Thursday 11 May 2017

पत्थरबाजी हल तो नहीं



पूजा मेहरोत्रा
जिस तरह से कश्मीर में सेना पर पत्थरबाजी हो रही रही है और देशभर में कश्मीरी छात्रों से मारपीट हो रही है इसने केंद्र की सरकार के पशीने पर चिंता की लकीरें खींच दी है। न तो कश्मीर में सेना पर कश्मीरीयिों द्वारा पत्थरबाजी का यह पहला मामला है और न ही कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट का यह पहला मामला। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि इस पूरे मामले में गृहमंत्री राजनाथ सिंह को बोलना पड़ रहा है कि कश्मीरी छात्र भी भारतीय नागरिक हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राज्य सरकारों से कह तो दिया है कि कश्मीरी छात्रों के साथ इस तरह की मारपीट बर्दाश्त नहीं की जाएगी, कश्मीरी भी भारतीय नागरिक हैं। आनन फानन में कश्मीरी छात्रों के लिए हेल्पलाइन भी शुरू कर दी गई है। वैसे यह नहीं भूलना चाहिए की छात्र राजनीति इन दिनों चरम पर है और जब छात्र समूह में होते हैं तो वह भी खुद को उपद्रव करने से रोक नहीं पाते हैं।
शिक्षा वह अलख है वह हथियार है जिससे अंधविश्वास को मिटाया जा सकता है, गुमराह हो रहे नौजवानों को बचाया जा सकता है और गुनाह को खत्म किया जा सकता हैं।  शिक्षा में वो शक्ति है जो आपको सही और गलत का एहसास कराती है।  यही वजह है कि शिक्षा ग्रहण करने के लिए छात्र एक राज्य से दूसरे राज्य का फासला तय करते हैं। देश में सबसे बड़ा आंतरिक पलायन या तो रोजगार के लिए होता है या फिर शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए। संयुक्त राष्ट्र-ग्लोबल अर्बन यूथ रिसर्च नेटवर्क के 2014  में किए गए एक शोध से पता चला कि सबसे ज्यादा पलायन दस वर्षों में हुआ जिसमें लगभग 37  लाख युवा केवल शिक्षा के लिए अपने-अपने राज्यों और क्षेत्रों को छोड़कर दूसरी जगहों पर गए। इनमें 26 लाख पुरुष और 11 लाख महिलाएं थीं। लगभग 17 प्रतिशत युवा ऐसे थे जो दूसरे राज्यों में गए जबकि 16.8 लाख युवा ऐसे थे जिन्होंने अपने ही गृह राज्य में दूसरे जिलों में बेहतर शिक्षा के लिए पलायन किया। इस गणना में उन युवाओं को शामिल किया गया, जिन्होंने विशेष तौर पर शिक्षा के लिए पलायन किया। यानी ये आंकड़ें देश के भीतर शिक्षा संसाधनों के असमान वितरण की ओर भी ईशारा करते हैं। कुछ राज्यों में शिक्षा के लिए बेहतर साधन और संस्थान मौजूद हैं, तो कुछ राज्य इस मामले में लगातार पिछड़ रहे हैं। नतीजतन शिक्षा के लिए होने वाले पलायन की परिघटना गंभीर है। इस पलायन के बीच जब खबरें आती हैं कि एक विशेष राज्य के छात्रों को इसलिए दूसरे राज्य में मारा पीटा गया क्योंकि उस राज्य में हमारी देश की सेना के ऊपर पत्थर फेंका जा रहा है, सेना के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है तब लगता है कि समय आ गया है कि अब स्थिति को गंभीरता से लिया जाए। कश्मीर की आवाम भी अमन शांति चाहती है लेकिन हमें समझना होगा कि वहां अमन और शांति की बहाली हम वहां से निकले छात्रों के साथ मारपीट कर बहाल नहीं कर सकते। इस अमन शांति के लिए हमें उनके दिलों में विश्वास को जगाना होगा। डर के साए में जी रहे नौजवानों को शिक्षा के माध्यम से बताना होगा कि ये कश्मीर ही नहीं पूरा देश उनका भी है।
बीते बुधवार को राजस्थान के मेवाड़ विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों के साथ चित्तौड़गढ़ जिले में कुछ स्थानीय लोगों ने मारपीट की, जिसमें छह कश्मीरी छात्र घायल भी हो गए। 'बुधवार की शाम करीब छह बजे गंगरार कस्बे के नजदीक कम से कम नौ कश्मीरी विद्यार्थियों की लाठी और बैट से पिटाई की गई। स्थानीय लोगों को जब पता चला कि ये कश्मीरी हैं तो उन्होंने हमें निशाना बनाया। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि विद्यार्थी विश्वविद्यालय परिसर के नजदीकी बाजार की ओर जाते समय स्थानीय लोगों से उलझ गए थे। इस पूरी घटना में छह छात्र घायल भी हो गए हैं। इस मारपीट की वारदात को एकतरफा देखना थोड़ा मुश्किल है क्योकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि जब एक ही क्षेत्र के दस युवा एकत्रित होते हैं तो वे भी खुद को मजबूत साबित करने की कोशिश करते हैं। इन छात्रों ने भी स्थानीय लोगों के खिलाफ बल का प्रयोग किया ही होगा। छात्रों की मारपीट का ये मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि मेरठ में कश्मीरी छात्रों के खिलाफ लगाया गया पोस्टर विवादों में आ गया।
उत्तर प्रदेश नव निर्माण सेना नाम के एक संगठन की तरफ से मेरठ-देहारादून हाइवे पर बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे कश्मीरियों को प्रदेश छोड़कर जाने की चेतावनी दी गई है। 30 अप्रैल के बाद यूपी में कश्मीरियों के खिलाफ हल्ला बोलने को भी कहा गया है। कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट की यह कोई पहली घटना नहीं है। मेरठ में इससे पहले भी कश्मीरी छात्रों को मारा पीटा जाता रहा है। कश्मीरी छात्रों पर इस हमले को कश्मीर में सैनिकों पर की जा रही पत्थरबाजी का प्रतिक्रिया माना जा रहा है। छात्रों से मारपीट करने और यूपी से जाने की धमकी देने वालों का मानना है कि जो छात्र यहां पढाई कर रहे हैं उनके परिवार वाले ही हमारी सेना और सैनिकों के साथ वहां दुर्व्यवहार कर रहे हैं। जब कश्मीरी छात्रों को यहां से खदेड़ा जाएगा तभी उन्हें सबक मिलेगा। कश्मीरी छात्रों को सबक सिखाने के लिए की जा रही इस पूरी कारवाई में उन्हें मकान न दिए जाने से लेकर खाने पीने तक की चीजें बेचे जाने पर भी रोक लगाए जाने की बातें सामने आ रही हैं।
कश्मीरी छात्रों के साथ हो रही मारपीट की घटनाओं को केंद्र सरकार ने गंभीरता से लिया है। गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही है। नॉर्थ ईस्ट के छात्रों के साथ देश के कई हिस्सों में दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है, उन्हें मारा पीटा जाता है तब सरकार की न तो एडवायजरी जारी करती है और न ही हेल्पलान और केंद्र उनके लिए  कोई संज्ञान लेती नजर नहीं आती हैं।
 इससे पहले भी हॉस्टल में बीफ खाए जाने के विवाद को लेकर भी कश्मीरी छात्रों के साथ मारपीट की गई थी जबकि २०१६ में भोपाल की बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में भी पीएचडी कर रहे उमर रशीद ने अपने साथ मारपीट की शिकायत दर्ज कराई थी।
पत्थरबाजों और मारपीट के बीच से डॉ. रूबैदा सलाम, फैशल शाह, अतर आमिर उल शफी चंद ऐसे नाम हैं जो कश्मीर की सूरत और सीरत को नया आयाम देते नजर आते हैं।

                           

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