पूजा मेहरो्त्रा
क्या विजयी घोड़ा दिल्ली दंगल
के दलदल से निकल पाएगा। वह जितना निकलने की कोशिश कर रहा है फंसता ही जा रहा था।
आज इम्तिहान की घड़ी है। घोड़े को इस दंगल से
निकालने के लिए प्रमुख रथी महारथी के साथ खुद राजाओं के राजा मैदान में उतर गए थे।
अब यह घोड़ा इस दल दल से कितना निकल पाया यह तो 10 फरवरी को ही पता चलेगा। लेकिन
एक बात तो तय है कि घोड़े की लगाम एक बार फिर ऐसे के हाथ में जाती दिख रही है जिसे
कमतर कर के आंका जा रहा था। पिछले एक साल से घोड़ा जहां भी जा रहा था बिना किसी
रुकावट के विजयी पताका फहरा दिया जा रहा था। अब जब घोड़ा आखिरी पड़ाव पर था और जीत
आसान लग रही थी कि तभी न जाने कहां से घोड़े की लगाम राजा को खिसकती नजर आ गई। महाराजाधिराज
कल तक जिसे नौसिखिया और कल का आया मानकर सबकुछ आराम से करने की सोच रहे थे उसकी
ताकत ने उन्हें अचानक दिन में तारे दिखा दिए हैं। अब इस पकड़ को बिलकुल आसान नहीं
मानते हुए नौसिखिए से निपटने के लिए उनके रथियों और महारथियों की पूरी सेना भी
जादू नहीं दिखा पाई। घोड़े की लगाम महाराज के हाथ में ही रहे इस लिए तमाम तरह के प्रलोभन
के साथ कई मोर्चे तक खोले गए। हर दिन नई तरह की रणनीति तैयार की गई लेकिन सब फीकी
साबित हुई।
महाराजाधिराजा और उनके
मंत्रीगण विजयी लहर में इतने गुम थे कि उन्हें लगा वे नौसिखिये को चुटकियों में मसल देंगे। वही नौसिखिया छोटी
सी टीम के साथ हर दिन दिल्ली की सड़कों पर अपनी ताकत दिखा कर पूरी देश दुनिया को
एक बार फिर सकते में डाल चुका था। मोदी जी की लुभावनी बातों का असर अब लोगों पर
होता नहीं दिख रहा है। लोगों के दिलो दिमाग पर महंगाई सिर चढ कर बोल रही है।
झाड़ू का जादू कुछ ऐसा बोल
रहा है कि दिल्ली के ऑटो वाले से लेकर डॉक्टर अधिकारी तक झाडू लिए घूमने लगा।
सीधा कहता है देश में होगी मोदी लहर, ये दिल्ली है और यहां सिर्फ झाडू ही चलेगी। दिल्ली
की जनता लहर पर नहीं काम पर वोट देती है। 15 साल कांग्रेस इसलिए थी दिल्ली में क्योंकि
शीला दीक्षित ने काम किया था लेकिन उनके मंत्रियों की अकड बढ गई थी, भ्रष्टाचार
चरम पर था। वर्ना शीला जी के काम में खराबी नहीं थी। अगर आप नहीं तो कांग्रेस। फूल
देश में खिलाया लेकिन नौ महीनों में क्या किया है बातों के अलावा, बातों से पेट
नहीं भरता। कहां है 15 लाख रुपए। कांग्रेस को वोट नहीं दोगे, तो जवाब आया जरूर
देंगे उनके मंत्रियों के दिमाग जरा फैल गए थे। शीला ने दिल्ली बदल दी। बिजली पानी
महंगा किया लेकिन पूरी दिल्ली चमका दी। फलाइओवर बना दिया।
दिल्ली की जनता देश की
जनता से अलग निकली। यहां की जनता के पास हाथ, फूल के अलावा झाड़ू भी है। जो हर
किसी के घर में है और सभी उस झाड़ू की महत्ता को समझा चुके हैं। बार बार धोखा खाई जनता कुछ नया चाहती है जो उसे
झाडू में दिख रही है। वहीं हर जगह से विजयी पताका लिए आ रहे अश्वमेधी घोड़े को यह
लगने लगा की लहर बरकरार है लेकिन जैसे ही चुनाव के दिन करीब आने लगे घोड़ा सुस्त
और थका सा नजर आने लगा। हर दिन नई तरह की रणनीति करने के बाद भी खांडवप्रस्थ के
जंगलों में अश्वमेध का घोड़ा कहीं खोने लगा और तभी से महाराज की सांस अटक सी गई
है। अब हवा की तेजी मंद होने का खतरा मंडराने लगा है तभी पार्टी ने नई रणनीति चली।
14 पंत मार्ग की राजनीति 11 अशोक रोड से होने लगी। मुख्यमंत्री प्रत्याशी किरण
बेदी का जादू भी घोड़े को दलदल से निकाल
पाने में कामयाब होता नहीं दिख रहा है। राजा की सांस ऐसी अटकी है कि न ली जा रही
है न छोडी ही जा रही है। वह जनता जो आज ठीक से दो जून की रोटी तक नहीं जुटा पा रही
है, महंगाई से त्रस्त है, भ्रष्टाचार हर कदम पर सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ा है
वह चाह कर भी 2022 का सपना नहीं देखना चाहती है। उसे आज अच्छा चाहिए। कल की कल
देखेंगे वाली जनता को दूख फूल मुरझाता सा दिख रहा है । यह प्रजा जरा हटके
है यह अपना आज सुधारना चाहती है, इसका आभास राजा को हो गया है। प्रजा भी समझ चुकी है कि अब नहीं तो कभी नहीं। तो अब घोड़े के निकलने और पूरी तरह दलदल
में फंसने की खबर 10 फरवरी तक।
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