शानदार जबरजस्त मेट्रो
आवाज उठाइए देर से ही सही
सुनी जाएगी
पूजा मेहरोत्रा
बहुत खुश हूं। खुद को दशरथ
मांझी से कम नहीं समझ रही हूं। ठीक है मैने कोई पहाड़ नहीं खोदा, कोई रास्ता नहीं
बनाया। बहुत मेहनत का काम नहीं किया। लेकिन यह भी सच है कि मैंने जो किया उससे रात
में मेट्रो में सफर करने वाली महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस कर रही होंगी। जिस
तरह से रात में महिलाओं की आरक्षित कोच अनारक्षित में तब्दील होती थी और महिलाएं
चुप चाप ट्रेवेल करती थी अब सुकून से सफर तय कर रही होंगी। महिलाओं की सुरक्षा में
बरती जा रही मेट्रो की लापरवाही की ओर मेट्रो प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया। वैसे
तो मैंने रात में मेट्रो की सिथति के बारे में अपने मीडिया के साथियों को भी
बताया। क्योंकि इन दिनों मैं किसी डेली पत्रकारिता से नहीं जुड़ी हूं तो मेरी
आवाज भी किसी ने नहीं सुनी और न ही महिला की सुरक्षा में मेट्रो की खामियों को ही
उजागर करने की जहमत ही उठाई। मैंने अपनी बात बार बार ब्लॉग पर लिखी,
सांध्य टाइम्स ने मेरी आवाज के साथ आवाज मिलाई। सीसीटीवी के भरोसे महिला को
सुरक्षित मान रहे मेट्रो की कान पर शायद जूं रेंग गई। सुरक्षा टनाटन है।
मैं धन्यवाद देना चाहती हूं निर्देशक, स्क्रिप्ट
राइटर केतन मेहता, जबरजस्त अभिनेता और भले मानुष नवाजुददीन सिददीकी और राधिका आप्टे
के साथ हमारी मेट्रो को। अब आप कहेंगे मांझी, द माउंटेन मैन बनाने के लिए केतन को
बेहतरीन एक्टिंग के लिए नवाजुददीन का धन्यवाद देना तो बनता है। अब ये मांझी,
नवाजुददीन और मेरे बीच में मेट्रो कहां से आ गई। तो हुआ यूं कि मैंने रात नौ बजे कशमीरी गेट से
डायमंड में फिल्म देखकर मेट्रो ली थी।
वैसे तो उस ब्लॉग लिखने के
बाद मैं रात में ऑटो और टैक्सी ले रही थी। लेकिन इस महीने फिर से मैंने मेट्रो की
सवारी की और इस महीने की ये चौथी या पांचवी बार देर रात मेट्रो में थी। मेट्रो में
सुरक्षा के रंग ढंग मुझे बदले बदले लग रहे थे। पहले मुझे लगा 15 अगसत आने वाला है
शायद इस वजह से चेकिंग हो रही है। लेकिन 15 अगस्त के बाद मैं तीन बार मेट्रो में
देर रात चढ़ी और मैने देखा मानसरोवर और झिलमिल तक में भी सुरक्षा अधिकारी महिला
कोच का जायजा ले रहे हैं। और कोच में यदि कोई ज्वाइंट पर भी खड़ा है तो उसे उतार
लिया जा रहा है। अब मैं खुश हूं। अब मैं खुश क्यों हूं। तो खुश इसलिए हूं क्योंकि
आप मेनस्ट्रीम में न रहते हुए यदि आवाज उठाते हैं तो सुने जाते हैं। दूसरी बात वे
महिलाएं आरक्षित कोच में भी अपने बैठने के लिए स्थान ढूंढ रही होती थी उसमें
पुरुष यात्रियों का ही कब्जा दिखाई देता था अब नहीं है। सुरक्षा चाक चौबंद है।
तीसरी बात ये है कि मेट्रो जो सुरक्षा व्यवस्था सीसीटीवी के भरोसे छोड़ चुकी थी
और घटना के बाद सीसीटीवी खंगाल कर सुबूत इक्टठा करने की बात करती जरा सी सर्तकता
से महिलाएं छेड़खानी से बच जाएंगी।
ये उन लोगों के लिए जो ये
लेख पहली बार पढ़ेगें उनके लिए पुराना ब्लॉग का लिंक इसके साथ जोड़ दूंगी लेकिन
संक्षेप में यहां बता देती हूं। हुआ यूं कि पिछले दिनों मैंने रात में मेट्रो की
बेरूखी, महिलाओं के डिब्बों में पुरुष यात्रियों के कब्जे और बार बार सुरक्षा
अधिकारियों को फोन करने के बाद उनके द्वारा देर से कदम उठाए जाने पर ब्लॉग पर,
फेसबुक पर अभ्यिान चलाया था। मेरे उस अभियान में आप सभी साथियों ने खूब साथ दिया
था। टाइम्स ग्रुप के सांध्य टाइम्स ने मेरी आवाज के साथ आवाज बुलंद की थी। कल
जब बदला बदला रूप देखा तो मेट्रो को धन्यवाद बनता है।
पुराना ब्लॉग है ये भी पढिए http://pforpooja.blogspot.in/2015/06/blog-post_26.html
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