बीमारू नहीं दशरथ मांझी
जैसे जुनूनी रहते हैं बिहार में- केतन मेहता
हम आज के युवा बहुत जल्दी
बहुत कुछ पा लेना चाहते हैं। हमारे में बर्दाश्त करने की क्षमता न के बराबर रह गई
है। हम अपनी जरा सी नाकामयाबी देखते ही घबरा जाते हैं। कई बार आत्महत्या करने
जैसे कदम तक उठा लेते हैं। ऐसे समय में दशरथ मांझी पर बनाई गई ये फिल्म युवाओं में
नया जोश और होश भरेगी। दशरथ मांझी जब मुख्यमंत्री नितीश कुमार से मिलने पहुंचे थे
तो नितीश कुमार उनके आदर में न केवल खड़े हो गए थे बल्कि उन्हें अपनी मुख्यमंत्री
की कुर्सी तक पर बिठाया था। इसलिए शायद बड़े बुजुर्ग कह गए हैं मेहनत कभी खराब
नहीं जाती।
फिल्म दशरथ मांझी द
माउंटेन मैन फिल्म को एक साजिश के तहत जहां दस दिन पहले लीक कर दिया जाता है।
वहीं फिल्म की स्क्रिप्ट तो कभी फगुनिया के पहनावे को लेकर कई सवाल उठाए गए हैं।
लेकिन यकीन मानिए जब आप फिल्म देखने जाएं तो आप उस व्यक्ति के 22 साल के दिन रात
के परिश्रम, मेहनत और बेचारगी के बारे मे सोचिएगा। कि कैसे दशरथ मांझी ने एक छेनी
और हथौड़ी से पूरे पहाड़़ को चीड़ कर रख दिया। कितना जीवट था वो इंसान जिसने सांप
के काटे जाने पर अपना अंगूठा ही काट दिया। भीषण अकाल पड़ने पर भी उसने हार नहीं
मानी बल्कि पड़ा रहा वहीं। फिल्म में नवाज ने अपनी अदाकारी और कलाकारी को निचोड़
कर रख दिया है। फिल्म के राइटर और निर्देशक
केतन मेहता से जब पूछा कि दशरथ मांझी को तो बिहार में भी लोग नहीं जानते होंगे फिर
आपने कब सुना और पूरी फिल्म बनाने की कैसे ठान ली- इस सवाल के जवाब में केतन मुस्कुराते
हुए कहते हैं बहुत जरूरत है समाज को खासकर युवाओं को यह बताने की हमारे बीच में
कोई ऐसा आदमी भी है। जो ऐसे कारनामे कर जाता है। जब मैंने 2007 में पहली बार सुना
तो कुछ देर के लिए मैं भी सन्न रह गया। क्या बिहार में एक ऐसा आदमी है जो सिर्फ
एक छेनी हथौड़ी लेकर पहाड़ काटने निकल पड़ा था और 22 साल में उसने पहाड़ काट कर ही
दम लिया। एक बार को अंदर ही अंदर दिल उस व्यक्ति को सैल्यूट किया और तभी सोच
लिया था कि इसके बारे में और जानना है। मैं लगातार व्यस्त था लेकिन मेरे दिमाग
में दशरथ मांझी हर दिन रहे। जैसे ही मैंने अपने सारे पेडिंग काम पूरे किए उसके बाद
मैं सिर्फ ढाई साल शोध करने में लगाया कि कैसे इसे परदे पर उतारा जाए।
दशरथ मांझी सिर्फ एक
माउंटेन मैन नहीं है बल्कि हमारे युवाओं के लिए इंसपीरेशन है। युवा जो बहुत जल्दी
हार मान जाते हैं उनके लिए संदेश है। जो
यह बताता है कि इंपोसिबिल कुछ भी नहीं है। इंपोसिबिल और हार मानना हमारे दिमाग का
फितूर है। कोई सोच सकता है कि कोई अपनी वाइफ से इतना प्यार कर सकता है कि उसकी
खातिर पहाड़ तोडने की ठान लेता है और तब तक नहीं छोड़ता जब तक तोड़ नहीं लेता। हर
इंसान के अंदर एक दशरथ मांझी है बस उसे पहचानना होगा। दशरथ मांझी के गांव में जब
हम शूटिंग कर रहे थे तो गांव वाले बताते हैं कि वो पांच फुट का इंसान बहुत ही
मजाकिया था, जब वो हंसता था तो दिल खोल कर हंसता था। बीबी से बहुत प्यार करता था।
लेकिन बिहारियों को हमेशा
कमतर आंका जाता रहा है, बीमारू राज्य कहा जाता है। बिहार प्रवास के दौरान कितना
बीमारू लगा बिहार
देखिए ये सब राजनीतिक बातें
हैं। अगर बिहार और बिहार के लोग न हों तो आप समझ नहीं सकतीं क्या हो जाए देश का। मैं तो बस एक ही बात कहना चाहता हूं कि विश्व
को कभी नहीं भूलना चाहिए कि बिहार बुद्ध, महावीर,
अशोका, मौर्या जैसे शूरवीरों की धरती है जिसने पूरी दुनिया में भारत को एक स्थान
दिलाया है। वक्त कभी टिक कर नहीं रहता। जिंदगी में ही नहीं बल्कि समाज में भी और
राज्यों में भी कभी अच्छा तो कभी बुरा वक्त आता है। बिहार अपने डाउनफॉल में हो
सकता है लेकिन बिहार और बिहारी कभी भी कमतर नहीं हो सकते।
बिहार के कुछ इलाके खासकर गया
के आस पास नेक्सलाइट का इलाका कहा जाता है, क्या आपको ये पता था, डर नहीं लगा- सवाल
सुन कर थोड़ा चौंकते हुए केतन बताते हैं कि जब हमने बिहार में दशरथ मांझी के गांव
में शूटिंग करने का मन बनाया और पूरी 100 लोगों की यूनिट तैयार हुई तो हमें बिहार
और वहां के नक्सलाइट एक्टिविटी को लेकर बहुत डराया गया था। लेकिन हमने सोच लिया
था कोई अल्टरनेटिव नहीं हमें सबकुछ ओरिजिनल चाहिए और हमने डेढ महीने तक वहां
शूटिंग की। टीम बोधगया में रूकी थी और वहां से गहलोर मांझी का गांव डेढ घंटे की
दूरी पर था। मजेदार यादें हैं। हां गया कि डीएम वंदना प्रेयसी और एस पी कुमार ने
हमें पूरा सपोर्ट किया। पूरा गांव खुशी से नाच रहा था कि उसके पगला बाबा पर फिल्म
बन रही है और पूरा गांव हमारी यूनिट का हिस्सा है। दशरथ मांझी के बेटे के साथ साथ
गांव वाले भी इस फिल्म का हिस्सा हैं। मुहूरत तक दशरथ मांझी के बेटे से कराया
गया और पिछले दिनों हम मांझी की पुण्यतिथ्ीि पर गहलौर भी गए थे।
फिल्म की सफलता में कोई शक
नहंी है लकिन क्या आपने सोचा है कि आप गांव के विकास के लिए कुछ आर्थिक मदद
करेंगे- अरे शूटिंग के दौरान पूरा गांव हमारी टीम का हिस्सा था, हमने तो सोच लिया
है कि फिल्म की कमाई का एक हिस्सा गांव के विकास के लिए देना है।
बिहार से जुड़ी ऐसी कुछ यादें
जो हमेशा आपको गुदगुदाएंगी, शूटिंग के बाद सबसे ज्यादा क्या मिस किया- बिहार के
लोग बहुत गर्मजोशी से स्वागत करते हैं, उनका प्यार बहुत ही निश्चल है। हमने
हमारी टीम ने वहां खूब लिटटी चोखा खाया। गहलौर निवासियों ने हमें खूब प्यार दिया।
पूरा गांव ही एक परिवार की तरह था। कई बार कुछ चीजें समझ नहीं आती थीं फिर हम सभी
हंसते रहते थे।
एक बात समझ नहीं आई मांझी के किरदार के लिए नवाज
को ही क्यों चुना इस सवाल के जवाब में केतन बहुत संजीदगी से कहते हैं कि मैंने नवाज का काम देखा था। मैं जब भी मांझी के किरदार के
लिए किसी और को सोचता तो मुझे सिर्फ नवाज और उसकी आंखों में वो जुनून दिखता था जो
दशरथ मांझी की आखों में उनकी फोटो में दिखता है। नवाज एक उम्दा अभिनेता हैं और मांझी के किरदार के लिए उनकी
कदकाठी भी ठीक है. जिस पल मैं उनसे मिला उसी समय मुझे लगा कि इस किरदार के लिए वह
एकदम सही रहेंगे। यहां तक कि छोटे से किरदार में भी वह एकदम उभर कर आते हैं। मांझी
एक मजबूत भूमिका थी और इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है और सच बताउं उनका काम
देखकर मैं विश्वास ही नहीं कर पा रहा था सबकुछ अविश्वसनीय है। उनकी आंखों की गहराई को नजरअंदाज नहीं किया जा
सकता। लेकिन फिल्म में राधिका का किरदार और पहनावा बहुत पसंद नहीं किया गया-
राधिका का चयन मैंने 100 लड़कियों
को देखने के बाद किया था। राधिका में मुझे वो नमक दिखाई दिया जो बिहार की लड़कियों
में होता है। सांवली, सेंसुअस, सेंसिबिल लड़की है राधिका वैसी ही रही होगी फगुनिया
भी।
No comments:
Post a Comment