आज पूरा विश्व
महिला दिवस मना रहा है। खूब बधाइयां आ रही हैं। कोई महान, कोई जुझारू कोई रोल मॉडल और जाने क्या क्या बता रहा है।
भले ही मैं सबको धन्यवाद देती रही। माफ कीजिए ये बातें मुझे खुश नहीं करतीं। पता
नहीं क्यों सब दिखावा लगता है। मुझे आसपास कुछ भी बदलता हुआ नहीं दिखता है न दिख
रहा है। कितना भी पत्थर उछाल कर आसमान में छेद करने की कोशिश कीजिए वो पत्थर
अपने ही सिर पर आकर गिरता हुआ प्रतीत होता है। हर दिन शाम गहराते ही घर की चार
दीवारी में समा जाने का मन करने लगता है। अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगती है। ये एक दिन की खुशी मुझे कभी नहीं भाई। ये एक दिन
में सिमटे लोग मुझे दबे कुचले से लगते रहे हैं। मैं कभी भी एक दिन में सिमट कर
नहीं रहना चाहती, मुझे सारा का
सारा आसमान चाहिए।
आज जब पूरा देश महिला दिवस पर कई तरह के कार्यक्रम कर रहा था
उसी समय स्टॉप एसिड अटैक की पूरी टीम कुछ खास अलग करने में जुटी थी। रितु, लक्ष्मी, रूपा, नीतू, गीता
के जज्बे को सलाम करती हूं। आज 8 मार्च का दिन बहुत खास था। आज इन वीरांगनाओं
का कैलेंडर लांच किया गया। छोटी छोटी मुश्किलों से घबरा जाने वाली हर एक बच्ची, बहन, बेटी
और मां के लिए ये वीरांगनाएं मिसाल हैं। आलोक दीक्षित को एक बार फिर से बधाई। मैं हमेशा
उनकी पूरी टीम के साथ हूं। ये वीरांगनाएं अब तेज़ाब पीड़ित नहीं हैं आज की
“शिरोज” हैं। कल तक खुद को दोशी
मानने वाली ये वीरांगनाओं की दुनिया बदल चुकी है। अब वह समझ चुकी हैं कि घर की
चारदीवारी उन्हें वो मंजिल नहीं देगी और न ही वह सपना जो उन्होंने अपनी जिंदगी
के लिए देखा था। अपने जले चेहरे को छुपाने के लिए जो वे नकाब ओढा करती थीं अब ढकना
छोड़ दिया है। अब वे दुनिया को वो दिखाना चाहती हैं जो दुनिया ने उन्हें दिया है। वे आज 2015 स्टॉप एसिड एटैक कैलेंडर की मॉडल्स हैं। सराहनीय प्रयास है। कैलेंडर के 12 पन्ने इन रोल मॉडल्स की जज्बे की कहानी कह रहे हैं। इनके सपनों को उड़ान मिल चुकी है। कोई फोटोग्राफर नजर आ रही है तो किसी ने ब्यूटीशियन बन कर अपनी बिखरी को नया रूप दे दिया है। रूपा और लक्ष्मी की तो बात ही अलग है। रूपा अब पूरी तरह ड्रेस डिजाइनर बनी नजर आईं। अब मॉडल्स शान से कहती हैं ‘हमे अपने
इस चेहरे से प्यार है, क्यूँ छुपाएँ हम चेहरे को
जब हमारी कोई गलती ही नहीं है।“
क्यूँ छुपे हम जमाने से?
गरम पानी की चंद बूंदे या गरम तेल के छींटे जब
शरीर पर पड़ती हैं तो कुछ देर के लिए उसकी तपिश हमे तिलमिला देती है। उस बूंद से शरीर
पर पड़े छाले हमे डराते रहते हैं । हम उस दर्द को अहसास भी नहीं कर सकते जिनपर
तेजाबी हमला होता है। तेज़ाब सिर्फ हमले के शिकार के जिस्म को नहीं झुलसाता बल्कि पूरी
ज़िंदगी झुलस जाती है। झुलसे शरीर का दर्द कैसा होगा उसका अंदाज़ लगाना भी पूरे शरीर
मे झुरझुरी पैदा कर देता है। तेज़ाब जैसे ही शरीर पर पड़ता है स्किन ऐसे पिघलती है
जैसे पोलीथिन सिकुड़ती है या टायर जलता है। बूंद बूंद कर त्वचा गल कर निकल जाती है।
आंखे तक बह जाती हैं। अगर तेज़ाब पीड़ित अपने चेहरे को नकाब से और आंखो को काले
चश्मे से ढँक कर न चलें तो यकीन मानिए उन्हे देखने के लिए खास तरह कि हिम्मत की
जरूरत पड़ती है। फिर दुनिया उस दर्द को क्या समझेगी जिससे वह हर दिन जूझती हैं।
फिर ये एक दिन की खुशी क्यों,
किसके लिए, किसे दिखाने के लिए। हम आप जब वुमेंस डे मना रहे हैं तभी इसी देश के
किसी कोने में हर 20 मिनट में एक लडकी की कहीं इज्जत तार तार हो रही होगी। कहीं
किसी सड़क पर किसी की घूरती निगाहें उसे लड़की होने का दंश झेलने पर मजबूर कर रही
होगी। कहीं किसी बस में लड़की अपना तन मन सबकुछ बचाकर सुरक्षित घर पहुंचना चाह रही
होगी। मुझे ये एक दिन की खुशी
नहीं चाहिए।
आपके ये आलेख जितना लोगो को जागरूक करेगा उतना ही ये आलेख सार्थक होगा
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