Friday 30 June 2017

सरकारी बाबू ज़रा संभलना....अब किया आज का काम कल तो चली जाएगी जॉब

अब तक सरकारी नौकरी का मतलब माना जाता रहा है जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी। लेकिन मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस का नारा देने वाली मोदी सरकार अब सरकारी नौकरी या यूं कहें लालफीताशाही पर लगाम लगाने की तैयारी में जुटी नजर आ रही है.
पिछले वर्ष उसने १२९ कर्मचारियों को कंपल्सरी रिटायरमेंट देकर इसका आग़ाज किया था लेकिन लगता नहीं कि कर्मचारियों ने इससे कोई सबक लिया है । इसलिए इसबार ६७००० सरकारी कर्मचारियों के काम की समीक्षा की जा रही है। सरकारी कर्मचारियों में जो आराम तलबी की चाहत भरी हुई है कि अब उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता..लेकिन सरकार के रूख लगता है कि साठ साल की उम्र तक उनके सरकारी मेहमान बना रहने वाली मानसिकता अब नहीं चलेगी। अगर नौकरी में रहना है तो उन्हें काम करना पड़ेगा। क्योंकि सरकार ने अपने ऐसे आराम तलब कर्मचारियों पर नजरें तिरछी कर दी है..अब समय आ गया है कि नौकरशाही चुस्त दुरुस्त हो और यह काम सख्ती से ही किया जा सकता है।
  केंद्र सरकार केंद्रीय कर्मचारियों के कार्य काल को खंगालने और उनके काम काज की समीक्षा कर रही है।  इस समीक्षा में आईएएस, आईपीएस सहित केंद्र सरकार से जुड़े उच्चपदासीन अधिकारियों सहित हर अफसर और कर्मचारी शामिल हैं। इस रिव्यू का मकसद कर्मचारियों के नॉन परफॉर्मेंस की जांच करना तो है ही, साथ ही कर्मचारियों को यह बतलाना भी है कि आरामतलबी, कामचोरी और भ्रष्टाचार अब नहीं चलने वाला है। हालांकि यह रिव्यू सरकार का वार्षिक कार्यकाल का हिस्सा है। नियमों के मुताबिक केंद्र सरकार के कर्मचारियों का रिव्यू उनके पूरे कार्यकाल में दो बार किया जाता रहा है-पहली बार नौकरी पाने के १५ साल बाद और फिर २५ साल बाद। लेकिन इस रिव्यू की चर्चा इतनी अधिक कभी नहीं रही क्योंकि ऐसा माना जाता है कि केंद्र और राज्य सरकारों के लिए ये कर्मचारी वोट बैंक का अहम हिस्सा होते  हैं.
.अगर नजर दौड़ाएं तो हर वर्ष जिस तरह से सरकारी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिया जाता है और इन्हें अनेक तरह से संतुष्ट रखने की कोशिश की जाती रही है। सरकार अपने कर्मचारियों का प्रदर्शन सुधारने के बजाय इसका इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए करती रही है।  मोदी सरकार ने जिस तरह से इस प्रलोभन को धत्ता बताने का प्रयास किया है वह सराहनीय तब हो जाएगा जब इनमें से अधिकतर कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाए। सरकार जिस तरह से इस रिव्यू के माध्यम से कर्मचारियों में डर बैठाने की कोशिश कर रही है । इसे एक अच्छी पहल के रूप में देखा जाना चाहिए। आंकड़ों पर नजर डालें तो मौजूदा डाटा के अनुसार केंद्र सरकार में कर्मचारियों की संख्या लगभग ४८.८५ लाख है अगर राज्य सरकार के अधिकारियों को जोड़ें तो ये आंकड़े तीन करोड़ के लगभग हैं। लेकिन सरकारी ऑफिसों के कर्मचारियों के लिए आने वाली शिकायतें और लंबित मामलों की संख्या करोड़ों में है। कम से कम अधिकतन शासन के मिशन के साथ आने वाली इस सरकार को ऐसे कर्मचारियों की जरूरत नहीं है जो सरकार के दामाद बने हुए हैं और सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ा रहे हैं।
केंद्रीय कर्मचारियों के काम काज की समीक्षा केंद्र सरकार की पुरानी योजनाओ में से है। लेकिन पिछली केंद्र सरकारें इस रिव्यू को रस्म अदायगी की तरह निभाती रही हैं। लेकिन एनडीए की सरकार ने इस समीक्षा को गंभीरता से लिया और पिछले साल इस रिव्यू के अंतर्गत १२९ ऐसे कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कम्पल्सरी रिटायरमेंट दिया था,जो नॉन परफॉर्मर थे। इन कर्मचारियों में आईएएस और आईएएस सहित कई वरिष्ठ केंद्रीय कर्मचारी शामिल थे।
हमारी नौकरशाही के लेट लतीफी, आरामतलबी का ख़ामियाज़ा सरकार ने समय समय पर भुगता है. सरकारी योजनाओं का समय पर पूरा न होना..बन रहे पुल का ढह जाना इसका साक्षात नमूना रहा है। इंटरनेशल सर्वे में हमारी नौकरशाही भ्रष्टतम मानी जाती रही है, जिसकी वजह से भारतीय बार - बार शर्मसार होते रहे हैं। शायद यही वजह है कि जिस तेजी से देश का विकास होना चाहिए था, उस तेजी से विकास होता नहीं दिख रहा है..विकास की गति पर भ्रष्टाचार की बेड़ियां पड़ी हुई हैं। जब भी कोई कर्मचारी सरकारी नौकरी में आता है तो उसे शपथ दिलाई जाती है- सेवा की- वे सरकार में सेवा के लिए आए हैं। लेकिन जैसे ही ये कर्मचारी नौकरी पा लेते हैं, उनकी सेवा की भावना काफूर हो जाती है। यहां तक कि कर्मचारी समय पर ऑफिस भी नहीं आते है..ऑफिस के समय से पहले ही घर के लिए निकल जाते हैं..लंच आवर में ऑफिस के बाहर घंटों धूप सेकते रहते हैं..लेकिन अब केंद्र सरकार ऐसे कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी कर रही है। यही नहीं यदि कर्मचारी सरकार की आचार संहिता का पालन नहीं करते हैं तो वे दंड के अधिकारी भी हो सकते हैं. समीक्षा की जा रही कर्मचारियों में २५००० कर्मी तो अखिल भारतीय तथा समूह ए सेवाओं के हैं । इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय राजस्व सेवा आदि के हैं।

Sunday 4 June 2017

सरकार कुछ ऐसी व्यवस्था बनाए तो बात बन जाए

 पूजा मेहरोत्रा
अगर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और निजी कंपनियां एक जुट हो जाएं तो हमारे देश की बड़ी समस्या बेरोजगारी चुटकियों में निपट सकती है..बस थोड़ी सी मेहनत, थोड़ी सी लगन और थोड़ी सी सतर्कता की जरूरत है... जिस तरह से सरकार ने मेडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के परीक्षार्थियों के लिए एक ही परीक्षा प्लैटफॉर्म का निर्माण किया है।  ठीक उसी तरह अगर नौकरी का प्लैटफॉर्म बन जाए तो न केवल टैलेंट को एक सही जगह मिल पाएगी वहीं दर दर भटकते छात्रों को भी छत मिलने का आसान मिल जाएगा...


कैसा हो अगर सरकारी सेवा और निजी नौकरियां एक ही प्लैटफॉर्म के ज़रिए मिले तो ..अगर मौजूदा सरकार की योजनाएं कारगर साबित हुईं और समर्थन हासिल हुआ तो ऐसा जल्द ही होगा। नौकरी की तलाश में बैठे युवाओं के लिए सरकार ऐ



सी व्यवस्था बनाने जा रही है, जिसमें एक ही परीक्षा से एक नहीं कई नौकरियों  के दरवाजे खुल जाएंगे। इसके लिए परीक्षार्थी को न तो बार-बार फॉर्म भरना होगा और न उसे अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ेंगे। अगर सरकार की यह योजना कारगर साबित होती है तो यह नौकरी जगत में बहुत बड़ी क्रांती होगी। इस परीक्षा के जरिए सरकारी और प्राइवेट दोनों नौकरियों के लिए एक ही फॉर्म, एक ही परीक्षा और एक बार ही पुरजोर मेहनत करनी पड़ेगी।
 मोदी सरकार की इस योजना के मुताबिक यदि कोई युवा सरकारी नौकरी पाने के लिए कोई फॉर्म भरता है और उसमें सफल नहीं हो पाता है तो उसकी उस परीक्षा में प्राप्त किए गए अंक को अन्य राज्य सरकार और निजी नौकरियों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। पिछले दिनों ही संघ लोक सेवा आयोग के परिणाम आए हैं. कई हज़ार स्टूडेंट ऐसे हैं जिनका चयन महज़ कुछ नंबरों की वजह से नहीं हो पाया होगा ऐसे विद्यार्थियों के लिए सरकार की यह योजना काफी कारगर साबित हो सकेगी। संघ लोक सेवा आयोग या कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओ में विद्यार्थियों का चयन महज एक और आधे नंबर की वजह से नहीं हो पाता है तो ऐसे विद्यार्थियों की कट ऑफ लिस्ट के हिसाब से मेरिट लिस्ट तैयार की जाएगी। इस मेरिट लिस्ट से प्रतिभाशाली युवाओं का चयन राज्य सरकार की विभिन्न विभागों और प्राइवेट कंपनियों में नौकरी के लिए किया जा सकेगा।
अगर सरकार की योजना कारगर साबित होती है तो आने वाले समय में यह नौकरी के बाजार में नया आयाम साबित होगा।
 छात्र एक सरकारी नौकरी के लिए कई तरह के फॉर्म भरते हैं। उसमें उनका काफी पैसा और ऊर्जा भी लगती है इस योजना के लागू होते ही छात्रों का पैसा और ऊर्जा दोनों में भारी बचत होगी। इस योजना की घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष दिसंबर में युवाओं को संबोधित करते हुए की थी। इस योजना को कैसे लागू किया जाए उसका खाका नीति आयोग और पीएमओ मिलकर तैयार कर रहा है। योजना का नक्शा तैयार होते ही सरकार निजी कंपनियों के अधिकारियों से इस बावत बैठक कर उनके अनुरूप ही इस योजना को आकार देगी। उम्मीद है कि यह योजना साल के अंत तक लागू हो।
 फिलहाल इस तरह की योजना प्रवेश परीक्षाओं में तो शुरू हो चुकी है। कॉमन इंट्रेंस टेस्ट  के माध्यम से मेडिकल और तकनीकी कॉलेजों, आईआईटी और आईआईएम की परीक्षाओं में स्टूडेंट सेलेक्ट किए जाने के बाद निजी स्कूल और कॉलेज रैंक के हिसाब से छात्रों का चयन करते हैं। ठीक इसी पद्धति का इस्तेमाल सरकार अब नौकरियों के लिए भी करने में जुटी है जिसमें सरकार परीक्षार्थियों से भी अनुमति चाहती है जिससे दूसरी नौकरी प्रदाता कंपनियां भी अच्छे और बेहतरीन कैंडिडेट्स का फायदा अपनी कंपनी के लिए उठा सकें। जिस तरह सरकार बैंकिंग सेवा के लिए कॉमन इंटरेंस टेस्ट लेती है जिसका फायदा निजी बैंक भी उठाते हैं।
पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना के बारे में जानकारी देते हुए कहा था कि इससे बेरोजगारी में लगाम लगाई जा सकेगी और अधिक से अधिक स्टूडेंट और नौकरी प्रदाता कंपनियां इसका फायदा उठा सकेंगी।
सरकार इस योजना के तहत विभिन्न सरकारी परीक्षाओं में बैठने वाले कैंडिडेट्स के प्राप्तांक को ऑनलाइन शेयर करने का भी फैसला किया है जिसका मकसद है कि निजी कंपनियां प्राप्तांकों के आधार पर अपनी कंपनी के लिए योग्य का चयन कर सकें। यानी निजी कंपनियों को अलग से लंबी चयन प्रक्रिया चलाने की जरूरत नहीं होगी। सरकार लगभग अपने हर क्षेत्र के लिए कैडिडेट्स का चयन परीक्षा द्वारा करती है। जैसे एसएससी, रेलवे, बैंकिंग या ऐसी तमाम परीक्षाएं। अब इन एजेंसियों को  विद्यार्थियों का प्राप्तांक पब्लिक डोमेन में डालना होगा। सरकार इस ओर बहुत तेजी से काम कर तो रही है और एक खास तरह की वेबसाइट के निर्माण में भी जुटी है।वेबसाइट पर मौजूद डाटा को नैशनल करियर सेंटर से भी जोड़े जाने की योजना है। लेकिन सरकार को एक अहम कदम और उठाने की जरूरूत है। जिसमें वो उन स्टूडेंट पर भी लगाम लगाए जो पहले से ही किसी न किसी सरकारी नौकरी में हैं और वे दूसरी नौकरी के लिए फिर परीक्षा देते हैं। सरकार का इस तरह के कैंडिडेट्स में लाखों रूपए हर वर्ष बरबाद हो जाता है। अगर महज आईएएस की परीक्षा की ही बात करें तो इस परीक्षा में सैंकड़ों वो लोग शामिल होते हैं जो पहले से ही किसी बेहतरीन सरकारी नौकरी पर काबिज हैं और उस स्थान तक उस शख्स को पहुंचाने के लिए सरकार ने पहले ही लाखों रूपए खर्च कर दिएं हैं और जब वे फिर किसी और सरकारी नौकरी के लिए तैयारी में जुटते हैं तो सरकार का लाखों रूपए तो बर्बाद होता ही है साथ ही किसी एक छात्र का हक भी जाता है।
 २०१६ की टॉपर नंदिनी पहले से सरकारी सेवा में हैं और अब वो आईएएस की परीक्षा पास कर गईं हैं। 


बहरहाल एक परीक्षा कई नौकरियों वाली इस योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्टूडेंट्स भी अहम योगदान दे सकते हैं।  जब वे नौकरी के लिए फॉर्म भर रहे होंगे तो उन्हें अपने प्राप्तांको को सार्वजनिक करने की अनुमति सरकार को देनी होगी। एक ही परीक्षा से कई नौकरियों के इस सरकारी प्रयास के लिए केंद्र के तीन मंत्रालय मिलकर अंजाम तक पहुंचाएंगे। कार्मिक विभाग मंत्रालय पोर्टल तैयार करेगा जिसमें सभी सरकारी और केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों का ब्योरा रहेगा। यहां उन्हीं कैंडिडेट्स की सूचना होगी जिन्होंने फॉर्म भरते हुए निजी कंपनियों में काम करने को मंजूरी दी होगी। लेकिन यह योजना भी तभी कारगर होगी जब निजी कंपनियां और राज्य सरकारें इस योजना में अपनी दिलचस्पी दिखाएं।