Friday 26 June 2015

आखिरी मेट्रो....महिला के साथ बड़े हादसे के इंतजार में मेट्रो

महिलाओं के लिए आरक्षित कोच में होता है पुरुषों का कब्‍जा
रात में मेट्रो में सफर करने वाली महिलाएं बिलकुल सुरक्षित नहीं
पूजा मेहरोत्रा
दिल्‍ली मेट्रो महिलाओं के लिए रात में बिलकुल सुरक्षित नहीं रही है। जिस तरह से रात में सुरक्षा की लचर व्‍यवस्‍था देखने को मिलरही है वह दिन दूर नहीं जब महिलाओं के साथ मेट्रो में कोई बड़ी वारदात होगी। मेट्रो के आगे और पीछे के डिब्‍बे आरक्षित कर देने और सीसीटीवी कैमरे लगा देने भर से ही महिलाएं सुरक्षित नहीं हो जाएगीं। जिस तरह से रात में काम से लौट रही महिलाओं की सुरक्षा को दिल्‍ली मेट्रो और सीआइएसएफ द्वारा नजर अंदाज किया जा रहा है आने वाले चंद दिनों मे महिला के साथ कोई बड़ी घटना और दुर्घटना की खबर आएगी।
 एक महीने में यह दूसरी बार है जब मैं रात में 10 बजे के बाद मेट्रो में ट्रेवल कर रही थी। अब ये मत कह दीजिएगा कि मैं इतनी रात में सफर ही क्‍यों कर रही थी। अक्‍सर जब कोई बड़ी घटना महिला के साथ घटित होती है तो पूरा दोष पीडि़त पर मढ दिया जाता है। इसलिए महिलाएं अपनी सुरक्षा का इंतजाम खुद कर लें। 26 जून की रात 10:40 बजे मैंने हॉज खास स्‍टेशन से कशमीरी गेट के लिए मेट्रो ली। महिलाओं का कोच महिलाओं से खचा खच भरा हुआ था। अभी मेट्रो जोर बाग तक पहुंची थी कि मेरे बड़े भाई अतुल मेहरा का फोन आया मेट्रो मिली या नहीं,
 मैंने कहा मिल गई। घर पहुंच कर फोन करती हूं।
 उन्‍होंने पूछा लड़कियां है मेट्रो में, मैंने कहा हां सीटें सारी फुल हैं। वह अब निश्चिंत हो गए थे कि बहन सुरक्षित पहुंच जाएगी। कशमीरी गेट पर पहुंचते हुए लोग रिठाला और दिलशाद गार्डेन की मेट्रो के लिए लगभग भाग रहे थे। तीन फ़लोर तक दौड़ लगानी थी। मैं भी दौड़ रही थी। जैसे ही हांफती हांफती थर्ड फलोर पर पहुंची मेट्रो स्‍टेशन पर प्रवेश कर रही थी। भीड़ देखते हुए मैं महिलाओं के लिए आरक्षित आखिरी कोच की ओर भागी। भागते हुए सोंच रही थी कोच तो खाली ही होगी। लेकिन जैसे ही मैं कोच में दाखिल हुई बैठने की जगह नहीं थी इक्‍का दुक्‍का लोग खड़े ही थे। सारी सीटें पुरुष यात्रियों के कब्‍जेमें थी।
मैं डिब्‍बे की हालत देख अचंभित थी, मैंने पूछा ये आखिरी डिब्‍बा है न,
पुरुष सवारियों ने कहा जी हां,
मैंने पूछा क्‍या फिर से महिलाओं का कोच आगे वाला कर दिया गया है, चूंकि वे नियमित यात्री थे उन्‍होने कहा नहीं आखिरी कोच ही महिलाओं का है
मैंने पूछा फिर आप लोग,
जवाब आया काम से काम रखो, मेट्रो में काम करती हो क्‍या या पुलिस हो
मैंने कहा जी महिला हूं और ये कोच महिलाओं के लिए मेट्रो कॉरपोरेशन ने आरक्षित किया है
लगभग सारे पुरुष यात्री मुझ पर हंस रहे थे
मैंने उन्‍हें नजरअंदाज करते हुए टैबलेट निकाला फोंटो खींचने लगी, यात्री बोला आप फोटो ले रही हैं वर्जित है,
मैंने कहा आप भी इस कोच में वर्जित हैं। सारे हंस दिए
मैंने सीआइएसएफ की हेल्‍प लाइन नंबर पर फोन लगाया ट्रेन कशमीरी गेट से निकल कर शास्‍त्री पार्क पहुंच रही थी। तीसरी रिंग में हेल्‍प लाइन पर बैठे सिपाही ने फोन उठा लिया,
मैंने पूछा क्‍या फिर महिलाओं का कोच रिठाला से दिलशाद गार्डेन की रूट पर आगे वाला कर दियागया है, बोला नहीं मैंडम पीछे वाला ही है
मैंने पूछा आपके जवान अभी ड़यूटी पर होंगे
जवाब आया जी हैं,
 मैंने कहा शास्‍त्री पार्क आने वाला है जवान भेजिए महिलाओं का कोच खाली करवाइए
जवाब आया मैसेज दे दिया है मैडम
शास्‍त्री पार्क आया, ट्रेन रुकी कुछ यात्री उतरे ट्रेन चल दी
मैंने फिर फोन घुमाया मैंने कहा कोई जवान नहीं आया
तब तक मैंने दिल्‍ली मेट्रो के पीआर के शायद अब जीएम अनुज दयाल को फोन लगाया, घंटी जाती रही, शायद सीलमपुर स्‍टेशन भी निकल गया। मैंने अनुज दयाल जी को संदेश भेजा जिसमें मैंने मेटा्े के हालात से उन्‍हें अवगत कराया। ट्रेन शाहदरा स्‍टेशन क्रास कर चुकी थी अभी तक सीआइएसएफ का कोई जवान महिलाओं के आरक्षित कोच से अनाधिक़त रूप से पुरुषों के कब्‍जे से छुडाने नहीं आए। अब कुछ महिलाएं मेरा मुंह देख रही थीं।
मानसरोवर मेट्रो स्‍टोशन पर एक बल्ष्टि सरदार जवान वॉकी टॉकी के साथ अाया और मेट्रो के बाहर से चिल्‍लाते हुए लोगों को दूसरे कोच में जाने के लिए कह गया।
पुरुष गए या नहीं गए उसने देखने की जहमत भी नहीं उठाई।
मेट्रो खाली हो रही थी। लेकिन आज एक बार फिर लगा कि क्‍या सचमुच महिलाएं सुरक्षित हैं।
चार पांच महिलाएं कोच में बैठी थी जो मुझे शायद गौर से देख रही थीं, बोली दीदी थैंक्‍स, मैंने पूछा किस बात के लिए, बोली आज आपने उन सबको सबक सिखाया, आपके एक फोन से एक्‍शन हुआ, मैं तो रोज जाती हूं और इसमें इसी तरह पुरुष यात्री सफर करते हैं।
 मैंने पूछा आपने शिकायत नहीं की, मैंम आप जिस तरह से अधिकारी से बात कर रही थी वैसे हमें बात करनी नहीं आएगी। सभी महिलाओं की नजर में मैं हिरोइन बन चुकी थी।
एक ने पूछा मैंम आप पुलिस में हैं न,


मुझे हंसी आई मैंने कहा नहीं बिल्कुल नहीं। दूसरी महिला ने कहा दीदी आज आपको देखकर लग रहा है कि आवाज उठाओ तो सुनी जाती है। ट्रेन दिलशाद गार्डन पहुंच चुकी थी।
मैं मुस्‍कुरा रही थी और वो मेरा तालियों से स्‍वागत कर रही थीं।
लेकिन मैं फिर कहती हूं दिन में तो महिलाएं सुरक्षा कर लेंगी रात में रक्षा की जरूरत है।

लगभग एक महीने पहले मैंने मेट्रो में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाललिया निशान लगाया था, तभी पिछले दिनों एक पुरुष यात्री द्वारा ट्रेन में शूशू करती फोटो किसी वकील द्वारा पोस्‍ट किए जाने पर भी काफी बवाल उठा था और आज रात महिलाओं की कोच में पुरुष यात्रियों का सफर करना मेट्रो की लचर व्‍यवस्‍था को उजागर करता है वहीं महिलाओं की सुरक्षा पर भी सवालिया निशान लगाता है। जिस प्रकार महिलाओं के कोच में पुरुषों का कब्‍जा रात में रहने लगा है, ऐसा लगता है कि बहुत जल्‍दी मेट्रो में महिलाओं के साथ कोई बड़ी घटना और दुर्घटना की खबर आएगी। 

Wednesday 24 June 2015

होम फॉर ऑल

विज्ञान भवन से भारत की तस्‍वीर बदलने की घोषणा कर दी गई है। स्‍मार्ट सिटी, ट्रासफॉर्मिंग ऑफ इंडिया एंड होम फॉर एवरीवन। वाह छा गए मोदी जी लेकिन भूल गए हैं घोषणाएं तो पहले भी बहुत हुई थीं। 
जब तक विज्ञान भवन से योजनाओं की घोषणा और पांच सितारा होटलो में बैठकर योजनाएं बनती रहेंगी तब तक देश का अल्‍लाह मालिक है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल जी को वो रात याद कराइए Indu Prakash Singh जी हनुमान मंदिर वाली। गोयल साहब मोदी जी की सेना के हनुमान न सही अंगद तो जरूर कहे जाते हैं। क्‍या सचमुच होगा सभी के पास घर। मोदी जी को हनुमान मंदिर के पास बैठे उन बेघरों के पास ले जाने की जरूरत है जिनके पास घर थे लेकिन सरकार ने पीली पर्ची पकड़ाकर वो आसरा भी छीन लिया है। शुभकामनाएं बाबुल सुप्रियो को जिसने ट्रेन की तीन बर्थ को देश की झलक से ही जोड़ दिया है। गुणगान चालू रहे, लोग मरते रहें, गडढे बनते रहें और गडढे में पानी भरता रहे और गरीबी उसमें डूबती रहे।

Saturday 20 June 2015

नरेंद्र मोदी जी सुनिए वे भी इसी देश के नागरिक थे

मोदी जी सुनिए, नडडा जी आप भी सुनिए, जेटली जी कान इधर जरा पैना कर के लाइए, अरे अरे आप कहां भागे जा रहे हैं राजनाथ जी आपको भी सुनना पड़ेगा। फडनवीस जी को बुलाइए और उन्‍हें भी कहिए सुनने को।
89 लोग बेमौत मरे हैं। पता नहीं कितनी और जाने लेगी ये जहरीली दारू। कई लोग अभी भी भर्ती हैं, कभी भी उनकी जान जा सकती है।
अरे मीडिया वाले खासकर खबरिया चैनल वाले कहां रामदेव को फुटेज दिए जा रहे हैं। अरे अरे जरा सोशल रिस्‍पॉ‍िसिबिलिटी निभाइए। क्‍या गरीबी आपको  टीआरपी नहीं देती और विज्ञापन् भी नहीं आएगा। ओह इसलिए आपलोग पतंजलि के विज्ञापन के लिए रामदेव को पकड़े हुए हैं।
तनि कैमरा फडनवीस के पीछे लगाइए। पूछिए क्‍या जवाब है उनके पास। पुलिस वालों को सस्‍पेंड करके कुछ नहीं हाेगा। दिखावा मत कीजिए। सवाल कीजिए। वैसे ही दारू दहन कराइए, कसम खिलाइए जैसे बच्‍चों से मैगी का दहन करा रहे थे।
 मुंबई की समस्‍या सिर्फ पानी नहीं दारू भी  है जहरीली दारू। मैगी से ज्‍यादा जहरीली  थी ये दारू तभी दो घूंट जाते ही कई परिवार बर्बाद हो गए हैं। किसी का सुहाग, किसी का चिराग और किसी का साया तो किसी का सबकुछ उजड़ गया है। बच्‍चे अनाथ हो गए हैं। सुहाग उजड गया है। गोद खाली हो गई है। बूढी आंखे सूनी हो गईं है, पापा अब कभी नहीं आएंगे बच्‍चों की आंखे सवाल कर रही हैं,  बीबी यह समझ नहीं पा रही है कि घर संभाले कि मातम मनाए।
 माना कि वे गरीब थे। बड़े व्‍यवसाई नहीं थे जो टैक्‍स भरते हैं। उनके दोस्‍त मोदी जी नहीं हैं नही फडनवीस जी  और न ही राहुल जी। तो क्‍या बेचारे यूंही मरते रहेंगे। कहां जाएं।
मोदी जी वो भी इसी देश के नागरिक थे। भले वे चाय नहीं बेचते थे, अंग्रेजी नहीं बोलते थे, लेकिन थे तो इसी देश के नागरिक।  मजदूर थे। सिटी मेकर थे। शहर साफ करते होंगे, फैक्‍ट्री में काम करते होंगे। कुछ बीएमसी में नौकरी करते होंगे। किसी बड़े आदमी को पानी पिलाते होंगे। कहीं न कहीं से किसी न किसी रूप में देश के काम आते ही होंगे। सुन रहे हैं आप।
वादे बडे बड़े जब कारनामा का वक्‍त आया तो चुप्‍पी। मोदी जी सुनिए। अरे बिग बी कहां है, एक रुपया से सब मजदूर को लुभा रहे हैं। गरीबों के लिए  एक टवीट भी नहीं। आप भी सुनिए। योग तो तब करेंगे न जब वे बचेंगे। बचेंगे तब जब शराब पीना बंद करेंगे। तो क्‍या सोचा है आपने। गुजरात को तो आपने ड्राइ स्‍टेट घोषित कर रखा था देश को कब घोषित करेंगे। क्‍या ये जानें आपकी नजर में जानें नहीं थी। आप सुन रहे हैं क्‍या
 वो दो घूंट अपनी जिंदगी की थकान मिटाने के लिए पी थी जिंदगी गंवाने के लिए नहीं। उनकी जान जाने में दो मिनट भी नहीं लगा। मजाक नहीं थी वो जानें, जो यूंही दो घूंट अंदर जाते ही निकल गईं हैं। एक दो नहीं पूरे 87 लोग मारे गए हैं पता नहीं कितनी और जाने जाएंगी।
 मैगी पर तो पूरा देश एक हो गया था, तुफान मचा दिया था। आनन फानन में 3 महीने का प्रतिबंध भी लगा दिया। सुबह शाम दिन रात किचाइन ही किचाइन मैगी बस दो मिनट के नाम पर खबरें चला रहे थे। फुटेज के लिए मैगी दहन, बच्‍चों से करा रहे थे। अब जरा दारू की भरी बोतल का दहन तो कराइए। मोदी जी सुन रहे हैं, क्‍या सोच रहे हैं। रोकिए इस जहर को। ये भी इसी देश के नागरिक थे।

Monday 8 June 2015

तानाशाह नहीं लाचार, बेचारा, मुसीबतों का मारा

‘आप’का समय पांच साल बस
पूजा मेहरोत्रा
मुख्‍यमंत्री केजरीवाल मुझे तानाशाह तो कभी नहीं लगे अलबत्‍ता उनमें मुझे एक बहुत लाचार, बेचारा और मुसीबतों से घिरा मुख्‍यमंत्री नजर आता है। अभी केंद्र, उपराज्‍यपाल और मीडिया से उनकी लड़ाई चल ही रही थी कि दुबारा सफाई कर्मचारियों ने उनका चुनाव चिन्‍ह उठाने से मना कर दिया है। अब वह चिढकर एक बार फिर केंद्र बीजेपी और भ्रष्‍टाचार के पीछे पड गए हैं। पांच महीनों में जिस तरह से केजरीवाल फलॉप साबित हो रहे हैं समझ नहीं आता कि पांच साल ये सरकार काम कैसे करेगी। अब उन्‍ेहोंने नया जुमला छोडा है केंद्र से मांगो सैलरी। क्‍या सफाइ कर्मचारियों को सैलरी, डीटीसी बस वालों को सैलरी,टीचर को सैलरी अब केंद्र सरकार ही देगी। जिस तरह से पांच महीनों में दो दो बार दिल्‍ली कचडा का ढेर बनी है और सफाई कर्मचारी हडताल पर गए हैं इसके पीछे केजरी जी की नाकामी साफ साफ नजर आ रही है। मत कहिए कि एमसीडी बीजेपी की है। सफाईकर्मचारियों के झाडू न उठाने के पीछे भी केंद्र सरकार और उपराज्‍यपाल हैं।
वोट देकर दिल्‍ली ने आपको जिताया है जवाब आप देंगे। कैसे देंगे, क्‍या करेंगे आप जानिए। हमें साफ सुथरी, हरी भरी दिल्‍ली चाहिए। आपसे पहले कई मुख्‍यमंत्री रह चुके हैं। शीला सरकार के समय भी बीजेपी की ही एमसीडी थी लेकिन सैलरी को लेकर दिल्‍ली को कचरे के ढेर में बदलते हुए मैंने 18 सालों में नहीं देखा। अगर 5 महीने में दिल्‍ली के ये हालात हैं तो पांच साल में क्‍या होने वाला है। सोच कर ही दिल घबराने लगा है। अब आप समझ चुके होंगे कि केजरी के बेचारा, लाचार लगने की वजह उपराज्‍यपाल नजीब जंग से जंग बिलकुल नहीं है। यह तो होना ही था और होता भी रहा है। मदनलाल खुराना के समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और शीला दीक्षित के शुरुआती दौर में केंद्र में भाजपा की सरकार थी। ऐसी कई मुसीबतें दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्रयिों ने भी झेली ही हैं। लेकिन दिल्‍ली का हाल बेहाल पहली बार देखा जा रहा है। अपनी लड़ाई को वे जनता तक आने ही नहीं देते थे।
केजरी साहब जोश में बार बार होश खो देते हैं। वो भूल जाते हैं कि वो एक्टिविस्‍ट नहीं है अब वे ही मुख्‍यमंत्री हैं। केंद्र से लेकर मीडिया तक से तो उन्‍होंने जंग छेड ही रखी है। बिजली कंपनियां चोर तो पहले से हैं सभी जानते हैं लेकिन चोर से चोरी कबूल कराने के लिए हमेशा थर्ड डिग्री नहीं आजमाया जाता बल्कि चालाकी, सूझबूझ से काम करना होता है। कल तक हर झुग्‍गी झोपड़ी में बिजली पहुंचती थी अब कुछ वीआइपी इलाकों को छोड़ दें तो बिजली के हालात पर कुछ कहने की जरूरत नहीं है। केजरीबाबू के सबसे बड़े वोट बैंक वाले ही सबसे ज्‍यादा परेशान किए जा रहे हैं। मदनपुर खादर से लेकर सीमापुरी की झुग्‍गी बस्तियों तक बिजली की कटौती बदस्‍तूर जारी है। न मीडिया में बात आ रही है और केजरीबाबू के कान को तो सिर्फ केंद्र से जंग ही सुनाई देता है।
 हयूमन नेचर है कि आप जब नई व्‍यवस्‍था में जाते हैं तो चीजें समझने में समय लगता है। ऐसे में यदि थोड़ा नरम रहकर चीजें सीख लें और जब सीख लें तब बवाल काटें। तब जीत के चांसेज आपके ज्‍यादा होते हैं। केजरी के जोश में होश खोने का फायदा केंद्र और उपराज्‍यपाल साहब उठाने में लगे हैं। ।  केजरी को समझना होगा कि जनता को आपकी इस सांप नेवले की लड़ाई से कोई लेना देना नही है। उसने आपको चुना है और उसे उसका परिणाम चाहिए। जो उसे कहीं देखने को नहीं मिल रहा है। चंद सजग ऑटो वालों को छोड़ दे तो केजरी सरकार के बाद सारे खुद को मुख्‍यमंत्र‍ि से कम नहीं समझते हैं। गलती करते हैं और धौंस भी देते नजर आ जाते हैं।

भरी महफिल में इंसान से इंसान का हो भाइचारे का पैगाम देने वाले केजरी बाबू ही भाइचारा संभाल नहीं पा रहे हैं। पहले अपनी पार्टी में योगेन्‍द्र यादव, प्रशांत भूषण, साजिया इल्‍मी सहित कई के साथ जंग छेड दी और फिर जंग साहब से ही जंग का ऐसा ऐलान कर दिया है कि खत्‍म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। एसीबी का मामला हो या फिर आइएएस अफसरों की नियुक्ति का मामला जनता को इस राड से कोई मतलब नहीं है। अपने आपको जनता के सामने बेचारा दिखाना बंद कीजिए। बिजली बिल और पानी के बिल को कम कर देने से जनता खुश तो बहुत है लेकिन मुख्‍यमंत्री की जिम्‍मेदारी बस इतनी ही नहीं होती है। ये बात न तो उन्‍हें अपने पहले 49 दिन के कार्यकाल में समझ आई थी और न अब दूसरी इनिंग में ही समझ आ रही है। जिसतरह आपने मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेते ही शहर के चौक चौराहों से अपनी पसीने से लथपथ पोस्‍टर हटवाकर मुस्‍कुराते मुख्‍यमंत्री वाले पोस्‍टर लगवाए थे। वैसे ही मुस्‍कुराइए और काम पर जाइए। आप हममें से एक नहीं हैं। आप आम आदमी के सरदार हैं।