पूजा मेहरोत्रा
सात फरवरी को बटन दबेगा और दस फरवरी को भाग्य खुलेगा। मिल
जाएगी दिल्ली को सरकार। लेकिन फिर हैं वही सवाल क्या खत्म हो जाएगी महंगाई, सुरक्षित हो
जाएंगी लड़कियां, बिजली पानी की समस्याएं दूर होंगी, भ्रष्टाचार खत्म होगा,
अनाधिक़त कलॉनियां नियमित होगी, खुली सड़कों पर सोने वालो छत मिलेगी, अस्पताल मे
दवाईयां और इलाज मिलेगा। पीने का साफ पानी मिलने लगेगा और गरीब के बच्चे पीने के
पानी के कारण बीमार नहीं होगे। झुग्गी बस्तियां साफ होगी।
हमारी सबसे
बड़ी समस्या सुरक्षा व्यवस्था है और दिल्ली की सबसे प्रमुख चिंताओं में से एक है।
2013 में दिल्ली
में अपराध 99 प्रतिशत तक
बढ़ गए हैँ, जबकि पुलिस
को क्राइम के सिर्फ 30 फीसदी मामले सुलझाने में ही सफलता मिली है। बीते कुछ सालों
में दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर बन चुकी है। 2014 में यहां रेप के दो हजार से
अधिक मामले दर्ज हुए, जो 2013 के मुकाबले 30 प्रतिशत ज्यादा हैं। 2014 में स्नैचिंग की घटनाएं दोगुनी हो गई हैं, जिनमें से सिर्फ 25 फीसदी मामलों में आरोपियों को
पकड़ा गया है। आप पार्टी की सरकार ने अपने वादे के तहत हर
दिल्लीवालों के लिए रोजाना 700 लीटर मुफ्त पानी की सप्लाई की
योजना शुरू की थी, लेकिन
सरकार गिरने के बाद यह योजना बंद हो गई। दिल्ली हर रोज 172 एमजीडी पानी की किल्लत झेलती है।
द्वारका जैसे इलाकों में यह समस्या विकाराल रूप ले चुकी है, जहां लोगों को निजी टैँकर चालकों
से पानी खरीदना पड़ता है। झुग्गी झोपड़ी वालों को तो
पानी हफते में दो दिन पानी के टैंकर से पहुंचाया जाता है। पानी की आपूर्ति दिल्ली
की प्रमुख समस्या है।
महंगाई
से त्रस्त दिल्ली वालों के लिए अरविंद केजरीवाल आश के रूप में उभरे
थे। लेकिन सारी आस 49 दिनों में ही ढह गई और केजरीवाल के
इस्तीफे के बाद बिजली बिलों पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म कर दिया गया। लोगों को
तभी से बढ़े हुए बिजली के बिल देने पड़ रहे हैं। हालांकि केंद्र की एनडीए सरकार ने
अब 400 यूनिट तक बिजली का उपभोग करने
वालों को सब्सिडी देना शुरू किया है। इस बार भाजपा ने बिजली के बिल घटाने का वादा
किया है। लेकिन
रामलीला मैदान में हुई मोदी की रैली में मोदी इफेक्ट नजर नहीं आया है।
दिल्ली के करीब 50 लाख
लोग यानी राजधानी का हर तीसरा बाशिंदा अवैध कॉलोनी में रहता है। भाजपा नेतृत्व
वाली केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर 1,939 अवैध
कॉलोनियों को वैध करने का फैसला किया है। कांग्रेस सरकार यही झुनझुना कई वर्षों से
देती आ रही है।
हालांकि इन अवैध कॉलोनियों में विकास कार्य कराना एक बड़ी चुनौती होगा। बड़ा सवाल
यह भी है कि क्या इन कॉलोनियों में लोग प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त कर पाएंगे।
पूरे देश की बड़ी
समस्या भ्रष्टाचार है और पिछले
विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रमुख मुद्दा भी भ्रष्टाचार था जिसने उसे ऐतिहासिक जीत दिलाई थी। पार्टी ने लोगों से भ्रष्टाचार की
शिकायत करने की अपील की थी और उनकी शिकायत के निवारण के लिए एक हेल्पलाइन भी जारी
की थी। आप सरकार के गिरने के बाद दिल्ली पुलिस ने भी ऐसी ही एक हेल्पलाइन शुरू की।
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ
जीरो-टॉलरेंस नीति अपनाने का फैसला किया है। लेकिन इस बात को
नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि आज भी केंद्र सरकार में अपराधी और साधु संत मोदी
इफेक्ट में बफरिंग लाने की पूरी तैयारी कर दी है। लेकिन एक बात यह नहीं भूलना
चाहिए कि ये दिल्ली की जनता है और पूरे देश की जनता और दिल्ली की जनता में बड़ा
फर्क है। उम्मीद के साथ यहां की जनता को सबकुछ झटफट पा लेने की आदत है। वैसे पिछले साल कि चुनाव में महंगाई एक बड़े मुद्दे के रूप में
उभरकर सामने आई थी और यह अब भी लोगों की चिंता की कारण बनी हुई है। रोजमर्रा की
जरूरत की चीजें खासतौर पर सब्जियों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। आज भी प्याज आठ
आठ आंसू रुला रहा है और टमाटर हर दिन अपनी आंख लाल कर के दिखा रहा है। मेथी,
धनिया, लौकी सभी की हरियाली गायब है। शहर में कॉस्ट ऑफ लिविंग बढ़ती जा रही है, लेकिन आय में अधिक परिवर्तन
नहीं आया है। इसके साथ दिल्ली की बड़ी समस्या स्वास्थ अस्पताल और दवाइयां भी
है। वैसे तो दिल्ली में काफी सरकारी और प्राइवेट अस्पताल हैं, लेकिन दिल्ली और आसपास के
राज्यों से आने वाले मरीजों की वजह से यह संख्या भी कम पड़ती जा रही है। हर दिन
बेड की कमी की वजह से और इलाज न हो पाने की वजह से सड़क पर लोग मर जाते हैं। दिल्ली
में हर 10 हजार लोगों
पर सिर्फ 2.6 बिस्तर ही
हैं और सरकारी अस्पतालों की बदहाल व्यवस्था के कारण 80 प्रतिशत लोगों को प्राइवेट
अस्पताल में अपना इलाज कराना पड़ रहा है।
दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी और शिक्षा है। 2003 से लेकर अब तक 10 लाख से अधिक लोग रोजगार
कार्यालय में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं, लेकिन करीब 11 हजार लोगों को नौकरी मिल पाई है। बेरोजगारी के अलावा, युवाओं का अपनी काबिलियत से
कमतर काम करना भी एक प्रमुख मुद्दा है। युवा पैरंट्स के लिए अफोर्डेबल और क्वॉलिटी एजुकेशन भी एक
बड़ा मुद्दा है। वैसे तो शहर में बड़ी संख्या में स्कूल मौजूद हैं, लेकिन लोग अपने बच्चे की पढ़ाई
के लिए नामीगिरामी स्कूलों के आगे लगती पैरेंटस की भीड़ और जेब का ख्याल कौन सी
पार्टी रखेगी। पैरंट्स का अपने बच्चे का नर्सरी में एडमिशन कराना और सरकारी
स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति भी एक बड़ा मुद्दा है। तो चलिए तैयार हो जाइए अब
अपना मुक्क्दर आपके हाथों में है जरा सोच समझ कर इवीएम का बटन दबाइएगा।
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