रही हो, अपना सब कुछ दांव पर लगाती है, जीत जाती है फिर भेद भाव का शिकार होती है तब उसका भावुक होना लाजिमी है। 1 अक्तूबर 2014 को जब खबरिया चैनलो पर सरिता को रोता हुआ दिखाया तो पूरा देश सरिता के साथ था सिर्फ इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के अधिकारी कहीं नहीं थे। यदि उन अधिकारियों ने तभी सरिता के साथ खड़े होने का दम दिखाया होता तो आज भारत की और सरिता की इतनी किरकिरी नहीं हुई होती।  खिलाड़ियों के बदौलत विदेश घूमने का मौका तलाशने वाले इन अधिकारियों का खेल से कोई लेना देना नहीं होता है यदि वे भी खिलाड़ी होते तो हम आज पदक तालिका मे आठवे नंबर पर नहीं बल्कि पहले नंबर पर होते। सरिता पदक वितरण समारोह मे इतनी भावुक हो गईं की उन्होने पदक दक्षिण कोरिया की ही खिलाड़ी पार्क जीना के गले मे डाल दिया था। सरिता उस मैच की विजेता थी। खेल के मौदान में बैठा हर एक खेल प्रेमी और मैच का आंखो देखा हाल कह रहे कमेंटेटर भी सरिता को विजेता कह रहे थे। खैर, किसी भारतीय महिला खिलाड़ी के साथ भेदभाव की यह कोई पहली घटना नहीं है। भारतीय खिलाड़ी इस तरह के भेद भाव के शिकार होते रहे हैं। बाहर ही क्यूँ उनके साथ उनके देश मे उनके अपने खेल संघ के अधिकारी भेद भाव करते रहे हैं। ये बात अब किसी से छुपी भी नहीं है। चक दे इंडिया, मैरी कॉम जैसी अनेक फिल्‍में इन अधिकारियों की स्थिति को खुल कर बयां कर रही हैं।  आज भले ही पूरा देश मेरी कॉम की सफलता पर नाज़ करता हो, उन्हे बेस्ट खिलाड़ी के सम्मान से सम्मानित किया जा रहा हो लेकिन उनका यहाँ तक पहुँचने का सफर भी आसान नहीं रहा है। पिछले दिनो प्रियंका चोपड़ा अभिनीत मैरी कॉम की जीवन पर आधारित फिल्म मे पूरे देश ने उनके साथ घटी घटनाओं को भी देखा।