Wednesday, 25 February 2015

हम बेहतर इसे बनाएं और इसका लाभ उठाएं 'रेलवे'


पूजा मेहरोत्रा
 मेरा मानना है कि रेलगाड़ियों में चलने वाले ही देश का असली चेहरा हैं। और वही देश का असली प्रतिनिधित्व भी करते हैप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दिसंबर, 2014 में यह बात मान ही चुके हैं। अरे भाई वो चाय भी तो रेल में ही बेचते थे। जब रेलवे के निजीकरण की अटकलें लगाई जा रही थी तब उन्‍होंने ऐसी किसी भी संभावना से इनकार भी कर ही दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि रेलवे देश के आर्थिक विकास की रीढ़ है और उन्‍हें उम्‍मीद भी थी कि इसका बेहतर उपयोग कर ज्यादा से ज्‍यादा पैसा कमाया जा सकता है
लेकिन रेल हादसों का क्‍या करें। हमारी सबसे बडी समस्‍या भी वही हादसे हैं। अगर आंकडो पर नजर डालें तो अक्तूबर, 2014 तक 18,735 लोगों ने विभिन्न रेल हादसों में अपनी जान गंवाई है। 5 हजार मौतें तो सिर्फ नॉर्दन रेलवे के अंतगर्त ही हुई हैं (अभिशेक कुमार की रिपोर्ट से)। मानव रहित रेलवे क्रासिंग रेल दुर्घटना की सबसे बडी समस्‍या है। सबसे ज्‍यादा लोग भी इन्‍हीं 12हजार मानवरहित रेलवे क्रासिंगों पर अपनी जान गंवाते हैं। नितीश जी से लेकर लालू तब दीदी तक ने मानवरहित रेलवे फाटक के लिए  कई कई योजनाओं की बात की थी। न योजनाएं बनाई गईं और न ही दुर्घटनाएं ही कम हुईं।
रेलवे अपने आर्थिक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। रेलवे जितना कमाती है उसका 94 फीसदी अपने कर्मचारियों के वेतन से लेकर  उसके रखरखाव पेंशन, मेंटेंनेंस आदि पर खर्च कर देती है। बाकी छह रुपए जो बचते हैं पूर्व रेलमंत्री सदानंद जी लाचारी दिखाते हुए कह गए थे कि वही पैसे आगामी प्रोजेक्‍ट में खर्च होते हैं। जिससे रेलवे का विकास उतनी तेजी से नहीं हो पाता जिस तेजी से होना चाहिए।
 वैसे जितनी मेरी समझ है रेल मंत्री साहब को थोडी चालाकी अपनाते हुए रेलवे की खाली पडी करोडों एकड जमीनों को र्कॉ‍मशियल यूज के लिए योजना बनाने के विषय में कुछ सोचना चाहिए। रेलवे प्‍लेटफॉर्म जो इतने लंबे लंबे हैं वहां यात्रियों की सुविधाओं को ध्‍यान में रखते हुए कुछ नए प्रकार की योजनाएं और सुविधाएं आदि मुहैया कराने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहज नई योजनाएं बनानी चाहिए। रेल देश के विकास की आवश्‍यकता है। देश के विकास में रेलवे का जितना योगदान है, उसके मद्देनजर रेलवे के संसाधन बढ़ाने भी  बहुत जरूरी हैं। लेकिन रेलवे की हालत भी देश के उस गरीब परिवार की तरह है जो न तो अपनी ही जरूरते पूरी कर पा रहा है और न ही परिवार वालों को आगे बढाने के लिए कुछ आवश्‍यक कदम उठा पा रहा है। रेलवे के पास न तो पैसे हैं और न ही उसे पैसे मिल ही रहे हैं और खर्चा घटने का नाम ही नहीं ले रहा है।
अभिषेक कुमार अपनी एक रिपोर्ट में लिखते हैं कि आर्थिक रूप से रेलवे की डगमगाती नैया को छठे वेतन आयोग से ही करारा झटका मिला था। उसे अपने 25 लाख से अधिक रेलवे कर्मचारियों और पेंशन भोगियों को भुगतान करने के लिए 70 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने पड़े थे। हालत यह हो गई है कि खर्च चलाने के लिए भारतीय रेलवे को वित्त मंत्रालय से कर्ज लेना पड़ा।

 रेलवे अगर अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए यात्री किराये व माल भाड़े में बढ़ोतरी करता है तो उसे पूरे देश से नाराजगी झेलनी पडेंगी। केंद्र सरकार ऐसा कोई भी कदम उठाने की स्थिति में नहीं है।  रेलवे में यात्रियों को मिलने वाली सुविधाओं से हम सब वाकिफ हैं आज लगभग हर खबरिया चैनल अपनी अपनी तरह से रेलवे की खस्‍ता हालत को दिखा रहे हैं। सुविधाओं के नाम पर गंदी ट्रेन, लेट ट्रेन, असुरक्षित ट्रेन।
कहा तो ये जा रहा है कि आज पेश होने वाले रेल बजट में यात्री किराये बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं होगा। माल भाड़े में पहले ही इतनी बढोतरी हो चुकी है कि यदि अगर इसमें जरा सी बढोतरी हुई तो सड़क के रास्ते माल ढुलाई सस्ती लगने लगेगी। ऐसे में अपनी आमदनी बढाने के लिए रेलवे को कोई ठोस कदम उठाना होगा। या तो वो यात्री किराया में जबरदस्‍त बढोतरी करे, या फिर माल ढुलाई बढाए।  या फिर कोई नई योजनाएं न पेश करे और पहले पुराने वादे पूरे करे।
रेलवे के जानकार कहते हैं कि यदि रेलवे अपनी भावी विस्तार योजनाओं से फ्रेट कॉरिडोर के निर्माण पर पहले काम करे क्योंकि इससे उसे यात्री किरायों के मुकाबले ज्यादा कमाई होगी और उससे मिलने वाले राजस्व का इस्तेमाल वह यात्री सुविधाओं व रेल फाटकों पर कर्मचारियों की नियुक्ति या रेल पटरियों की मरम्मत में कर सकेगी।

देश की जरूरत और प्‍लेटफॉर्म पर यात्रियों की बढती तादाद पर अगर नजर डालें तो रेल मार्गों और ट्रेनों की संख्या की जबरदस्‍त कमी दिखाई देती है। रेलवे में सुविधाओं का अभाव की बात तो हर बजट से पहले चैनल से लेकर अखबार तक उजागर करते ही हैं। गाहे बगाहे रेलवे की कारगुजारियों की खबरें भी आती ही रहती है। हम भी रेलवे में सफर के दौरान हर उन बातों से दो चार होते रहते है। ऐसे में जरूरी यही है कि रेलवे सबसे पहले यात्रियों की सुविधाओं, सुरक्षा और उन्‍हें गंतव्‍य तक सुरक्षित पहुंचाने की ओर ध्‍यान दे। साथ ही इंजन, डिब्बों, ट्रैक व सिग्नलिंग सिस्टम की मेंटेनेंस और ओवरहॉलिंग का काम भी दुरुस्त करे।

हमारी भी सुनिए प्रभु जी



पूजा मेहरोत्रा
रेलगाडी यानि हमारी पहचान। हमारी यानि आम लोगों की पहचान। आज हमारे रेल मंत्री रेल बजट पेश करेंगे। अब सारी बातें तो उनकी अटैची में लिख कर बंद हो चुकी होगी। खबरिया चैनल से लेकर अखबार पत्रिका तक रेल से जुडे कई कई पहलुओं पर बात कर रहे हैं। मुझ पूजा की भी एक प्रार्थना है, मैं सिर्फ रेल में ही सफर करती हूं वह भी स्‍लीपर में। मेरी भी प्रार्थना रेल मंत्री जी तक पहुंचा दो कोई। प्रभु जी कुछ ऐसा चक्र चलाओ की हम बिहारियों को त्‍यौहार के दिनों में कनफर्म टिकट आसानी से मिल जाया करे। देश के हर कोने में हम बिहारी मौजूद हैं बेचारे लगने लगते हैं कभी कभी। हर त्‍यौहार में हम तीन महीने पहले टिकट लें या फिर चार महीने पहले ये वेंटिंग टिकट हमारी जान मारे है। अब तो तत्‍काल में भी वेंटिंग  मिलता है और प्रीमियम ट्रेन तो बिलकुल प्रीमियम नहीं लगती है। त्‍यौहार के दिनों में हमें बाथरूम के पास, चलने फिरने की जगह पर यात्रा करनी पडती है।

ट्रेन में मेरी बहनों, माताओं की सुरक्षा पहली आवश्‍यकता है। बुजुर्गों के लिए भी कुछ सोचिए। जिन बुजुर्गों को नीचे की बर्थ नहीं मिल पाती उनका ट्रेन में सफर कितना कष्‍टदायक होता है आप नहीं समझेंगे प्रभु जी। असंवेदनशील लोग उन्‍हें नीचे की बर्थ तक नहीं देते। दर्द स‍मझिए। कोई कारगर कदम उठाइए। आरपीएफ के जवान जो यात्रियों की सुरक्षा के लिए लगाए हैं उन्‍हें संवेदनशीलता का पाठ पढाइए। रक्षक ही भक्षक बन माताओं बहनों पर अपनी नजरें गडा देते हैं। भोली भाली माताओं बहनों को चलती ट्रेन से फेंक भी देते हैं।

 जब भी अलीगढ, खुर्जा और मेरठ जैसे लोकल एरिया से ट्रेन गुजरती है तो यहां के डेली पैसेंजर आरक्षित ट्रेन में घुसकर माताओं बहनों के साथ ही नहीं बुजुर्गों तक से बुरा व्‍यवहार करते हैं। वो आराम से बैठते हैं और जो लंबी दूरी के सफर करते हुए आ रहे होते हैं मत पूछिए उनका हाल। एक आध बार हम राजधानी ट्रेन में भी चढे हैं। क्‍या बताएं प्रभु जी बहुत बुरा हाल है कॉकरोच घूमते रहते हैं। ट्रेन में बदबू आ रही होती। चादरें बिना धुली, मुडी चुडी तह लगाकर दे दी जाती है। तकिया पर चढा गिलाफ बदबू मारता है। कंबल तो पता नहीं कब से ड्राइक्‍लीन नहीं हुआ होता। एक और ट्रेन है गरीब रथ। नाम की ही तरह बिलकुल गरीब ट्रेन है। साफ सफाई तो जाने दीजिए अटेंडेंट तक दारू के नशे में मिलता है। बाथरूम में पानी तक नहीं होता। छिटकनी तक नहीं होती। अकेली लडकी का सफर इस ट्रेन में तो नामुमकिन ही है। इस ट्रेन से सफर करने के बाद मैंने कसम ही खा ली। अब कभी इस ट्रेन में सफर  नहीं करूंगी। नहीं किया।  
ओह प्रभु जी, बजट बनाने से पहले अगर आप एक महीने में किसी ट्रेन से यात्रा कर लेते तो आपको वास्‍तविकता बतानी ही नहीं पडती। कभी आम लोगों की तरह सफर कीजिए अधिकारियों को बिना बताए। सलून पर तो आपके लिए सुविधाएं ही सुविधाएं रहती हैं। उसमें सफर कर आप हम लोगों का दर्द नहीं समझ पाएंगे और न ही कभी हमसे जुड् पाएंगे।


Friday, 13 February 2015

‘आप’का समय शुरू होता है अब


हर लहर एक तरफ केजरीवाल पांच बरस
पूजा मेहरोत्रा

खबर आ रही है कि अरविंद केजरीवाल तेज बुखार हो गया है। अब समय मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बुखार लगने का तो  रहा नहीं, अब तो भ्रष्‍टाचार, महंगाई, बिजली-पानी विभाग में बैठें लोगों को, सफाई कर्मचारियों, निजी स्‍कूलों में एडमिशन के नाम पर मनमानी कर रहे प्रशासनों को, कालाबजारी में मशगूल लोगों को बुखार लगाने का समय है। उनके जल्‍द स्‍वास्‍थ्‍य की कामना करते हुए मैं उनसे बस यह कहना चाहती हूं डर के आगे जीत है। वैसे यदि आपको उम्‍मीद से ज्‍यादा कुछ मिल जाए तो डरना स्‍वभाविक भी है। पिछले एक साल से आप पार्टी के कार्यकर्ताओं की मेहनत का फल दिल्‍ली की जनता ने उम्‍मीद से ज्‍यादा देकर डरा दिया है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी का शासन काल खूब देख चुकी दिल्‍ली की जनता को जिसका इंतजार था वह केजरीवाल ही है। दिल्‍ली की जनता एक ऐसा कृष्‍ण चाहती थी जो उसे सुने, समझे, जाने ही नहीं पहचाने भी। लोगों में यह विश्‍वास भरने में केजरीवाल जी सौ फीसदी सफल हुए और सफलता कुछ ऐसी थी कि ‘सारी लहर एक तरफ केजरीवाल पांच बरस

केजरीवाल भी जानते हैं और जनता भी कि विश्‍वास और प्‍यार से पेट नहीं भरता, समस्‍याएं खत्‍म नहीं होती, महंगाई कम नहीं होती। तो ‘आप’का समय शुरू होता है अब। बिजली हाफ पानी माफ का नारा देने वाली इस सरकार को आने वाले दिनों में कई-कई चुनौतियों का सामना करने के लिए कमर कस कर तैयार हो जाना चाहिए। बिजली हाफ पानी माफ, वाइ फाई फ्री देना अगर इतना आसान होता तो 15 साल से राज कर रही शीला सरकार अपनी कुर्सी पावर बचाए रखने के लिए इसे बहुत आसानी से मुहैया करा सकती थी। बिजली से लेकर पानी तक के लिए दूसरे राज्‍यों पर निर्भर रहने वाली दिल्‍ली कैसे यह मुहैया कराएगी यह सोचने की बात है। 49 दिनों के लिए इस तरह की योजना लागू कर देना तो आसान था लेकिन बात जब पांच साल की हो और बहुमत में हो तो? दिल्‍ली में रोजाना 435 करोड़ लीटर पानी की जरूरत है उसमें भी 316 करोड़ लीटर ही पानी की सप्‍लाई हो पाता है। ये वो आंकड़े हैं जो अनाधिकृत कलोनियों और सोसाइटी के लिए मुहैया कराए जाते हैं। कई झुग्गियां और बस्‍ती ऐसी है जहां रहने वाले पानी कैसे मैनेज करते हैं यह टैब खेालकर दाढ़ी बनाने वालों के लिए सोचपाना भी मुश्किल है। वैसे तो इस शहर की हर समस्‍या बहुत बड़ी है क्‍योंकि यह देश की राजधानी है। बस मार्च से बिजली और पानी की मांग बढ़ जाएगी। दिल्‍ली में बिजली पानी की तरह ही बड़ी समस्‍या है। रोजाना 5600 मेगावॉट की खपत करने वाली दिल्‍ली को किसी तरह से खींचतान कर 5200 मेगावॉट बिजली ही उपलब्‍ध हो पाती है। वैसे बवाना इलेक्‍ट्रीशिटी प्‍लांट में बिजली उत्‍पादन का काम जल्‍द ही शुरू होने वाला है उसके बाद भी बिजली बिल हाफ करने के लिए सरकार क्‍या और कैसे कदम उठाएगी यह देखने लायक होगा। क्‍योंकि दिल्‍ली का विकास करना भी एक मुद़दा है।   

  इस शहर की एक और सबसे बड़ी समस्‍या पर नजर डालें तो वह महिला सुरक्षा है। सीसीटीवी कैमरा लगाए जाने की बात आप ने की है। 15 लाख सीसीटीवी कैमरे लगा देने भर से यदि महिला सुरक्षित हो जाती है तो इससे बड़ा आश्‍चर्य क्‍या होगा। वैसे केजरीवाल की आप भी नसीब वाली सरकार साबित होने जा रही है राजधानी में चल रही डीटीसी बसों में सीसीटीवी कैमरा लगना शुरू हो चुका है। इसमें एक पैनिक बटन भी लगाया गया है। जिसका संचालन ड्राइवर के हाथों में रहेगा। पैनिक बटन दबाते ही बस के अंदर का हाल कंट्रोल रूम में सिर्फ दिखाई ही नहीं देगा बल्कि वहां सायरन बजेगा जिससे बस में खतरे की जानकारी पुलिस तक पहुंचाने का काम कंट्रोल रूम से किया जाएगा।  पिछले दिनों मैं जितनी भी हरी और लाल बसों में चढ़ी उसमें सीसीटीवी लगा देखा। लेकिन यह कैमरा महिला की सुरक्षा किस तरह से करेगा ये बडा सवाल है। क्‍योंकि वारदात करने वाले तो सिर्फ वारदात करते हैं अंजाम से कहां डरते हैं। फिर भी आज के लिए बस इतना। ‘आप’ने अपने मेनिफेस्‍टो में 70 तरह के वादे किए हैं। एकदम से सबकुछ बदल जाने की उम्‍मीद करना तो गलत होगा लेकिन फिर भी छप्‍पड फाड़ कर उम्‍मीद तो लगाई ही जा सकती है। एक बार पूरी ‘आप’की टीम को बधाई। ‘आप’का समय शुरू होता है अब।  
       


Thursday, 12 February 2015

खुद से कहिए 'हैप्‍पी वैलेंटाइन्‍स डे'

कहिए ‘हैप्‍पी वैलेंटान्‍स डे’

पूजा मेहरोत्रा
हर किसी को नहीं मिलता यहां प्‍यार जिंदगी में। खुशनसीब हैं वों जिनको है मिली ये बहार जिंदगी में। ये सिर्फ गाने के बोल मात्र नहीं है। सच्‍चाई है, जिसे जितनी जल्‍दी स्‍वीकार कर लिया जाए अच्‍छा है। पिछले दिनों मैंने आपसे मेहू को उसका प्‍यार मिले इसके लिए दुआ करने की गुजारिश की थी, मेहू ने मेरे घर भी आना छोड़ दिया है। मैं जाती हूं तो नजरें चुराती है। मां परेशान है बेटी को अचानक क्‍या हो गया है। मेहू अब समझ चुकी है कि वह उसके साथ मजाक कर के जा चुका है। वह पहले भी लोगों पर कम विश्‍वास करती थी। अब उसकी आंखें इतनी सूनी हो चुकी हैं कि उसका खुद पर विश्‍वास उठ गया है। अफसोस हो रहा था मुझे। उस लड़के के लिए भी । बहुत खूबसूरत न सही लेकिन एक स्‍मार्ट और समझदार लड़की है मेहू जिसे जिंदगी के हर मोड़ पर अपने आपको ढालना सीखा है। पूरा घर मोहल्‍ला ही नहीं दोस्‍त भी उससे अपने बुरे समय में सलाह लेते हैं और हर सिचुएशन से बड़ी आसानी से निकलने के कई आसान तरीके होते हैं मेहू डार्लिंग के पास। लेकिन शायद मेहू उसके लिए एक ऑब्‍जेक्‍ट थी, मेहू उसके लिए बस हाड़ मांस का लोथड़ा थी। जिसके साथ उसने प्‍यार का गंदा मजाक किया।  अब किसी और मेहू की तलाश में निकल गया। लेकिन वह मेहू जिसने जिंदगी में पहलीबार किसी पर विश्‍वास करने का साहस किया वह आज अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती माने बैठी है। पता नहीं उसके कोमल दिल ने क्‍या क्‍या सपने सजा लिए थे।
अभी मेहू की बातें मैं भूल भी नहीं पाई थी कि नौ फरवरी की एक शाम होती दोपहर में ई रिक्‍शा पर एक नया नजारा देखा। लड़का दारू के नशे में धुत्‍त लड़की पर पूरी तरह लुढका जा रहा था। और लड़की के ही फोन से किसी से बहुत बदतमीजी से बात कर रहा था। अभी नोएडा के सेक्‍टर 15 मेट्रो स्‍टेशन से रिक्‍शा आगे बढ़ा ही था कि उन दोनों का हाव भाव मुझे बता गया कि दोनों इश्‍क में हैं। मैंने उस गंदी बदबू से बचने के लिए अपनी नाक पर स्‍टॉल रख लिया था। तभी लड़की की रोती हुई आवाज कानों से होती हुई दिल को भेदती चली गई। दिल ने कहा अरे एक और मेहू छली जा रही है।
 लड़की उस लड़के से कह रही थी मेरे बारे में क्‍या सोचा है, लड़का कहता है- कुछ नहीं, बस तुझे छोड़ना नहीं चाहता। मेरी नजरें लड़की को देखने के लिए उठ चुकी थीं। उसकी आंखों से उसका प्‍यार बह रहा था, वह अपने प्‍यार की भीख मांग रही थी। बातों से पता चला लड़के की शादी की बात चल रही है और वह उस लड़की से मिलने जा रहा है लेकिन इस लड़की को भी छोड़ना नहीं चाहता।
लड़की- मेरी इस हालत के जिम्‍मेदार आप हैं, अगर आपको यही करना था तो इतने दिन तक----सिसकिंया और सन्‍नाटा।
दोनो ंको कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि दो अनजान लोग उन्‍हें लगातार सुन रहे हैं।
लड़की आगे कहती है इससे अच्‍छा आप मेरा गला घोंट देते, मार देते। आपने मुझे न इधर का रखा न उधर का।
 ओह कितना दर्द था उसकी बातों में।
 और वह नशे में धुत्‍त लड़के को न तो उसकी आंसू की परवाह थी न उसके दर्द की। वो लड़की की तरफ देख भी नहीं रहा था। बस एक बात कह रहा था तुझे नहीं छोड़ सकता, उसके मां पापा अच्‍छा पैसा देंगे फिर हम साथ रहेंगे, उसे नहीं लाउंगा।
मन किया उस लड़की का हाथ पकड़ू रिक्‍शे से उतारूं और समझाउं, जो शख्‍स सीधा बैठ नहीं पा रहा वह तुम्‍हारा साथ क्‍या निभाएगा। जो शख्‍स तुझे सामने सामने बेवकूफ बना रहा है उसके लिए इस आंसू का क्‍या मतलब है। बेवकूफ लड़की। मेरे अंदर कई सवाल जवाब उमड़ने घुमड़ने लगे थे। मुझे लगा अगर मैं कुछ कहती हूं तो क्‍या पता लड़की मुझे उसके मामले में बोलने के लिए कुछ भला बुरा कह दे। मेरी मंजिल करीब आ चुकी थी।  
जब मैं रजनीगंधा चौक पर फिल्‍मसिटी जाने के लिए उतर रही थी लड़की उस नशेड़ी से अपने प्‍यार की भीख मांग रही थी।
 मैं रिक्‍शे में बैठी सेक्‍टर 16 के किस मीडिया हाउस में जाना है बताया और फोन निकाल कर सूचना देने के लिए कभी संदेश तो कभी फोन करने की जुगत करती रही। लेकिन अब मेरी हिम्‍मत पता नहीं क्‍यों जवाब दे चुकी थी। मन बुरी तरह से रोने लगा था। मीडिया हाउस के सामने पहुंचने तक मैं जिससे मिलने गई थी, फोन करने का कई बार नंबर मिलाया, कुछ देर खड़ी रही लेकिन न जाने क्‍यूं बिना मिले वापस आ गई। बाद में एक संदेश भेजा कि आई थी लेकिन वापस जा रही हूं।

समझ नहीं आ रहा है कब तक ये लड़कियां यूंही बेवकूफ बनती रहेंगी। वो क्‍यों नहीं समझ पाती कि सामनेवाला क्‍या चाहता है? क्‍यों अंधा विश्‍वास कर लेती हैं? क्‍यूं प्‍यार आज भी एक खेल है जिसमें खामियाजा हमेशा लड़कियों को ही। चलिए कोई बात नहीं। प्‍यार कीजिए और विश्‍वास कीजिए क्‍योंकि यही जिंदगी है। तो जिंदगी जीती रहिए लेकिन समझदारी से। अगर आपकी जिंदगी में कोई नहीं तो इंतजार मत कीजिए खुद से प्‍यार कीजिए और खुद से ही कहिए, हैप्‍पी वैलेंटाइन्‍स डे। 

Friday, 6 February 2015

दलदल में फंसा अश्‍वमेध का घोड़ा


पूजा मेहरो्त्रा
क्‍या विजयी घोड़ा दिल्‍ली दंगल के दलदल से निकल पाएगा। वह जितना निकलने की कोशिश कर रहा है फंसता ही जा रहा था। आज इम्तिहान की घड़ी है।  घोड़े को इस दंगल से निकालने के लिए प्रमुख रथी महारथी के साथ खुद राजाओं के राजा मैदान में उतर गए थे। अब यह घोड़ा इस दल दल से कितना निकल पाया यह तो 10 फरवरी को ही पता चलेगा। लेकिन एक बात तो तय है कि घोड़े की लगाम एक बार फिर ऐसे के हाथ में जाती दिख रही है जिसे कमतर कर के आंका जा रहा था। पिछले एक साल से घोड़ा जहां भी जा रहा था बिना किसी रुकावट के विजयी पताका फहरा दिया जा रहा था। अब जब घोड़ा आखिरी पड़ाव पर था और जीत आसान लग रही थी कि तभी न जाने कहां से घोड़े की लगाम राजा को खिसकती नजर आ गई। महाराजाधिराज कल तक जिसे नौसिखिया और कल का आया मानकर सबकुछ आराम से करने की सोच रहे थे उसकी ताकत ने उन्‍हें अचानक दिन में तारे दिखा दिए हैं। अब इस पकड़ को बिलकुल आसान नहीं मानते हुए नौसिखिए से निपटने के लिए उनके रथियों और महारथियों की पूरी सेना भी जादू नहीं दिखा पाई। घोड़े की लगाम महाराज के हाथ में ही रहे इस लिए तमाम तरह के प्रलोभन के साथ कई मोर्चे तक खोले गए। हर दिन नई तरह की रणनीति तैयार की गई लेकिन सब फीकी साबित हुई।  
महाराजाधिराजा और उनके मंत्रीगण विजयी लहर में इतने गुम थे कि उन्‍हें लगा वे नौसिखिये  को चुटकियों में मसल देंगे। वही नौसिखिया छोटी सी टीम के साथ हर दिन दिल्‍ली की सड़कों पर अपनी ताकत दिखा कर पूरी देश दुनिया को एक बार फिर सकते में डाल चुका था। मोदी जी की लुभावनी बातों का असर अब लोगों पर होता नहीं दिख रहा है। लोगों के दिलो दिमाग पर महंगाई सिर चढ कर बोल रही है।
झाड़ू का जादू कुछ ऐसा बोल रहा है कि दिल्‍ली के ऑटो वाले से लेकर डॉक्‍टर अधिकारी तक झाडू लिए घूमने लगा। सीधा कहता है देश में होगी मोदी लहर, ये दिल्‍ली है और यहां सिर्फ झाडू ही चलेगी। दिल्‍ली की जनता लहर पर नहीं काम पर वोट देती है। 15 साल कांग्रेस इसलिए थी दिल्‍ली में क्‍योंकि शीला दीक्षित ने काम किया था लेकिन उनके मंत्रियों की अकड बढ गई थी, भ्रष्‍टाचार चरम पर था। वर्ना शीला जी के काम में खराबी नहीं थी। अगर आप नहीं तो कांग्रेस। फूल देश में खिलाया लेकिन नौ महीनों में क्‍या किया है बातों के अलावा, बातों से पेट नहीं भरता। कहां है 15 लाख रुपए। कांग्रेस को वोट नहीं दोगे, तो जवाब आया जरूर देंगे उनके मंत्रियों के दिमाग जरा फैल गए थे। शीला ने दिल्‍ली बदल दी। बिजली पानी महंगा किया लेकिन पूरी दिल्‍ली चमका दी। फलाइओवर बना दिया।

दिल्‍ली की जनता देश की जनता से अलग निकली। यहां की जनता के पास हाथ, फूल के अलावा झाड़ू भी है। जो हर किसी के घर में है और सभी उस झाड़ू की महत्‍ता को समझा चुके हैं।  बार बार धोखा खाई जनता कुछ नया चाहती है जो उसे झाडू में दिख रही है। वहीं हर जगह से विजयी पताका लिए आ रहे अश्‍वमेधी घोड़े को यह लगने लगा की लहर बरकरार है लेकिन जैसे ही चुनाव के दिन करीब आने लगे घोड़ा सुस्‍त और थका सा नजर आने लगा। हर दिन नई तरह की रणनीति करने के बाद भी खांडवप्रस्‍थ के जंगलों में अश्‍वमेध का घोड़ा कहीं खोने लगा और तभी से महाराज की सांस अटक सी गई है। अब हवा की तेजी मंद होने का खतरा मंडराने लगा है तभी पार्टी ने नई रणनीति चली। 14 पंत मार्ग की राजनीति 11 अशोक रोड से होने लगी। मुख्‍यमंत्री प्रत्‍याशी किरण बेदी का जादू  भी घोड़े को दलदल से निकाल पाने में कामयाब होता नहीं दिख रहा है। राजा की सांस ऐसी अटकी है कि न ली जा रही है न छोडी ही जा रही है। वह जनता जो आज ठीक से दो जून की रोटी तक नहीं जुटा पा रही है, महंगाई से त्रस्‍त है, भ्रष्‍टाचार हर कदम पर सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ा है वह चाह कर भी 2022 का सपना नहीं देखना चाहती है। उसे आज अच्‍छा चाहिए। कल की कल देखेंगे वाली जनता को दूख फूल मुरझाता सा दिख रहा है ।  यह प्रजा जरा हटके है यह अपना आज सुधारना चाहती है, इसका आभास  राजा को हो गया है। प्रजा भी समझ चुकी है कि अब नहीं तो कभी नहीं।  तो अब घोड़े के निकलने और पूरी तरह दलदल में फंसने की खबर 10 फरवरी तक।