देश में एक अध्यात्मिक गुरू
हैं.बड़ा नाम है। सफेद धोती में लिपटे रहते हैं..मुस्कुराते हैं तो उनके अनुयायी
मानो मर ही जाएं उनपर..देश की अध्यात्म की और जीने की कला सिखाते हैं..पिछले दिनों
उन्होंने पर्यावरण की रक्षा करने के लिए बनाई गई अदालत पर भी कई तरह के प्रश्न
लगाए..मुझे न तो उस गुरू से शिकायत है क्योंकि वो तो बाजार में है और अपना माल बेच
रहा है..अध्यात्म माल है और वो उसका बाजार लगाता है और बेचता है...क्योंकि वो एक
संस्था है और जब संस्था है तो लाभ हानि और बाजार सब का जुड़ना स्वाभाविक है। मुझे
शिकायत है देश के प्रधानमंत्री और नमामी गंगा और यमुना का प्रोजक्ट देख रही हमारे
नेताओं की टोली से और उसकी पूरी दिखावटी फौज से..
आज जीमेल एकाउंट पर
असलम दुर्रानी साहब का युट्यूब लिंक आया है..मस्ट वॉच... एनजीटी के खिलाफ यमुना की
रिपोर्ट भेजी है..यूट्रयूब पर है...उस पूरी रिपोर्ट को एक अमेरिकन स्टाइल लड़का
पढ़ रहा है। वो बार बार यमुना के हालात की बात कर रहा है और खुद की सफाई देता दिख
रहा है..कुछ इनसैट की इमेज का उपयोग भी किया गया है. कि यमुना के हालात पहले से ही
खराब थे ..हमने या हमारी संस्था ने कुछ नहीं किया..हमने कोई पेड़ नहीं काटे..और
ब्ला ब्ला....करोड़ों जी मेल यूजर्स को मेल गई होगी...
रविशंकर उर्फ अध्यात्मिक
गुरू.. उर्फ जीने की कला सिखाने वाले .दुनियाभर को अध्यात्म का पाठ पढाते हैं..
पर्यावरण के प्रति बहुत चिंतित भी दिखाई देते हैं..बड़ी बड़ी बातें करते हैं.लोगों
को जीने का तरीका सिखाते हैं संस्था का नाम है आर्ट ऑफ लिविंग। चूंकि उनके
अनुयायियों की संख्या करोड़ों में देश में और विदेश में है तो हमारे देश के छोटे
बड़े सारे सरदार तक उनकी चरण वंदना करते नजर आते हैं.. हमारे यहां तो
चंद्रास्वामी, आशाराम से लेकर स्वामी ओम तक की चरणवंदना होती है..पलक झपकते लोग
उनके दिवाने हो जाते हैं फिर नेता भी तो आम आदमी ही है..भले ही इंजीनियर ही क्यों
न हो या फिर देश का प्रधानमंत्री...देश को नदी स्वच्छ बनाने का संदेश देने वाला
मरती हुई यमुना पर रोक के बाद तीन दिन का कार्यक्रम करता है...और जब पर्यावरण पर
नज़र रखने वाली कोर्ट कार्यक्रम पर रोक लगाती है तो उस समय उसकी सारी बातें तक मान लेता है..और
मंत्री से लेकर संत्री तक कोर्ट के आगे हाथ जोड़े खड़े नज़र आते हैं।
एनजीटी पर दबाव बनाया जाता
है और जब कार्यक्रम हो जाता है तो दाढ़ी के पीछे मुस्कुराता कुटिल चेहरा सामने आता
है। वो जो लोगों को आर्ट ऑफ लिविंग सिखाता है..चेहरे पर मुस्कार बिखेरे हुए थेथरई
पर उतर जाता है। सच्चा और पवित्र दिखने वाले इंसान के पीछे की कायरता बार बार
लोगों के सामने आती है। फिर भी लोगों की आंख नहीं खुलती ...नमामि गंगे और और यमुना
की सफाई का दावा करने वाली सरकार चुप्प होकर उसके सामने नतमस्तक है।
पिछले साल संस्था के
कार्यक्रम की वजह से यमुना को बहुत नुकसान हुआ है। उन्होंने दिल्ली की मरणासन्न यमुना के किनारे को
तबाह कर दिया है। यमुना के अंदर बचे खुचे जीव जंतु.. यमुना का वेजिटेटिव एरिया.और
यमुना नदी के बाढ का क्षेत्र सबकुछ बर्बाद हो चुका है। जिसे ठीक होने में कम से कम
दस साल का समय लग जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि उस सांस्कृतिक महोत्सव के कारण 'बर्बाद' हुए यमुना के डूब
क्षेत्र के पुनर्वास में 13.29 करोड़ रुपए की लागत आएगी और इसमें करीब 10 साल का
वक्त लगेगा. एक विशेषज्ञ समिति ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को यह जानकारी
दी है. जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने
एनजीटी को बताया है कि यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र को हुए नुकसान की भरपाई के लिए
बड़े पैमाने पर काम कराना होगा.
समिति ने यह भी
कहा, "ऐसा अनुमान है कि यमुना
नदी के पश्चिमी भाग (दाएं तट) के बाढ़ क्षेत्र के करीब 120 हेक्टेयर (करीब 300
एकड़) और नदी के पूर्वी भाग (बाएं तट) के करीब 50 हेक्टेयर (120 एकड़) बाढ़
क्षेत्र पारिस्थितिकीय तौर पर प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं."बाद में सात
सदस्यों वाली एक विशेषज्ञ समिति ने एनजीटी को बताया था कि यमुना पर आयोजित
कार्यक्रम ने नदी के बाढ़ क्षेत्र को 'पूरी तरह बर्बाद' कर दिया है.
देश की सबसे बड़ी
पर्यावरण अदालत ने जब इस आध्यात्मिक गुरू रविशंकर के खिलाफ नाराज़गी जताई और पूछा
कि 'क्या आपकी कोई जिम्मेदारी
नहीं बनती. आपको लगता है कि आप जो मन में आया बोल सकते हैं?'
बड़ी बड़ी बाते
करने वाले ये बाबा रविशंकर की भलमनसाहत और पर्यावरण के प्रति और देश के प्रति जागरूकता
और समर्पण का नमूना ये देखने को मिला कि वह कहते पाए गए कि पिछले साल यमुना नदी के
किनारे हुए तीन दिन के सम्मेलन के आयोजन के लिए सरकार और अदालत जिम्मेदार है.
उन्होंने कहा कि यह तो सरकार और अदालत की गलती है कि उन्होंने इस कार्यक्रम की
अनुमति दी.
जब कार्यक्रम पर
कोर्ट ने रोक लगा दी थी तब रविशंकर घुटनों के बल थे और जब अनुमति मिल गई और
हर्जाने की भरपाई करने का समय आया तो रविशंकर अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते है कि 'अगर किसी तरह का जुर्माना लगाना ही है तो
केंद्र, राज्य और एनजीटी पर लगाया
जाना चाहिए जिसने इस कार्यक्रम की अनुमति दी थी. अगर यमुना इतनी ही नाज़ुक और
पवित्र है तो उन्हें वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल करने से हमें रोकना चाहिए था.'
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