Monday 28 September 2015

साथी हाथ बढ़ाना

जिंदगी का मोल इमरजेंसी के हालात समझाते हैं। किसी हादसे, एक्सिडेंट या अचानक दौरा पड़ जाने जैसे हालात में जानलेवा बन जाते हैं। जब वक्त पर मदद नहीं मिलती। एक्सपर्ट्स की मदद से पूजा मेहरोत्रा बता रही हैं कि क्या करें जब कोई कर रहा हो मेडिकल इमरजेंसी का सामना :

जिंदगी में हादसा कभी भी कहीं भी हो सकता है। सड़क पर अक्सर एक्सिडेंट होते हैं, लोगों की तबियत बीच राह खराब हो जाती है। कई बार तो जान से हाथ धोने की नौबत आ जाती है। क्या मेडिकल इमरजेंसी के हालात में किसी की मदद करके उसकी जान पर आए संकट को टाला जा सकता है? मेडिकल साइंस का मानना है कि हां ऐसा किया जा सकता है। हम जरा से अलर्ट होकर बहुतों की मदद कर सकते हैं।

कहीं भी हो सकता है कुछ भी
इंसानी शरीर नेचरल बैलेंस का एक शानदार नमूना है। शरीर के भीतर से लेकर बाहर तक सब एक फाइन बैलेंस में चलता है। यह संतुलन जरा सा इधर से उधर हुआ और हादसा हो जाता है। आइए जानते हैं कुछ ऐसी ही परिस्थितियां जिनमें पड़ती है मदद की जरूरत : 

कार्डियक अरेस्ट (हार्ट फेल), एक्सिडेंट, अस्थमा अटैक, बेहोशी, पैनिक अटैक, मिरगी (फिट्स, एपलैप्सी) चोकिंग (खाना खाते वक्त या पानी पीते वक्त सांस की नली में कण के चले जाने पर सांस का रुक जाना), आगजनी के शिकार (बर्न), प्रेगनेंट लेडी को लेबर पेन शुरू हो जाना और किसी बुजुर्ग का बाथरूम में गिर जाने पर कूल्हे की हड्डी का टूट जाना। अक्सर ऐसी किसी भी घटना को देखकर हाथ-पांव फूल जाते हैं। ऐसी परिस्थिति को देख या तो लोग आगे नहीं आते और यदि कोई आगे आता भी है तो उन्हें पता नहीं होता कि करना क्या है। 
 
क्या हम ऐसे हालात के लिए तैयार हैं? क्या किसी का एक्सिडेंट हुआ है और हम आंख फेर कर आगे बढ़ जाएंगे या फिर हमें रुक कर उसकी मदद करनी चाहिए? उसका इलाज के लिए डॉक्टर बुलाने के साथ उसे सांत्वना देनी चाहिए कि सब ठीक है। अलर्ट हो जाइए और मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाइए लेकिन सावधानी से कि आपकी मेहनत रंग लाए और किसी की जान बच जाए।

हार्ट अटैक
लक्षण
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हार्ट अटैक होने पर चेस्ट की बाईं तरफ तेज दर्द, बेचैनी, सांस लेने में तकलीफ होती है।
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जिसे अटैक आया हो, वह न तो ठीक से खड़ा हो पाता है और न ही बैठ पाता है। ऐसे में पता ही नहीं चलता कि करना क्या है।
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ऐसे समय में डॉक्टर और एंबुलेंस को फोन तो आप कर देते हैं लेकिन यही कुछ मिनट मरीज के लिए बहुत खास होते हैं।
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हार्ट फेल्योर में ब्लड प्रेशर कम हो जाता है और सांस फूलने लगती है।  
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हार्ट से जुड़े मामले में मरीज के पास चंद मिनट होते हैं। ऐसे में सबकुछ बहुत तेजी से समझते हुए एक्ट करना होता है।

क्या करें
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यदि ऐसी कोई घटना बस में, बाजार में, ऑफिस में, मॉर्निंग वॉक के दौरान सड़क पर चलते हुए घटती हुई देंखे तो सबसे पहले मरीज को लिटाएं।
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मदद के लिए एंबुलेंस को बुलाने के साथ डॉक्टर फोन पर भी सलाह दे देते हैं।
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मरीज का हौंसला बढ़ाने के साथ उसे रिलैक्स करने की कोशिश करें।
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यदि मरीज ने टाई और बेल्ट बांध रखी है तो उसे खोलें। देखें को मरीज ने बदन को कसने वाला कोई कपड़ा न पहना हो। जूता खोलें, मोजा भी हटा दें।
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महिला मरीज है तो उनके ब्रा का हुक खोल दें, साड़ी या सलवार का नाड़ा ढीला करें।
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मरीज को कुछ खिलाने-पिलाने की कोशिश न करें। हार्ट अटैक की स्थिति में कुछ भी पीने को नहीं देना है। यह घातक हो सकता है।
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अगर सिम्पटम हार्ट अटैक की ओर इशारा कर रहे हैं तभी पानी में घोल कर एसप्रिन दें।
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कार्डियक अरेस्ट
लक्षण

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इसमें इंसान अचानक बेहोश हो जाता है। गर्दन एक ओर लुढ़क जाती है। हाथ पैर ठंढे हो जाते हैं। धड़कन और सांस रुक जाती है।
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इसमें मरीज के हालात सुधारने के लिए महज 2 से 10 मिनट का वक्त होता है।
क्या करें
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कार्डियक अरेस्ट में मदद करने के लिहाज से सीपीआर10 नाम की टेक्निक सीखनी चाहिए। 
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सीपीआर10 एक जीवन रक्षक टेक्नीक है, जिसे कोई भी सीख सकता है। इसमें मुंह में मुंह लगाकर सांस देने की जरूरत भी नहीं होती है।
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फिर दोनों हाथों को मरीज के चेस्ट के बीचों बीच रखकर तेजी से सीपीआर10 दें। 
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इस तकनीक में चेस्ट के बीचों-बीच दोनों हाथ एक दूसरे के ऊपर रखकर बहुत तेजी से छाती पर धक्का मारना होता है।
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ऐसे में मरीज को फ्लोर पर सीधा लिटाएं, जिसमें उसका चेहरा छत की ओर होना चाहिए।
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जो भी सीपीआर परफॉर्म कर रहा है, उसकी कुहनी मुड़नी नही चाहिए और दोनों हाथ इंटरलॉक्ड होने चाहिए।
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हाथ का हथेली वाला भाग छाती के बीच में होना चाहिए, दूसरा उस हाथ के ऊपर हथेली की ओर ही रखा गया होना चाहिए।
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छाती को दबाने की रफ्तार प्रति मिनट 100 होने के साथ-साथ स्पीड तेज होनी चाहिए।
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यदि कोई सहायता के लिए हो तो हाथ और पैर की मालिश भी कराएं और मुंह से भी सांस जिसे रेस्क्यू ब्रीद भी कहते हैं दें।
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सीपीआर की तकनीक को अच्छी तरह समझने के लिए www.youtube.com/watch?v=Mo6XfFIbSEE पर जाएं।
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लगातार चेस्ट पर तेज हाथों से दिए जा रहे दवाब की वजह से मरीज की सांसे वापस आ जाती है और मरीज की जान बचने के चांस बढ़ जाते हैं।
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सीपीआर तकनीक का उपयोग करते समय ध्यान रखे कि इसे सिर्फ हार्ड सरफेस पर ही किया जाना चाहिए।
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रोड एक्सिडेंट
मेट्रोपॉलिटन सिटी से लेकर छोटे-बड़े शहरों में सभी जगह की सबसे बड़ी समस्या है सड़क दुर्घटना। लापरवाही और फर्स्ट एड की जानकारी न होने से कई जाने चली जाती हैं। एक्सिडेट से मौत के ज्यादातर केसेज में सबसे बड़ी वजह ज्यादा खून का बह जाना होता है। अगर जरा सी सावधानी बरतें और मेडिकल टीम और पुलिस के आने से पहले एक्सिडेंट के शिकार शख्स के बहते खून को रोकने की कोशिश करें तो किसी की जान बचाई जा सकती है।
क्या करें
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सबसे पहले दुर्घटना के शिकार इंसान के शरीर से बहने वाले खून को रोकने की कोशिश करनी चाहिए।
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शरीर के जिस अंग से खून बह रहा है, उसे साफ कपड़े से दवाब के साथ टाइट बाधें। इस बात का ध्यान रखें कि खून का बहाना बंद हो जाए।
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अगर कपड़ा नहीं है तो उस जगह को तब तक दबा कर रखें जब तक कि खून निकलना बंद न हो जाए।
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कोशिश करके 5-10 मिनट के भीतर एक्सिडेंट के शिकार शख्स को मेडिकल हेल्प दिलाने की कोशिश करें।
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अगर दिख रहा है कि हेड इंजरी है, तो आराम से मरीज को ज्यादा हिलाए-डुलाए बिना हार्ड प्लेस पर लिटाएं।
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बहुत सुविधा अगर नहीं मिल पा रही है तो मरीज का सबसे पहले पैर ऊपर कर दें, ब्लड प्रेशर को मेंटेंन करने के लिए हथेली और तलवे को रगड़े जिससे शरीर में गर्माहट बनी रहे।
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अगर स्पाइनल इंजरी है तो व्यक्ति को काफी सावधानी के साथ फ्लैट और हार्ड सरफेश पर लिटाएं।
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मरीज को ज्यादा हिलाने-डुलाने से बचना चाहिए।
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अगर एंबुलेंस या पुलिस मदद को नहीं आई है तब कार या टैक्सी में भी मरीज को लिटाकर ले जाने की ही कोशिश करें।
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यदि मरीज एक्सिडेंट में ठीक दिख रहा है। लेकिन उसका हाथ या पैर उठ नहीं रहा है और तेज दर्द है तो हो सकता है मरीज के शरीर में कहीं हड्डी टूटी हो।
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हाथ पैर में दर्द वाली जगह पर तो कस कर कपड़ा बांध देना चाहिए। अगर किसी लकड़ी का फट्टा या फिर कड़े प्लास्टिक का ही कुछ चपटा या स्टिक जैसी चीज मिल जाए तो उसे दर्द वाले हिस्से को बांध दें। इससे प्रभावित हिस्सा ज्यादा हिलेगा-डुलेगा नहीं। 
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कई बार एक्सिडेंट इतना दर्दनाक होता है, कि मरीज का अंग तक कट जाता है। डॉक्टर की सलाह है कि ऐसी स्थिति में मरीज के कटे अंग को बर्फ में रखकर मरीज के साथ ही डॉक्टर तक पहुंचाने की कोशिश करें।

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अस्थमा
बदलते मौसम में अक्सर अस्थमा के अटैक बढ़ जाता है। अस्थमा सांस की बीमारी है। इसमें सांस लेने वाली नलियों में सूजन आ जाती है जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। बदलते मौसम के साथ ठंढ के दौरान, पहाड़ों पर, एयर पॉलुशन की वजह से या फिर ज्यादा भीग जाने पर अस्थमा का अटैक होता है। पेशेंट की सांसे उखड़ने लगती है। कई बार मरीज को भी पता नहीं होता कि उन्हें अस्थमा अटैक हुआ है। कभी-कभी अटैक इतना तेज होता है कि पेशंट बेहोश हो जाता है या फिर सांस रुकने लग जाती है। अक्सर अस्थमा के मरीज अपनी बीमारी के बारे में जानते हैं और विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार भी रहते हैं। मुसीबत उन मरीजों के लिए ज्यादा होती है जिन्हें अपनी इस बीमारी के बारे मे पता नहीं होता।
यदि किसी को बाजार में, घूमने के दौरान, खेलने कूदने के दौरान, एग्जाम देते वक्त अस्थमा अटैक पड़ जाए तो :
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मरीज को रिलैक्स करने के साथ सबसे पहले उसके कपड़े ढीले करें।
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मरीज को सीधा बिठाएं, अस्थमा अटैक के दौरान मरीज को लिटाना कतई नहीं चाहिए।
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मरीज के आस-पास भीड़ न लगाएं और शांत रहें।
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कुछ खिलाने-पिलाने की कोशिश न करें। खाना-पानी सांस की नली में फंस सकता है और हालत ज्यादा बिगड़ सकती है।
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यदि मरीज बोल सकने की स्थिति में नहीं है तो जितनी जल्दी हो सके डॉक्टर से फोन पर या फिर पास के अस्पताल जाने की कोशिश करें।
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चोकिंग 
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खाने या पीने के दौरान सांस की नली में एक छोटा सा कण भी फंस जाए तब यह स्थिति पैदा हो जाती है। इसकी वजह से मरीज न तो सांस ले पाता है और न कुछ बोल ही पाता है।
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कई बार बच्चे खेल खेल में कुछ भी निगल लेते हैं। 
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बच्चों में चोकिंग की सबसे बड़ी शिकायत क्वाइन निगलने से होती है।
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बड़े लोगों में अक्सर खाने-पीने के दौरान हंसने-बोलने से खाना सांस की नली में चला जाता है और उसके बाद हालत नाजुक हो जाती है।
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चोकिंग के वक्त दिमाग को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है और ऐसी स्थिति में कई बार मरीजों की जान पर बन आती है और मरीज बेहोश हो जाता है।

चोकिंग के लक्षण
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अक्सर बच्चे कुछ निगल लेते हैं तब और बड़े खाने पीने कुछ फंस जाने के दौरान पहले खुद, ख ख ख या फिर ह ह ह का साउंड निकाल कर ठीक होने की कोशिश करते देखे जाते हैं।
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गला सहलाते हैं। मामला तब गंभीर हो जाता है जब कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं होते और न ही सांस ले पाते हैं।
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ऐसी परिस्थिति में कई बार आंख से पानी तक निकलने लग जाता है। 
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अगर कुछ ज्यादा देर तक यही अवस्था रहती है तब मरीज के हाथ पैर के नाखून नीले और होंठ सूखने लगते हैं। मरीज कभी-कभी बेहोशी की हालत में पहुंच जाता है।

कैसे और क्या करें
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सबसे पहले यह समझना होगा कि गले में फंसा क्या है। अगर बच्चे ने सिक्का या कोई चीज निगल ली है तो गर्दन ऊपर न करें, अक्सर खाने-पीने के दौरान गले में कुछ फंसने पर हमें सलाह दी जाती है कि हम ऊपर देखें।
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बच्चे ने अगर कुछ निगल लिया है तो वह गर्दन ऊपर करने पर और फंस सकता है या फिर अंदर जा सकता है। ऐसे में स्थिति और खराब हो सकती है।
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ऐसी किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए सबसे पहले गर्दन के पीछे वाले हिस्से पर मुट्ठी बना कर धीमे-धीमे मुक्के मारना चाहिए।
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यदि स्थ्िाति ज्यादा गंभीर लग रही है तो उस इंसान के पीछे खड़े हो जाएं और उसके हाथ को उसकी कमर के आसपास ऐसे रखें की हाथ उससे लिपटा हुआ लगे। व्यक्ति को थोड़ा आगे की ओर झुकाते हुए उसकी नाभि के थोड़ा सा ऊपर अपने एक हाथ की मुट्ठी बना कर रखें और दूसरे हाथ से उस मुट्ठी को दबाएं। जैसे आप उसे उठाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा करने से कई बार गले में फंसी चीज सामान झटके से बाहर आ जाता है। अगर फिर भी न निकले तो मेडिकल हेल्प आने तक कोशिश करते रहें।

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आग लग जाने पर

जलने की घटना सिर्फ किचन में ही नही होती, बल्कि रोड एक्सिडेंट में कार में आग लग जाने की घटनाएं आम हो गई हैं। दीवाली के दौरान आगजनी और पटाखे की वजह से बहुत सारी घटनाएं इस तरह की दुर्घटनाओं की सुनने को मिल जाती है। 

क्या करें
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आग लग जाने और धुआं उठने की स्थिति में सबसे पहले जमीन में लेट जाना चाहिए। चूंकि धुआं ऊपर की तरफ उठता है, ऐसे में खड़े रहने से घुटन और सांस न ले पाने की समस्या पैदा हो सकती है।
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अगर आग ऑफ़िस, घर में या किसी मकान में लगी है तो खिड़की दरवाजे खोल देने चाहिए।
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यदि इस आगजनी में किसी के शरीर में आग लग गई हो तो उस पर पानी आदि न डाल कर किसी कंबल जैसी चीज में उसे लपेट कर आग बुझाने की कोशिश करनी चाहिए।
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सुरक्षित स्थान पर ले जाकर जल्द से जल्द शरीर से कपड़े निकाल दें। इससे शरीर को कम से कम नुकसान होगा।
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जलने वाले ने यदि अंगूठी, घड़ी, गहने या किसी भी मैटल का कुछ पहना रखा है तो उसे तुरंत निकाल दें। ये चीजें गर्म होकर शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
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उसके बाद शरीर के जले हुए भाग और शरीर पर पानी डालना चाहिए। इससे जलने की गहराई खत्म होती है और दर्द भी कम होता है।

क्या न करें
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आग के बुझते ही शरीर पर पानी डालें, याद रखें बहुत ठंडा पानी न डालें। ऐसा करने से जान जाने का खतरा बना रहता है।
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कई बार लोग जले हुए अंग पर टूथपेस्ट, घी और तेल लगा देते हैं, बिल्कुल न लगाएं। इससे शरीर में इन्फेक्शन बढ़ने का खतरा बना रहता है।
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जली जगह पर सीधे बर्फ न रगड़े और ना ही फ्रिज का ठंडा पानी ही डालें।

बेहोशी
अक्सर किसी बड़ी दुर्घटना या फिर घर के बाहर किसी वजह से लोग बेहोश हो जाते हैं। ऐसे में भीड़ तो बहुत लग जाती है, लेकिन मदद के लिए आगे आए लोग एंबुलेंस और पुलिस का इंतजार करते रहते हैं। जब तक कोई मेडिकल हेल्प मिले हम मदद कर सकते हैं।
क्या करें
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सबसे पहले मरीज को हवादार और ठंडी जगह पर लिटाएं। अगर ठंड का मौसम है तो गर्म और हीटर वाली जगह पर लिटाएं।
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सबसे पहले बॉडी को टाइट कर रहे कपड़ों को हल्का करें, बेल्ट खोल दें, टाई लगाई है तो खोल दें, शर्ट के बटन खोल दें, जूता मोजा खोल दें।
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महिला के साथ भी बदन को कसने वाले कपड़ों को जैसे जींस और पैंट के बटन को खोल कर ढ़ीला करें, ब्रा का हुक खोल दें।
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किसी आराम दायक जगह पर ले जाकर पैरों को तकिया आदि का सहारा देकर ऊंचा कर दें।
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चिन (ठुढी को) को थोड़ा ऊपर उठा दें, इससे ब्लड सर्कुलेशन ऊपर की ओर जाता है।

क्या न करें
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आनन फानन में अक्सर लोग बेहोशी को फिट या मिरगी समझ कर जूता चप्पल सुंघाने लग जाते हैं। ऐसा बिल्कुल न करें।
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पानी या किसी तरह की पीने की सामग्री न दें। वह गले में फंस सकती है और सांस रुक सकती है।
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हाथ-पैरों पर नजर रखें, अगर ठंडे हो रहे हैं तो उन्हें गर्म रखने के लिए हाथ पैर की मसाज करें।
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सबकुछ ठीक है, आपको कुछ नहीं होगा, सब ठीक हो जाएगा जैसी बातें बोल कर सांत्वना दें और अगर मरीज बोलने की हालत में है तो उसकी परेशानी जानने की कोशिश करें।

 
मिरगी या इपलैप्सी
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मिरगी में अक्सर लोगों का शरीर अकड़ जाता है, मुंह से थूक निकलने लगता है। ऐसे में लोग मरीज को जूता सुंघाने, मारने पीटने तक लग जाते हैं। ऐसा बिलकुल नहीं करना है।
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पहले मरीज को आराम से लिटाएं।
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फिट्स आने पर अक्सर लोगों के दांत पर दांत चढ़ जाता है, जिससे जीभ कटने का भी खतरा रहता है।
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कुछ लोग ऐसी परिस्थिति में मुंह में उंगली डाल देते हैं। ऐसा न करके दातों के बीच चम्मच या ऐसा ही कुछ रखा जा सकता है। 
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मरीज अक्सर 4-5 मिनट में होश में आ जाता है। इस लिए बहुत घबराने की बात नहीं होती है। बस ये ध्यान रखना है कि बेहोशी के हालत में कुछ खिलाना-पिलाना नहीं है।

 
पेट में दर्द
कई बार ऑफिस में बैठे बैठे, बाजार में या रात में सोते हुए पेट में अचानक दर्द उठता है। दर्द इतना अधिक होता है कि लगता है जान निकल जाएगा। 
क्या करें
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अक्सर दर्द के दौरान लोग पानी पी लेते हैं। ऐसा न करें। 
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आराम से लेट जाएं। अगर डॉक्टर के पास जा सकते हैं तो जाएं नहीं तो एंबुलेंस को फोन करें।
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अगर घर में पेन किलर है तो Colic pain killer लें या फिर केमिस्ट से Drotin दवा मांगे।

 

प्रेगनेंट विमन और लेबर पेन (डिलीवरी)
पिछले कई दिनों से खबरें सुर्खियां बनती रही हैं कि कभी रेलवे स्टेशन पर, कभी मेट्रो में तो कभी मार्केट में प्रेगनेंट महिला को लेबर पेन शुरू हो गया। इतना वक्त भी नहीं मिला कि उसे हॉस्पिटल तक पहुंचाया जा सके। यह एक महिला और बच्चे दोनों के लिए नाजुक मौका होता है, इंफेक्शन के सबसे ज्यादा चांसेज होते हैं। ऐसे में मां और बच्चे को बचाना और अस्पताल तक सही सलामत पहुंचाना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है।
क्या करें
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ऐसी भी किसी परिस्थिति में महिलाएं बहुत घबरा जाती हैं, सबसे पहले महिला को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करें कि वह ठीक है और बच्चा भी सुरक्षित है।
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अगर भीड़ एकत्रित हो रही है है तो उसे वहां से हटाएं।
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अगर बच्चा बाहर आ गया है तो बहुत सावधानी से प्लासेटा में धागा बांध दें।
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बच्चे को गर्भनाल से अलग करने की कोशिश न करें, संक्रमण के चांसेज होते हैं
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अगर बच्चा बाहर आ गया है, तो सबसे पहले बच्चा का रोना जरूरी होता है। चूंकि नली बहुत बड़ी नहीं होती ऐसे में बच्चे को रुलाने की कोशिश करनी चाहिए।
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बच्चे को धीमें से चुटकी कांटे, पीठ पर थपथपाएं, अगर बच्चा रो दिया तो उसकी रेस्पेरिटरी सिस्टम शुरू हो जाएगा और फिर बच्चे की जान को खतरा नहीं रहता है।
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महिला से हो रही ब्लीडिंग को रोकने के लिए नली बांधनी जरूरी होती है। उसे पतले कपड़े, चिमटी या फिर रबड़ से भी बांधा जा सकता है।
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अगर मां बेहोश नहीं हुई है तो उसे पानी, शिकंजी पिलाया जा सकता है।
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इतनी देर में मेडिकल टीम या फिर एंबुलेंस करने की कोशिश करें।

पैनिक अटैक
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इन दिनों लोगों की सबसे बड़ी समस्या है असुरक्षा।
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जिसकी वजह से वे हर समय टेंशन में रहते हैं और उन्हें कभी भी पैनिक अटैक हो जाता है।
लक्षण
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सांस जल्दी-जल्दी आना, दिल का जोर-जोर से धड़कना और घबराहट होना, सीने में दर्द और डिस्कंमफर्ट, चक्कर आना, पसीना आना, वोमिटिंग और पेट खराब हो जाता, ऐसा महसूस होना कि बेहोश हो जाएंगे, शरीर में झनझनाहट होना, कभी ठंडा लगना कभी गर्मी लगना, डर लगना कि मर जाउंगा, शरीर पर नियंत्रण खो देना और ऐसा लगना कि अब कुछ नहीं बचा।
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पैनिक होने की बड़ी वजह व्यवहार में बदलाव और एंग्जाइटी भी हो सकती है जो अटैक की वजह बनते हैं।
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अगर लगे हाथ पैर कांप रहा है, गला सूख रहा है तो बैठ जाएं, गहरी सांस लें। दिल की धड़कन सामान्य होने दें। पानी पिएं। खुद को शांत करने के लिए ऑल इज वेलसब ठीक है बोलें।
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ऐसी किसी भी परिस्थिति में सबसे पहले खुले स्थान में आए, गहरी लेकिन आराम से सांस लें। बदल को कसने वाले कपड़ों को ढीला करें। लेट जाएं। 
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