Sunday 26 April 2015

जिंदादिली की दास्‍तान

सोनाली मुखर्जी और इलेक्ट्रिकल इंजिनियर चितरंजन तिवारी ने हाल में शादी कर ली है। यह शादी खासी चर्चा में है क्योंकि सोनाली ऐसिड अटैक की शिकार हैं। उनकी जिंदादिली से प्रभावित होकर चितरंजन जैसे होनहार युवक ने उनका हाथ थाम लिया है। लेकिन ऐसिड की शिकार सभी युवतियों के नसीब में हैपी एंडिंग नहीं हैं।

बहुतेरी आज भी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही हैं। नॉर्मल जिंदगी जीने के लिए तपस्या कर रहीं ऐसिड अटैक की शिकार जिंदादिल ऐसी ही लड़कियों की दास्तां बता रही हैं पूजा मेहरोत्राः

इलेक्ट्रिकल इंजिनियर चितरंजन तिवारी से अपनी शादी को लेकर इधर चर्चा में आईं सोनाली इससे पहले महानायक अमिताभ बच्चन के साथ केबीसी में शामिल होकर चर्चा में आ चुकी हैं। 2003 में सोनाली पर कुछ सिरफिरे युवाओं ने ऐसिड फेंका था क्योंकि वह उनके कथित प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थीं। उस वक्त बेहद सुंदर रही सोनाली का न सिर्फ चेहरा पूरी तरह बर्बाद हो गया, बल्कि उनकी आंख की रोशनी भी चली गई और सुनने की क्षमता भी काफी कम हो गई।

सोनाली के एक अब तक 22 ऑपरेशन हो चुके हैं। चितरंजन से सोनाली की दोस्ती फेसबुक पर हुई और दोस्ती प्यार में बदल गई। चितरंजन को सोनाली का जीवट और जिंदादिली भा गई। चितरंजन का कहना है कि उन्होंने तय कर रखा था कि वह ऐसी युवती को अपना जीवनसाथी बनाएंगे, जिसे समाज ने हाशिये पर रखा है। वैसे भी अगर शादी के बाद मेरी पत्नी या मुझे ही कुछ हो जाए तो?

इतने बड़े हादसे का शिकार होने के बावजूद सोनाली ने हिम्मत नहीं हारी और न ही खुद पर कभी तरस खाया। उनकी यही बात मुझे पसंद आ गई और मैंने उन्हें शादी के लिए मना लिया। हालांकि घरवालों को मनाना अभी बाकी है। यह शादी मिसाल है। ऐसिड अटैक की शिकार और भी बहुत-सी लड़कियां हैपी एंडिंग के इंतजार में हैं और हमलावर, समाज और खुद अपनी रुकावटों से लड़ना सीख रही हैं।

लक्ष्मीः दुनिया भर में बनाई पहचान
लक्ष्मी अब किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। उनके हौसले का न सिर्फ देश ने, बल्कि अमेरिका ने भी सलाम किया। मिशेल ओबामा ने उन्हें सम्मानित किया है। 2005 में 16 साल की रहीं लक्ष्मी पर एकतरफा प्रेम में पागल एक सिरफिरे ने ऐसिड फेंक दिया था। खैर, वह अब इस बारे में ज्यादा बोलना नहीं चाहतीं।

वह बताती हैं, 'हमले के तीन महीने बाद जब अपना चेहरा देखा, तो मैंने जान देने की कोशिश की। लेकिन मां-पापा हमेशा साये की तरह साथ थे। पापा मुझे हमेशा आगे बढ़ने की सलाह देते थे। हमले के बाद इलाज के साथ ही पढ़ाई भी की। ब्यूटीशन का कोर्स किया, टेलरिंग सीखी, कंप्यूटर का बेसिक कोर्स भी किया। हिम्मत करके घर से निकलना शुरू किया और कुछ दिन बाद ही मैंने नकाब लगाना भी छोड़ दिया। जब भी बाहर निकलतीं, आस-पड़ोस के लोग भला-बुरा कहते, लेकिन उनकी बातों से मुझे और मजबूती मिलती। आखिर जब मुझ पर अटैक हुआ था, तो इनमें से बचाने कोई नहीं आया। फिर अब मैं उनकी बातों से दुखी क्यों होऊं।'

इस बीच कुछ अच्छा भी हुआ। लक्ष्मी पढ़ाई के लिए जहां भी गईं, उन्हें पूरा सपॉर्ट मिला। लक्ष्मी देश में ऐसिड की ब्रिकी के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लक्ष्मी की याचिका पर ही ऐसिड की खुलेआम बिक्री पर रोक लगाने का आदेश दिया था। लक्ष्मी कहती हैं कि अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई है। बहुत कुछ करना है। मैं ऐसिड की शिकार हर लड़की तक पहुंचना चाहती हूं और उसे हौसला और ताकत देना चाहती हूं।
लक्ष्मी ने छांव नाम से एक एनजीओ बनाया है, जो ऐसिड अटैक की शिकार लड़कियों के पुनर्वास पर काम कर रहा है। वह एक टीवी शो होस्ट कर रहीं हैं। देहरादून की एक संस्था ने हर साल सम्मान देने का ऐलान किया है। कई अवॉर्ड से उन्हें नवाजा जा चुका है। बेशक लक्ष्मी का हौसला देख तमाम लड़कियां अपनी जिंदगी को नई दिशा देने में जुटी हैं।

ऋतुः गजब हिम्मत
हरियाणा के रोहतक जिले में चमनपुरा की रहनेवाली ऋतु पर उनकी बुआ के बेटे ने तेजाब फेंकवाया था। यह मई 2012 की बात है। घटना के एक महीने के अंदर इस अपराध में 18 लोग पकड़े गए थे। 5-6 अब भी जेल में हैं। अब तक उनके छह ऑपरेशन हो चुके हैं, जबकि कई होने बाकी हैं।

ऋतु पिछले कई महीनों से दिल्ली में रह रही हैं। 19 साल की रितु उस लम्हे को याद कर सिहर जाती हैं। वह बताती हैं, 'बस सब जल रहा था और मैं चिल्ला रही थी। कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया। मैं बेहोश हो चुकी थी। कौन मुझे अस्पताल ले गया, कुछ नहीं पता, लेकिन मेरे भाई रवि ने बहुत मदद की। इलाज से लेकर आरोपियों को जेल भिजवाने तक, सारे काम उन्होंने ही किए। रवि भाई ही मेरी ताकत हैं।'

ऋतु जब दिल्ली आई थीं, तो अपने झुलसे चेहरे को स्कार्फ से ढंक कर रखती थीं। तब किसी से मिलने की हिम्मत नहीं होती थी, लेकिन अब वह पूरे आत्मविश्वास से भरी हैं। वह कहती हैं, 'अब मैं आजाद हूं। चेहरा भी नहीं छुपाती। मैंने कुछ गलत नहीं किया था कि समाज से छुपती फिरूं। उसे छुपना होगा, जिसने मेरे साथ इतनी घिनौनी हरकत की। अब मैं जल्दी ठीक होकर पहले की तरह फिर से क्रिकेट खेलना चाहती हूं। अगर डॉक्टर ने खेलने की इजाजत नहीं दी, तो मैं कुछ और करूंगी। मैंने कार्ड डिजाइन करना सीख लिया है और ड्रेस भी डिजाइन करना चाहती हूं।'

गीता व बेटी नीतूः एक-दूजे का हौसला
आगरा के शाहगंज में शुरोकटरा निवासी गीता को वह तारीख याद नहीं, जब वह ऐसिड अटैक का शिकार बनी थीं। शायद वह उसे याद भी नहीं करना चाहतीं, लेकिन वह और उनकी बेटी नीतू ऐसी जिंदगी जी रही हैं, जिसके बारे में सोच कर भी दिल दहल जाए। यह और भी दुखद है कि उन्हें यह बदतर जिंदगी देनेवाला कोई और नहीं, खुद गीता का पति और नीतू का पिता है।

नशेड़ी पिता ने रात में सोते वक्त अपनी दोनों बच्चियों और बीवी पर तेजाब फेंका था। गीता की डेढ़ साल की बेटी की उसी वक्त मौत हो गई, जबकि 3 साल की नीतू की दोनों आंखें बर्बाद हो गईं। नीतू की मां का आधा चेहरा जल गया था। आंखें भी जल गईं। मां का इलाज दिल्ली के एम्स में चल रहा है। नीतू कहती हैं, 'मैंने तो कभी खुद को शीशे में देखा भी नहीं। बस यह अहसास होता है कि मेरे आगे कोई है। जब से होश संभाला, ऐसी ही हूं।' हालांकि नीतू के हौसले कम नहीं हुए हैं। वह कहती हैं, 'बस देख नहीं सकती। बाकी मैं किसी से कमजोर नहीं हूं।'

गीता बताती हैं कि बेटियां होने से पति नाराज रहता था। बच्चियों के लिए कुछ लाता भी नहीं था। घर का खर्च गीता ही दूसरों के घरों में बर्तन और झाड़ू-पोंछा करके चलाती थीं। अजीब विडंबना देखिए कि गीता ने अपने पति को सलाखों के पीछे तो भिजवाया,लेकिन परिवार के दबाव में केस वापस भी लेना पड़ा। गीता फिर उसी के साथ रहने लगी, जिसने उस पर ऐसिड फेंका था। गीता फिर एक और बेटी की मां भी बनीं। वह बताती हैं, 'मुझे डर रहता है कि वह नशे में कुछ भी कर सकता है। कहीं मेरी छोटी बेटी की जिंदगी भी खराब न कर दे, इस डर से मैं उसे हमेशा अपने साथ रखती हूं।'

रूपाः दुनिया की नजरों से घबराना क्यों?
मुज्जफ्फरनगर के गांव इस्लामपुर घासोली में अगस्त 2008 की एक रात रूपा की सौतेली मां ने सोते समय उन पर ऐसिड फेंक दिया था। वजह, उसकी निगाह रूपा की मां के जेवरों पर थी, जो परिवार वाले रूपा को शादी में देना चाहते थे। हमले के बाद सौतेली मां कुछ महीने जेल में रहने के बाद बाहर आ गई और उसे गलती पर पछतावा भी नहीं है। रूपा समझ नहीं पा रही कि जब उनकी कोई गलती नहीं थी, तो फिर उसे जिंदगी भर की सजा क्यों मिली? रूपा अब अपने चाचा के साथ रह रही हैं और पिता उसी सौतेली मां के साथ।

रूपा अब उन बातों से बहुत आगे निकाल आई हैं। वह कहती हैं, 'अब सिर्फ अपने लिए नहीं, अपनी जैसी दूसरी लड़कियों के लिए कुछ करना है। रूपा सिलाई और डिजाइनिंग का काम सीख रही हैं। वह अपनी सौतेली मां को सजा दिलाना चाहती हैं ताकि फिर कोई मां अपनी बच्ची के साथ ऐसा न कर सके। वह पहले नकाब पहनती थीं, काला चश्मा लगाती थीं और घर से बाहर निकलने से घबराती थीं। लेकिन अब उनकी जिंदगी को नई राह मिल गई है। रूपा के कई ऑपरेशन हो चुके हैं। मासूमियत से कहती हैं, 'बहुत दर्द होता है ऑपरेशन के वक्त। मैं चाहती हूं कि तेजाब की बिक्री पूरी तरह बंद हो ताकि मैं जिस दर्द से गुजरी हूं, कोई और उससे न गुजरे।'

मदद को खुलकर आगे आएं
स्टॉप ऐसिड अटैक कैंपेन शुरू करने वाले लक्ष्मी के पति आलोक दीक्षित कहते हैं कि ऐसिड के हमले के बाद इन महिलाओं का सिर्फ शरीर नहीं, पूरा वजूद झुलस जाता है। ऐसे में परिवार और दोस्तों को इनकी हौसला अफजाई के लिए आगे आना चाहिए। अगर आपके सामने किसी पर ऐसिड से अटैक हो, तो आवाज उठाएं और पीड़िता की मदद करें। उस पर जितना हो सके, पानी डालें। इससे शरीर पर तेजाब का असर कम होगा। ऐसिड पीड़ित महिलाओं के लिए 'छांव' संस्था 'शीरोज़' नाम से कैफे खोल रही है, जहां इनके पुनर्वास के लिए कई तरह की योजनाएं हैं। ये महिलाएं ही इन कैफेज़ को चलाएंगी और इनमें पीड़ितों द्वारा बनाया गया सामान ही बेचा जाएगा।

बिना आईडी प्रूफ ऐसिड नहीं
ऐसिड अटैक की बढ़ती वारदातों पर सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैये के बाद केंद्र सरकार ने इसकी बिक्री पर कड़ी निगरानी रखने का नियम बनाया। साथ ही पीड़ित को बड़ी राहत देना भी तय किया। इसके मुताबिक ऐसिड अटैक पीड़ित को केंद्र सरकार की ओर से 5 लाख रुपये का मुआवजा देने के साथ ही अदालत जो जुर्माना लगाएगी, वह भी देने का प्रावधान किया गया। ऐसिड हमला करने वालों को 10 साल की जगह उम्रकैद का प्रावधान किया गया। यह भी नियम बनाया गया कि बिना आईडी प्रूफ किसी को ऐसिड नहीं बेचा जाएगा। साथ ही, दुकानदार को कस्टमर से खरीदने की वजह भी पूछनी होगी। बिक्री पर निगरानी का जिम्मा संबंधित इलाके के एसडीएम को सौंपा गया।

... पर दुकानों पर सरेआम हो रही बिक्री
दिल्ली में ऐसिड खुलेआम बिक रहा है और दुकानदार खरीददार से कोई भी सवाल भी नहीं पूछते। एनबीटी ने केशवपुरम, पीतमपुरा और नरायणा जैसे इलाकों में रिऐलिटी चेक किया तो पाया कि ऐसिड खुलेआम बिक रहा है। केशवपुरम मेट्रो स्टेशन से कुछ ही दूरी पर बी-4 ब्लॉक के जनरल स्टोर में खुलेआम ऐसिड की बोतल आपको मिल जाएगी। सी-4 ब्लॉक के पास भी दुकान पर तेजाब बेचा जा रहा है। हमने बोतल मांगी तो दुकानदार ने वजह भी नहीं पूछी। पीतमपुरा के एनपी ब्लॉक के एक जनरल स्टोर में भी ऐसिड बेचा जा रहा है। यह स्टोर रेजिडेंशल कॉलोनी में ही मौजूद है।

Wednesday 22 April 2015

मरो किसानों मरो कि हम राजनीति करते हैं

आपके बीच में झूलता किसान
पूजा मेहरोत्रा
देश के किसान मर रहे हैं। पहले भी मरते रहे हैं और आगे भी मरते रहेंगे। कभी प्राक़तिक आपदा उन्‍हें मारती रही है तो कभी गरीबी उनका खून चूसती रही है। शरीर में कुछ बच गया तो देश के ठेकेदारों की राजनीति उन्‍हें मार रही है। पिछले दो महीने से कोई ऐसा दिन नहीं बीता जब किसानों की मौत और आत्‍महत्‍या की खबरें न आई हों। उनकी मौत पर राजनीति चमकाने के लिए देश के नेताओं ने बड़ी बड़ी बातें न की हो, मुआवजा देने के लिए बडे बडे ऐलान न किए हों। लेकिन परिणाम फिर भी वही है मरता किसान।  
 हद तो तब हो गई जब अपने आपको संवेदनशील गरीबों की सरकार, गरीबों की आवाज बन कर आया बताने वाले के सामने ही एक किसान झूल गया। दरिंदगी देखिए, संवेदनहीनता की पराकाष्‍ठा देखिए, इंसानियत का मुखौटा ओढे इन बहरूपीओं को देखिए एक भी ठेकेदार नहीं उठा। जानते थे वो झूलने जा रहा है, सभी राजनीति गर्म कर रहे थे। उसे जाने दे रहे थे। जिसके लिए बारात सजाई गई थी, बैंड बाजे बजाए जा रहे थे,  बातों की तान छेडी जा रही थी, राजनीति की आग में कराडी रोटी सेकी जा रही थी वही दूल्‍हा किसान झूल गया। उसे झूलने दिया गया। मीडिया की आंखें खबरे बना रही थीं। लाइव टेलीकास्‍ट हो रहा था। ब्रेकिंग न्‍यूज हर चैनल पर फलैश हो रहा था। किसान मर रहा था। खबरिया चैनलों के पत्रकार हांफते हांफते खबरे दिखा रहे थे। किसान उनके लिए बस एक खबर था, सिर्फ खबर।   टीआरपी टीआरपी का खेल था वो किसान। पेड पर झूलने वाला गरीब किसान था, उसने हाथों में झाडू उठा रखी थी। उसे सफाई की उम्‍मीद थी लेकिन वह भी क्‍या जानता था कि ये आप के ठेकेदार उसकी मौत पर भी मजे लेंगे। रोटी को सेकने के लिए और लकडी लगाएंगे। जब देखा आंच तेज हो गई रोटी तो जल रही है, तो खुद की रोटी बचाने के लिए एकबार फिर पुलिस को बीच में घसीटा। भगवान का भी सहारा लिया।
किसी का कुछ नहीं गया। गया तो परिवार का एक लाल गया, तीन बच्‍चों का बाप गया, मां की आंख का तारा और बीबी का सहारा गया और जमीन का रखवाला गया। क्‍या पता उसके खेत का गेहूं, चावल क्‍या हमारे आपके पेट में जाता रहा होगा। लेकिन क्या करना है ये जानकर कि कौन मर रहा है, क्‍यों मर रहा है, हम जिनकी पीठ पर चढ कर आज सरताज बने हैं वो लुटता है लुटे, मरता है मरे हमारी रोटी तो किसी किसान का बेटा जो आज रसोइया बन चुका है बना ही देगा।
किसान के घर अनाज का दाना नहीं बचा है। वह दाने दाने को मोहताज हो रहा है लेकिन ये राजनीति के दंरिदें रोटी जला नहीं राख करने में तुले हैं। एक किसान हजारों के बीच में अपने, परिवार के और अपने मासूमों के अरमानों को झूलता हुआ छोड कर जाने के लिए पेड़ से आवाजें लगा रहा था। और उसी पेड़ के नीचे आप का जयकारा लग रहा था। वह झूल गया, झूलता रहा। आप राजनीति करते रहे। वोट बैंक बनाते रहे। बेचारे की हलक में एक दो सांसे बची होगी लेकिन जब बचाने वाले नौसिखिया हों तोबचाना किसे था। उसे तो पेड से बचाने के नाम पर जमीन पर फेंक दिया गया। उसे बचाना भी कौन चाहता था। वहां तो सभी इकटठे ही उसे मारने के लिए हुए थे। एक और किसान राजनीति की भेंट चढ गया। लेकिन इन सबके बीच अगर नहीं रुकी तो ‘आप’की, हाथ की और चाय लेकर फूल खिला रहे साहब की राजनीति । चढाइए तवा बनाइए रोटी।
 अब भी कहा पेट भरा था इनका। कल तक बिजली की नंगी तारों को जोडने के लिए कहीं भी चढ जाने वाला, सियासत की बलीवेदी पर अपने आपको स्‍वाहा कर देने के लिए 10 दिनों तक पानी पर रहने वाला वो आम आदमी खास बना हुआ था। वह देख रहा था कि गरीब किसान पेड़ पर चढ रहा है, उसे लगा राजनीति गरम होगी। उसे क्‍या पता था आज की रात वो खूनी हो जाएगा। आवाजें लगा वह उसे बचाना नहीं चाह रहा था राजनीति कर रहा था। उसकी खासियत ये थी कि न वो उठा और न ही उसने अपने साथियों को ही उसे बचाने के लिए ही कोई आदेश दिया। क्‍या बेचारगी की गरीब सरकार चुनी है दिल्‍ली वालों ने। आज मैं दावे के साथ कह सकती हूं जिन लोगों ने झाडू उठाई थी उसे सफाई का हथ्यिार बताया था कल से वे उसे घर के उस कोने में रख देंगे जहां उसे कोई न देख सके। कल अपने ऑफिस में पुलिस कमिशनर के मुंह पर फाइल फेंकने वाला अपने आपको लाचार बता रहा था। कहां हैं वो थप्‍पड मारने वाले आ जाओ मैदान में आज तुम्‍हारी जरूरत है। अगर आपका चेहरा ऐसा है तो धिक्‍कार है आप पर। आपके वोट पर और आपकी राजनीति पर। क्‍या आज रात नींद आएगी उन हत्‍यारों को। कब तक इस राजनीति की आग में ईंधन बनेंगे किसान।
देश की राजधानी में हजारों लोगों के सामने किसी का यूं झूल जाना और उसका किसी को बचाने के लिए आगे न आना संवेदनहीनता नहीं तो क्‍या है। आपने ट्वीट किया, क्‍या संवेदनशीलता थी आपकी। आइए सामने देश को जरूरत है, खुद बांटिए उनको खुशियां। ऐलान मत कीजिए। मेक इन इंडिया बाद में कर लीजिएगा पहले किसान बचाइए। ये है असली मेक इन इंउिया।  ऐलान करके जिम्‍मेदारी खत्‍म नहीं होगी। नेता भगवा पहन फूल खिलाए मुंह झुकाए हितैषी बने नहीं चाहिए। हक दीजिए, हमारा हमारे किसान का हक। बाबा तो इतने दुखी थे कि आवाज ही नहीं निकल रही थी। ओह किसान। अब तुम्‍हारी जरूरत नहीं रही है इस देश को। अब गांव नहीं स्‍मार्ट सिटी बनेगा देश वहां किसानों की जरूरत नहीं है।  तुम्‍हारी मौत जरूरी है और तुम्‍हारी मौत पर ये मातम भी जरूरी है। तो एक काम करो तुम मरते ही रहो, आखिर तुमसे ही तो वोट मिलेगा। मरो किसानों मरो कि हम राजनीति करें।