Sunday 15 January 2017

वो डराएं तो आप सामने खड़ी हो जाइए....फिर वो डरेंगे....


पता नहीं क्यों मैं फटे में टांग अड़ाती हूं या कुछ फटा मेरे पास खुद आ जाता है...आज फिर मैं आपा खो बैठी..पहले कोशिश की कुछ नहीं कहूंगी..किस किस से लड़ू और कितना लड़ू...ये नहीं सुधरेंगे..अभी ये सोचती हुई बढ़ती जा रही थी...लेकिन अंदर ही अदर आग बढ़ती जा रही थी..मैं चलती जा रही थी...
इन दिनों बैट्री रिक्शा सड़क पर बहुत है..चूंकि इसपर कोई लाइसेंस की कोई रवायत नहीं है तो छोरे लफाड़ें तक रिक्शा चलाने लग गए हैं...न पुलिस की नजर है और सरकार तो...मत पूछो..नो कमेंट...
रिक्शे की ड्राइविंग सीट पर तीन किशोर बैठे खुद को सलमान, आनिर और शाहरूख समझ रहे थे...उनके लिए सड़क पर चलती लड़कियों के पीछे से चिल्लाना और आवाजें निकालना एक मजे की बात थी शायद...
मैंने देखा कि वो एक लड़की के पीछे चिल्लाए...अभी मैं कुछ समझ कर पीछे मुड़ती की वो मेरे पीछे भी आकर चिल्लाए...मैं एक बार को चौंक गई...अच्छा अमूमन ऐसा सड़क पर चल रही लड़किकयों के साथ मनचले छिछोरे टाइप ही नहीं सभ्य टाइप कहे जाने वाले भी कुछ न कुछ बोल कर निकल जाते हैं...कुछ जो ज्यादा जोशीले होते हैं वो चिल्लाते हैं..फिर पीछे पलट कर देखते हैं कि लड़की कितनी डरी...उसका चेहरा कैसा लग रहा है...फिर वो हंसते हैं...वो तीनो पलटे मुझे देख कर हसंते रहे...और जो मुझे नहीं देख पा रहा था उसे कुछ बताया और फिर पलट कर देखा और हंसे...
रिक्शे में चार आदमी ही बैठे थे..वो भी मुस्कुरा रहे थे...मैं सोच रही थी अगर इन चारों की जगह होती तो क्या मैं इस रिक्शे वाले के लड़की के पीछे चिल्लाने पर डांटती..रिक्शा रुकवाती..क्या करती?
मैं अंदर अंदर गुस्से में भरती चली जा रही थी......पहले सोचा दौड़ू और पकड़ू और खूब मारूं...लेकिन फिर लगा यार यहां तो हर कोई ऐसा ही है...कहां तक लड़ू कितना लड़ू...आगे बढ़ रही थी..अपमानित सी...लेकिन ये सोचती जा रही थी कि छोड़ूगी तो नहीं...हरे रंग का बैटरी का रिक्शा पीछे १३ लिखा था...पत्रकारिता का एक फायदा तो है आप अगर तुरंत रिएक्ट नहीं करते लेकिन आप बाद में एक सख्त कदम उठा सकते हैं...मैं चलती जा रही थी क्योंकि पुस्तक मेले के लिए मुझे ऑटो लेना था...शालीमारगार्डेन के मेन गेट पर अक्सर ही ट्रैफिक मिलने की वजह से गाडियां रूकती हैं...वो रिक्शा भी रुका था...मैंने अपनी रफ्तार तेज की और रिक्शे वाले को पकड़ लिया और कहा हां बेटा अब चिल्ला....
तीनो को काटो तो खून नहीं...चेहरा सफेद....
जो ड़ाइविंग सीट पर था वो रिक्शा भगाना चाहता था...वो चारों जो रिक्शे में बैठे थे पहचान गए...
ड़ाइविंग सीट पर बैठा बोला मैडम मैं नहीं ये चिल्लाया था...
मैंने कहा अब चिल्ला और हंस ....अब सामने हूं...अब क्यों नहीं हंस रहा है...हंस तेज हंस....पीछे से हंस कर भाग रहा था ....सामने हंस ....
वो घबरा रहे थे...फिर से उसने कहा मैडम मैं नहीं था...मैंने कहा बुला कौन आ रहा है और किसी को बुला ...किस किस को सड़क पर चल रही लड़कियों को डराने वाली आवाज निकालनी है....बोला मैडम मैंम मैं नहीं था...
मैने कहा बड़ी जल्दी भूल गया...दो मिनट भी नहीं हुए...अभी तो आवाजें निकाल रहा था....डरा कर हंस रहा था....पीछे पलट पलट  रहा था....अब तो सामने हूं हंस मैं भी हंसूगीं....
सब सन्न थे...दो लोग आए...तीन लोग आए...चार...पांच और .भीड़ लग गई...मैंने कहा तेरे साथ हम सब हंसेगे...चिल्लाएंगे....हंसता क्यों नहीं...सामने से हंस न...
सब समझ चुके थे कि इन तीनों ने कुछ किया है...एक बड़ा डील डौल वाला आया और मुझे कहने लगा  मैडम मारो इसे....मैने कहा मारना होता तो इसके पीछे दौड़ लगाई होती....मारना नहीं है...इतना काफी है...अगर आज मैं इसे पकड़ रही हूं तो ये समझ पाएगा कि कल इसे मार भी पड सकती है....
एक ने कहा मां बहन है घर में...बोला हां है...ये भी बड़ी बहन है..
मैं फिर चिल्लाई बहन मत बोल मुझे...ऐसे भाई ...थूथूथू.....
इतनी बात चीत में दो तीन लोग दो चार थप्पड़ चला चुके थे...मैं मना कर रही थी..मारो मत....मारना नहीं है...समझाना है...नहीं समझा तो पुलिस मारेगी....छोड़ो उसे....
तीनो माफी मांग रहे थे...अफसोस उन चार लोगों पर है...अगर उन यात्रियों ने रिक्शे वालों को तभी रोका या डांटा होता... जब वो लड़कियों पर चिल्ला रहे थे....तो ....
नोटः लड़कियां.डरें और सहमें नहीं...धीरे से ही सही आवाज तो उठाइए....


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