Thursday 11 May 2017

पत्थरबाजी हल तो नहीं



पूजा मेहरोत्रा
जिस तरह से कश्मीर में सेना पर पत्थरबाजी हो रही रही है और देशभर में कश्मीरी छात्रों से मारपीट हो रही है इसने केंद्र की सरकार के पशीने पर चिंता की लकीरें खींच दी है। न तो कश्मीर में सेना पर कश्मीरीयिों द्वारा पत्थरबाजी का यह पहला मामला है और न ही कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट का यह पहला मामला। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि इस पूरे मामले में गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बोलना पड़ रहा है कि कश्मीरी छात्र भी भारतीय नागरिक हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राज्य सरकारों से कह तो दिया है कि कश्मीरी छात्रों के साथ इस तरह की मारपीट बर्दाश्त नहीं की जाएगी, कश्मीरी भी भारतीय नागरिक हैं। आनन फानन में कश्मीरी छात्रों के लिए हेल्पलाइन भी शुरू कर दी गई है। वैसे यह नहीं भूलना चाहिए की छात्र राजनीति इन दिनों चरम पर है और जब छात्र समूह में होते हैं तो वह भी खुद को उपद्रव करने से रोक नहीं पाते हैं।
शिक्षा वह अलख है वह हथियार है जिससे अंधविश्वास को मिटाया जा सकता है, गुमराह हो रहे नौजवानों को बचाया जा सकता है और गुनाह को खत्म किया जा सकता हैं।  शिक्षा में वो शक्ति है जो आपको सही और गलत का एहसास कराती है।  यही वजह है कि शिक्षा ग्रहण करने के लिए छात्र एक राज्य से दूसरे राज्य का फासला तय करते हैं। देश में सबसे बड़ा आंतरिक पलायन या तो रोजगार के लिए होता है या फिर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए। संयुक्त राष्ट्र-ग्लोबल अर्बन यूथ रिसर्च नेटवर्क के 2014  में किए गए एक शोध से पता चला कि सबसे ज्यादा पलायन दस वर्षों में हुआ जिसमें लगभग 37  लाख युवा केवल शिक्षा के लिए अपने-अपने राज्यों और क्षेत्रों को छोड़कर दूसरी जगहों पर गए। इनमें 26 लाख पुरुष और 11 लाख महिलाएं थीं। लगभग 17 प्रतिशत युवा ऐसे थे जो दूसरे राज्यों में गए जबकि 16.8 लाख युवा ऐसे थे जिन्होंने अपने ही गृह राज्य में दूसरे जिलों में बेहतर शिक्षा के लिए पलायन किया। इस गणना में उन युवाओं को शामिल किया गया, जिन्होंने विशेष तौर पर शिक्षा के लिए पलायन किया। यानी ये आंकड़ें देश के भीतर शिक्षा संसाधनों के असमान वितरण की ओर भी ईशारा करते हैं। कुछ राज्यों में शिक्षा के लिए बेहतर साधन और संस्थान मौजूद हैं, तो कुछ राज्य इस मामले में लगातार पिछड़ रहे हैं। नतीजतन शिक्षा के लिए होने वाले पलायन की परिघटना गंभीर है। इस पलायन के बीच जब खबरें आती हैं कि एक विशेष राज्य के छात्रों को इसलिए दूसरे राज्य में मारा पीटा गया क्योंकि उस राज्य में हमारी देश की सेना के ऊपर पत्थर फेंका जा रहा है, सेना के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है तब लगता है कि समय आ गया है कि अब स्थिति को गंभीरता से लिया जाए। कश्मीर की आवाम भी अमन शांति चाहती है लेकिन हमें समझना होगा कि वहां अमन और शांति की बहाली हम वहां से निकले छात्रों के साथ मारपीट कर बहाल नहीं कर सकते। इस अमन शांति के लिए हमें उनके दिलों में विश्वास को जगाना होगा। डर के साए में जी रहे नौजवानों को शिक्षा के माध्यम से बताना होगा कि ये कश्मीर ही नहीं पूरा देश उनका भी है।
बीते बुधवार को राजस्थान के मेवाड़ विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों के साथ चित्तौड़गढ़ जिले में कुछ स्थानीय लोगों ने मारपीट की, जिसमें छह कश्मीरी छात्र घायल भी हो गए। 'बुधवार की शाम करीब छह बजे गंगरार कस्बे के नजदीक कम से कम नौ कश्मीरी विद्यार्थियों की लाठी और बैट से पिटाई की गई। स्थानीय लोगों को जब पता चला कि ये कश्मीरी हैं तो उन्होंने हमें निशाना बनाया। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि विद्यार्थी विश्वविद्यालय परिसर के नजदीकी बाजार की ओर जाते समय स्थानीय लोगों से उलझ गए थे। इस पूरी घटना में छह छात्र घायल भी हो गए हैं। इस मारपीट की वारदात को एकतरफा देखना थोड़ा मुश्किल है क्योकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब एक ही क्षेत्र के दस युवा एकत्रित होते हैं तो वे भी खुद को मजबूत साबित करने की कोशिश करते हैं। इन छात्रों ने भी स्थानीय लोगों के खिलाफ बल का प्रयोग किया ही होगा। छात्रों की मारपीट का ये मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि मेरठ में कश्मीरी छात्रों के खिलाफ लगाया गया पोस्टर विवादों में आ गया।
उत्तर प्रदेश नव निर्माण सेना नाम के एक संगठन की तरफ से मेरठ-देहारादून हाइवे पर बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे कश्मीरियों को प्रदेश छोड़कर जाने की चेतावनी दी गई है। 30 अप्रैल के बाद यूपी में कश्मीरियों के खिलाफ हल्ला बोलने को भी कहा गया है। कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट की यह कोई पहली घटना नहीं है। मेरठ में इससे पहले भी कश्मीरी छात्रों को मारा पीटा जाता रहा है। कश्मीरी छात्रों पर इस हमले को कश्मीर में सैनिकों पर की जा रही पत्थरबाजी का प्रतिक्रिया माना जा रहा है। छात्रों से मारपीट करने और यूपी से जाने की धमकी देने वालों का मानना है कि जो छात्र यहां पढाई कर रहे हैं उनके परिवार वाले ही हमारी सेना और सैनिकों के साथ वहां दुर्व्यवहार कर रहे हैं। जब कश्मीरी छात्रों को यहां से खदेड़ा जाएगा तभी उन्हें सबक मिलेगा। कश्मीरी छात्रों को सबक सिखाने के लिए की जा रही इस पूरी कारवाई में उन्हें मकान न दिए जाने से लेकर खाने पीने तक की चीजें बेचे जाने पर भी रोक लगाए जाने की बातें सामने आ रही हैं।
कश्मीरी छात्रों के साथ हो रही मारपीट की घटनाओं को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है। गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही है। नॉर्थ ईस्ट के छात्रों के साथ देश के कई हिस्सों में दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है, उन्हें मारा पीटा जाता है तब सरकार की न तो एडवायजरी जारी करती है और न ही हेल्पलान और केंद्र उनके लिए  कोई संज्ञान लेती नजर नहीं आती हैं।
 इससे पहले भी हॉस्टल में बीफ खाए जाने के विवाद को लेकर भी कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट की गई थी जबकि २०१६ में भोपाल की बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में भी पीएचडी कर रहे उमर रशीद ने अपने साथ मारपीट की शिकायत दर्ज कराई थी।
पत्थरबाजों और मारपीट के बीच से डॉ. रूबैदा सलाम, फैशल शाह, अतर आमिर उल शफी चंद ऐसे नाम हैं जो कश्मीर की सूरत और सीरत को नया आयाम देते नजर आते हैं।

                           

निर्भया को इंसाफ पर क्या बदली मानसिकता ?


निर्भया गैंगरेप के मामले में देश की सर्वोच्च न्यायालय ने इंसाफ कर दिया है। चारों दोषियों को फांसी की सज़ा बरकरार रखी गई है। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट से सज़ा बरकारर रखने की खबर आई देश में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी ने एक ही बात कही, देर है अंधेर नहीं..इंसाफ मिल गया निर्भया को.. पिछले चार वर्षों में निर्भया केस से जुड़ी शायद ही ऐसी कोई सुनवाई रही हो जब देशवासियों ने उसे खुद से जोड़ कर न देखा हो। निर्भया के साथ १६ दिसंबर २०१२ की रात हुई दरिंदगी ने देश को शर्मशार कर दिया था। जिसने भी निर्भया के साथ हुई उस वहशियाना हरकत के बारे में सुना वह कांप गया, उसकी अंतरआत्मा कांप गई..आंख डबडबा गई, क्या महिला, क्या पुरुष और क्या बच्चे सभी घर से निर्भया के लिए इंसाफ मांगने निकल पड़े थे। देश महिला सुरक्षा को लेकर एकजुट दिख रहा था। देशवासियों की एकजुटता ने संसद को हिला कर रख दिया था। निर्भया के मामले को भले ही पांच साल होने को हैं..लेकिन अगर पीछे पलट कर देखें तो दिखेगा कि कुछ भी नहीं बदला है। महिलाएं और असुरक्षित हुआ हैं। रेप और छेड़छाड़के मामले बढ़ गए हैं। देश जितना महिला सुरक्षाको लेकर एकजुट दिख रहा था वह महज़ दिखावा भर था। बच्चियां आज ज्यादा असुरक्षित हैं..रेप के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है और हमारी मानसिकता संकीर्ण हुई है।
बहरहाल, निर्भया गैंगरेप को रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस मानते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने समाज की उम्मीदों के मुताबिक ही फांसी की सज़ा को बरकरार रखा है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश देश के लिए नज़ीर पेश करते हैं..इस मामले में न्यायपालिका ने ऐसा ही किया और लोअर कोर्टके आदेश को बरकरार रखते हुए फांसी की सज़ा को बरकरार रखा। जब निर्भया के साथ दरिंदगी हुई थी तब सरकार ने कई अहम फैसले लिए थे। उसी का नतीज़ा था फास्ट ट्रैक कोर्ट। यह विडंबना ही है कि मामले को पांच साल होने को हैं, सजा बरकरार रखी गई है लेकिन सजा हुई नही है। साकेत फास्ट ट्रैक कोर्ट ने नौ महीने के अदंर गैंगरेप के चारों दोषियों  अक्षय, पवन, मुकेश और विनय को फांसी की सजा सुनाई थी। केस दिल्ली हाई कोर्ट गया और वहां भी फांसी की सज़ा को बरकरार रखा गया और मुहर लगा दी थी। फिर मामला देश की सर्वोच्च अदालत पहुंचा, दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पर रोक लगा दी लेकिन मामले की गंभीरता और इंसाफ की मांग करती निर्भया की आत्मा ने मामले को कमज़ोर नहीं पड़ने दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट में ही तीन जजों की बेंच के पास गया। करीब एक साल तक सुनवाई चली। निर्भया के साथ दरिंदगी छह लोगों ने की थी। उसमें एक नाबालिग भी था। पुलिसिया जांच में पता चला था कि निर्भया के साथ सबसे ज्यादा दरिंदगी नाबालिग ने की थी..लेकिन नाबालिग होने के कारण वह फांसी से बच निकला..उसे सज़ा भी महज़ तीन महीने की हुई थी. इस मामले में नाबालिग अपराधी की उम्र घटा कर १६ साल कर दी. वहीं छठे आरोपी रामकुमार ने तिहाड़ में फांसी लगा कर खुद को सज़ा दे ली थी। चारों अभियुक्तों को फांसी की सजा बरकरार रखे जाने पर भी समाज दो भागों में बंटा दिख रहा है। और एक सवाल कर रहा है कि क्या इन चारों को फांसी दिए जाने के बाद देश में रेप के मामले कम हो जाएंगे? क्या बच्चियां इन्हें फांसी दिए जाने के बाद सुरक्षित हो जाएगी? बहस लंबे समय से चली आ रही है..और वैसे ही चलती रहेगी..लेकिन समाज में अगर कानून के प्रति डर उत्पन्न करना है तो न्यायिक प्रक्रिया को तेज करना होगा। त्वरित कार्रवाई से चीजों में जरूर बदलाव होता दिखता है। और इसका साक्षात उदाहरण है २०१० में हुए कॉमन वेल्थ गेम्स। पूरी दिल्ली गेम्स के बाद भी संस्कारी बनी रही थी। क्योंकि तब सज़ा और पुलिस दोनों सड़क पर मुस्तैद थे। प्रशासन चुस्त था।
 बहरहाल, सुरक्षित मानी जानी वाली दक्षिणी दिल्ली में निर्भया के साथ जिस तरह से दरिंदगी हुई, उसने देर रात काम करने वाली महिलाओं को हिला कर रख दिया था। तब कामकाजी महिलाओं की सुरक्षाको लेकर कई नियम बनाए गए थे, कानून में बदलाव किए थे, राजनीतिक पार्टियों ने बड़े बड़े दावे किए थे।  देर रात ड्यूटी करने वाली महिलाएं को कंपनियां गार्ड की सुरक्षा में घर तक पहुंचाए जाने की बात की गई थी। यह आदेश महिलाओं के लिए उल्टा साबित हुआ। महिलाओं को कंपनियों ने काम ही देना बंद कर दिया। मीडिया जो सबसे ज्यादा कंसर्न दिखाता है वह भी इससे अछूता नहीं है।
निर्भया के साथ हुई दरिंदगी देशभर की महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान का मुद्दा बना था। जिस तरह से युवा लड़कों ने आंदोलन में हिस्सा बने थे लगा था महिलाओं के प्रति सोच में बदलाव होगा. लेकिन अफसोस हालात सुधरने की जगह और बदतर हुए हैं। पिछले पांच साल में  महिलाओं में असुरक्षा और बढ़ी है, उनके साथ होने वाले  हादसे और बढ़े हैं। प्रशासन कान में तेल डाल कर बैठ चुका है और जिनके बदलने की उम्मीद थी उन्होंने भी बुरी तरह से निराश किया है। लेकिन इस घटना के बाद महिलाएं और बेटियां मुखर हुईं हैं। जिस छेड़छाड़ को नियति मानकर वो चुप रह जाती थीं अब हंगामा होता है। इसका अंदाजा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से लगाया जा सकता है। बलात्कार के मामलों में पिछले पांच सालों में इज़ाफा दर्ज है।  बदले माहौल ने महिलाओं को पुलिस में शिकायत करने का हौसला तो दिया,  लेकिन दुख इस बात का है कि बलात्कार के मामले कम नहीं हुए हैं। देश की राजधानी में ही पिछले पांच वर्षों में महिलाओं की छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार के कई बड़े हादसे हुए। वहशियों ने छोटी बच्चियों को भी शिकार बनाया। आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में साल 2012 में बलात्कार के 706 मामले सामने आए थे, जबकि 2016 में 2199 मामले दर्ज़ हुए हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट पर अगर नजर डालें तो दिल्ली में मुंबई के मुकाबले तीन तीन गुना ज़्यादा रेप होते हैं। 2015- 2016 के अक्टूबर तक दिल्ली में 3973 लड़कियों का रेप हुआ। मतलब हर चार घंटे में एक बलात्कार। अगर छेड़छाड़ के आंकड़ें पर नज़र डालें तो कान से धुआं निकलने लग जाएगा..रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में अकेले हर दो घंटे में कहीं न कहीं किसी लड़की को मॉलेस्ट किया जाता है।

 जिस देश में नारी को पूजने की परंपरा रही है वहां क्यों वे महज़ मनोरंजन और उपभोग की वस्तु बन गईं? क्यों सिर्फ निर्भया के लिए तो देश एकत्रित होता है? लेकिन घर में महिला को हर दिन निर्भया के दौर से गुजरना पड़ रहा है। इन सबकी सिर्फ बस एक वजह नज़र आती है वह है मानसिकता। जब देश निर्भया के लिए एकजुट दिखाई दे रहा था तब भी मानसिकता बदली हुई नहीं थी। मां बहन की गालियां आज भी हर किसी की जुबान का हिस्सा हैं। यही मानसिकता महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कराती है। और इस मानसिकता की जड़ में है हमारा घर और पुरुष प्रधानता। पहले बच्चियों को, महिलाओं को घर-परिवार में उपेक्षित और प्रताड़ित किया जाता है और जब वह उन बंधनों, प्रताड़नाओं को तोड़ते हुए बाहर निकलती हैं तो छेड़छाड़ और दुष्कर्म का शिकार बनती हैं। कानून की चाल इतनी सुस्त होती है कि गर्म लोहे पर चोट सी असर नहीं कर पाती। रेयर ऑफ रेयरेस्ट मामले में भी सजा देने में पांच साल लगते हैं तो कठोर कानून और कोर्ट का कड़ा फैसला भी अपना असर नहीं दिखा पाता हैं। अब समय आ गया है जब घर से मानसिकता को बदला जाए। जब तक नेता लड़को से गलती हो जाती है जैसे भाषण देते रहेंगे तब तक समाज में सुधार संभव नहीं है। मानसिकता में बदलाव की शुरूआत बच्चों के माध्यम से और शिक्षा-दीक्षा में सुधार करके किया जा सकता है। बच्चों को घर से ही स्त्री का सम्मान करना सिखाया जाना चाहिए और इस क्रम में स्कूली पाठ्यक्रमों में बदलाव करना पड़े तो करना चाहिए।  

यमुना पर कार्यक्रम आपने किया ही क्यों ???




देश में एक अध्यात्मिक गुरू हैं.बड़ा नाम है। सफेद धोती में लिपटे रहते हैं..मुस्कुराते हैं तो उनके अनुयायी मानो मर ही जाएं उनपर..देश की अध्यात्म की और जीने की कला सिखाते हैं..पिछले दिनों उन्होंने पर्यावरण की रक्षा करने के लिए बनाई गई अदालत पर भी कई तरह के प्रश्न लगाए..मुझे न तो उस गुरू से शिकायत है क्योंकि वो तो बाजार में है और अपना माल बेच रहा है..अध्यात्म माल है और वो उसका बाजार लगाता है और बेचता है...क्योंकि वो एक संस्था है और जब संस्था है तो लाभ हानि और बाजार सब का जुड़ना स्वाभाविक है। मुझे शिकायत है देश के प्रधानमंत्री और नमामी गंगा और यमुना का प्रोजक्ट देख रही हमारे नेताओं की टोली से और उसकी पूरी दिखावटी फौज से..
आज जीमेल एकाउंट पर असलम दुर्रानी साहब का युट्यूब लिंक आया है..मस्ट वॉच... एनजीटी के खिलाफ यमुना की रिपोर्ट भेजी है..यूट्रयूब पर है...उस पूरी रिपोर्ट को एक अमेरिकन स्टाइल लड़का पढ़ रहा है। वो बार बार यमुना के हालात की बात कर रहा है और खुद की सफाई देता दिख रहा है..कुछ इनसैट की इमेज का उपयोग भी किया गया है. कि यमुना के हालात पहले से ही खराब थे ..हमने या हमारी संस्था ने कुछ नहीं किया..हमने कोई पेड़ नहीं काटे..और ब्ला ब्ला....करोड़ों जी मेल यूजर्स को मेल गई होगी...
रविशंकर उर्फ अध्यात्मिक गुरू.. उर्फ जीने की कला सिखाने वाले .दुनियाभर को अध्यात्म का पाठ पढाते हैं.. पर्यावरण के प्रति बहुत चिंतित भी दिखाई देते हैं..बड़ी बड़ी बातें करते हैं.लोगों को जीने का तरीका सिखाते हैं संस्था का नाम है आर्ट ऑफ लिविंग। चूंकि उनके अनुयायियों की संख्या करोड़ों में देश में और विदेश में है तो हमारे देश के छोटे बड़े सारे सरदार तक उनकी चरण वंदना करते नजर आते हैं.. हमारे यहां तो चंद्रास्वामी, आशाराम से लेकर स्वामी ओम तक की चरणवंदना होती है..पलक झपकते लोग उनके दिवाने हो जाते हैं फिर नेता भी तो आम आदमी ही है..भले ही इंजीनियर ही क्यों न हो या फिर देश का प्रधानमंत्री...देश को नदी स्वच्छ बनाने का संदेश देने वाला मरती हुई यमुना पर रोक के बाद तीन दिन का कार्यक्रम करता है...और जब पर्यावरण पर नज़र रखने वाली कोर्ट कार्यक्रम पर रोक लगाती है  तो उस समय उसकी सारी बातें तक मान लेता है..और मंत्री से लेकर संत्री तक कोर्ट के आगे हाथ जोड़े खड़े नज़र आते हैं।

एनजीटी पर दबाव बनाया जाता है और जब कार्यक्रम हो जाता है तो दाढ़ी के पीछे मुस्कुराता कुटिल चेहरा सामने आता है। वो जो लोगों को आर्ट ऑफ लिविंग सिखाता है..चेहरे पर मुस्कार बिखेरे हुए थेथरई पर उतर जाता है। सच्चा और पवित्र दिखने वाले इंसान के पीछे की कायरता बार बार लोगों के सामने आती है। फिर भी लोगों की आंख नहीं खुलती ...नमामि गंगे और और यमुना की सफाई का दावा करने वाली सरकार चुप्प होकर उसके सामने नतमस्तक है।
पिछले साल संस्था के कार्यक्रम की वजह से यमुना को बहुत नुकसान हुआ है।  उन्होंने दिल्ली की मरणासन्न यमुना के किनारे को तबाह कर दिया है। यमुना के अंदर बचे खुचे जीव जंतु.. यमुना का वेजिटेटिव एरिया.और यमुना नदी के बाढ का क्षेत्र सबकुछ बर्बाद हो चुका है। जिसे ठीक होने में कम से कम दस साल का समय लग जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि उस सांस्कृतिक महोत्सव के कारण 'बर्बाद' हुए यमुना के डूब क्षेत्र के पुनर्वास में 13.29 करोड़ रुपए की लागत आएगी और इसमें करीब 10 साल का वक्त लगेगा. एक विशेषज्ञ समिति ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को यह जानकारी दी है. जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने एनजीटी को बताया है कि यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र को हुए नुकसान की भरपाई के लिए बड़े पैमाने पर काम कराना होगा.

समिति ने यह भी कहा, "ऐसा अनुमान है कि यमुना नदी के पश्चिमी भाग (दाएं तट) के बाढ़ क्षेत्र के करीब 120 हेक्टेयर (करीब 300 एकड़) और नदी के पूर्वी भाग (बाएं तट) के करीब 50 हेक्टेयर (120 एकड़) बाढ़ क्षेत्र पारिस्थितिकीय तौर पर प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं."बाद में सात सदस्यों वाली एक विशेषज्ञ समिति ने एनजीटी को बताया था कि यमुना पर आयोजित कार्यक्रम ने नदी के बाढ़ क्षेत्र को 'पूरी तरह बर्बाद' कर दिया है.
देश की सबसे बड़ी पर्यावरण अदालत ने जब इस आध्यात्मिक गुरू रविशंकर के खिलाफ नाराज़गी जताई और पूछा कि 'क्या आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती. आपको लगता है कि आप जो मन में आया बोल सकते हैं?'

बड़ी बड़ी बाते करने वाले ये बाबा रविशंकर की भलमनसाहत और पर्यावरण के प्रति और देश के प्रति जागरूकता और समर्पण का नमूना ये देखने को मिला कि वह कहते पाए गए कि पिछले साल यमुना नदी के किनारे हुए तीन दिन के सम्मेलन के आयोजन के लिए सरकार और अदालत जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि यह तो सरकार और अदालत की गलती है कि उन्होंने इस कार्यक्रम की अनुमति दी.

जब कार्यक्रम पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी तब रविशंकर घुटनों के बल थे और जब अनुमति मिल गई और हर्जाने की भरपाई करने का समय आया तो रविशंकर अपनी  फेसबुक पोस्ट में लिखते है कि 'अगर किसी तरह का जुर्माना लगाना ही है तो केंद्र, राज्य और एनजीटी पर लगाया जाना चाहिए जिसने इस कार्यक्रम की अनुमति दी थी. अगर यमुना इतनी ही नाज़ुक और पवित्र है तो उन्हें वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल करने से हमें रोकना चाहिए था.'