Tuesday, 30 December 2014

जब तक डरेंगी डराएंगे लोग आपको ---



लड़किया जब भी लीक से हटकर कुछ करने के लिए घर से निकली हैं उन्‍हें तमाम तरह के विरोधों का सामना करना पड़ा है। लड़कियों को जहां परिवार वालों का समर्थन नहीं मिला है वहीं हर एक कदम पर ताना मारा गया है। समाज भी लड़कियों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताडि़त ही करता रहा है। जब यही बेटियां सारी 
प्रताड़नाओं को सहते हुए आगे निकली हैं तो मिसाल बनी हैं। रोल मॉडल बनी हैं। मां बाप का नाम रौशन किया है। इन सबके बीच लड़कियों की स्थिति आज देश में अच्‍छी नहीं है। तमाम पीड़ाओं को सहते हुए बेटियां देश को तरक्‍की की राह दिखा रहीं हैं, चांद और मंगल की यात्रा पर जा रही हैं। खेल के मैदान से लेकर फैशन की दुनिया में देश का नाम रौशन कर रही हैं। देश की महिला पत्रकार को विश्‍व के सबसे ताकतवर देश का राष्‍ट़पति नाम से पहचानता है ऐसे ही देश का कड़वा पहलू यह है कि बेटियों को कभी मोबाइल तो कभी पहनावे तो कभी पढाई को लेकर पाबंदियां झेलनी पड़ रही है। इन्‍हीं पाबंदियों के बीच देश के लोगो को बच्चियों के प्रति संवेदनशील और जागरूक बनाने का बीड़ा उठाया है बिंदास टीवी के हल्‍ला बोल-सीजन2 ने। सीजन -2 में देश की ऐसी ही 26 वीरांगनाओं ने मिलवाया जा रहा है जिन्‍होंने जीवन में हर कठिनाइयों को सहते हुए हार नहीं मानी बस वे चलती रहीं। सफर में वे गिरी, फिर उठीं, फिर चली,पलटकर पीछे नहीं देखा और अपनी एक पहचान बनाई।
 बिंदास युवाओं खासकर किशोरों का पसंदीदा चैनल है इस चैनल के सबसे ज्‍यादा दर्शक टीन एजर्स हैं जो पहले लव अफेयर करते हैं फिर उनकी जासूसी कराते हैं। ऐसे ही रियलिटी शो से प्रचलित हुआ ये चैनल इन दिनों लोगों को खासकर युवा वर्ग को जागरूक करने में जुटा है। जब मनोरंजन चैनल सेनसिटिव इश्‍यू पर बात करने लगे तो समझना चाहिए देश बदलाव की ओर अग्रसर जरूर होगा। बिंदास के इस हल्‍ला बोल सीजन-2 में ऐसी ही 26 डेयरिंग महिलाओं के जीवन और उन मुश्किल पलों को उन्‍हीं की जुबानी सुना रहा है और फिर उनके जीवन का नाटकीय रुपांतरण भी दिखाता है। जिसे युवा खासा पसंद कर रहे हैं।
 पिछले दिनों इन्‍ही 26 में से तीन रोल मॉडल दिल्‍ली में थी। महिलाओं के साथ हो रहे दुर्व्‍यवहार पर उन्‍होंने खुल कर बोला और कहा कि हम महिलाओं को ही महिलाओं की मदद के लिए आगे आना होगा तभी समाज में हमारी स्थितियां सुधरेगी। हमें एक दूसरे पर विश्‍वास करना होगा एक दूसरे के लिए आवाज उठानी होगी। यदि कोई किसी लड़की के लिए गलत बोलता हुआ मिले तो आप चुप मत रहिए लड़की की मदद के लिए आगे बढिए और आवाज बनिए साथ चलिए।
देश की पहली प्राइवेट इनवेस्‍टीगेटर का खिताब रजनी पंडित को मिला है।रजनी अपने अनुभव बताते हुए कहती हैं कि जब पहली बार घर में अपने जासूस बनने की इच्‍छा जताई तो पिता ने सिरे से खारिज कर दिया था। कहा था कि जासूसी  लड़़कियों के बस की बात नहीं है। उन्‍होंने हार नहीं मानी। कहती हैं मेरा जुनून सिर पर चढ कर बोल रहा था। जासूसी की शुरुआत कॉलेज से ही कर दी। पहले केस को याद करते हुए रजनी कहती हैं कि वह एक पैसे वाले घर से आती थी और लड़कों के साथ घूमती फिरती थी पढाई में उसका मन नहीं लगता था। वह हर दिन अपने मां बाप को बेवकूफ बनाने की कहानियां सुनाया करती थी, एक दिन मैं परेशान होकर उसके घर गई और उसकी मां को सारी कहानी सुना दी। लेकिन उस दोस्‍त की मां ने उनकी बात पर विश्‍वास नहीं किया और रजनी को ही खूब खरी खोटी सुनाई। रजनी ने हार नहीं मानी और मां को उसकी बेटी की हकीकत से अवगत कराकर ही दम लिया। इसके बाद फिर रजनी ने एक के बाद एक कई केस सुलझाए। एक पत्रकार की बहन की जिंदगी जब उन्‍होंने बचाई तब उन्‍हें मुकम्‍मल पहचान मिली और 1988 में उन्‍हें देश की पहली महिला जासूस होने का तमगा मिला। अब रजनी 47 वर्ष हो चुकी हैं और अपने 25 से अधिक वर्षों में उन्‍हें कई कई बार घिनौने आरोपों का सामना करना पड़ा। वह कहती हैं कि मैंने हार नहीं मानी और डटी रही। कभी नौकरानी बनीं, तो कभी अंधी औरत तो कभी गर्भवती महिला तो कभी कभी गूंगी बहरी। डर शब्‍द उनकी डिक्‍शनरी में  नहीं है। उनका मानना है कि जासूस जन्‍म से ही होते हैं बनाए नहीं जाते।
लड़कियों की आज की स्थितियों के विषय में रजनी कहती हैं कि अब समय आ गया है कि हम हल्‍ला बोलें। जब मैं जासूस बनी तब भी जासूसी करना महिलाओं का काम नहीं माना जाता था और आज भी यह महिलाओं का काम नहीं माना जाता है लेकिन मैं यह काम इन्‍हीं लोगों के बीच 25 साल से कर रही हूं और बेधड़क कर रहीं हूं।


 बॉडी बिल्‍डर ममता देवी कॉलेज के दिनों में खूबसूरत मॉडल हुआ करती थीं जिसपर पूरे कॉलेज के लड़के रश्‍क किया करते थे। आज भले ही ममता के चेहरे पर वह मासूमियत न रही हो लेकिन अब उनका एक-एक हाथ ढाई किलो का है और जब वह किसी पर पड़ता है तो वह इंसान उठता नहीं है उठ ही जाता है। इसी ममता देवी का बॉडी बिल्‍डर बनने का सफर आसान नहीं रहा है।तीन बच्‍चों को बड़ा करते हुए खुद के लिए समय निकालना, परिवार को चलाना बहुत मुश्किल था इस बीच परिवार वालों और अड़ोसियों पड़ोसियों के ताने के साथ खुद को संभालना बहुत मुश्किल था। इस ममता को आप भले ही न पहचानते हों लेकिन पूरी दुनिया इस भारतीय महिला की बॉडी और ट्राइशेप्‍स की दीवानी है। अब वह किसी पहचान की मुहताज नहीं है। मणिपुर इंफाल में जन्‍मी तीन बच्‍चों की मां दुनिया में  भारत का नाम रौशन कर रही है और अपनी बेहतरीन बॉडी के साथ कई खिताब भारत की झोली में डाल चुकी है और भारत का नाम रौशन कर रही है। ममता कहती हैं कि मैं बचपन से ही धुनी हूं जो काम ठान लिया वह कर के ही दम लिया। ममता के जीवन में कई उतार चढाव आए लेकिन उन्‍होंने हार नहीं मानी वह कहती हैं कि उनके पति प्रोफेशनल बॉडी बिल्‍डर हैं और मिस्‍टर इंडिया और मिस्‍टर एशिया का खिताब जीत चुके हैं। एक प्रतियोगिता में उनके पति विनर थे लेकिन उन्‍हें विजेता घोषित नही किया गया तब उन्‍होंने ठाना कि अब मैं बॉडी बिल्डिंग करूंगी। 2011 में उन्‍होंने बॉडी बनानी शुरु की और डेढ साल तक सिर्फ फिगर बनाया और पूना में 2012 में आयोजति एक प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंची तब तक भारत में महिलाओं में बॉडी बिल्डिंग पॉपुलर नहीं था उसी वर्ष जून में उजबेकिस्‍तान गईं और खिताब जीता फिर पीछे पलट कर नहीं देखा है कई अंतरराष्‍ट़ीय खिताब उनकी झोली में हैं। वह बहुत खुश होकर बताती हैं कि अब बंगाल से छह और लड़कियां बॉडी बिल्डिर बन कर आई हैं समय बदल रहा है अब बॉडी बिल्डिंग सिर्फ पुरुषों का खेल नहीं रहा है।  ममता कहती हैं कि जब मैं जिम में बॉडी बनाती थी तो अक्‍सर लोग मुझपर हंसते थे यह मर्दो वाला गेम है। मेरे चेहरे की मासूमियत खत्‍म हो रही थी अड़ोसी पड़ोसी मुझे शक की निगाह से देखते थे लेकिन अब सबकुछ ठीक है। लड़कियों से कहती हैं जब आप निकलेंगे तो शोर होगा अब आपको देखना है कि शोर सुनकर छुपना है या सामना करना है औरआगे बढना है। जिंदगी तो कोई भी आसान नही होती है। आज तक हम लड़कियां डरती ही रहीं हैं अब तो बाहर आइए जब तक डरेंगी लोग डराएंगे। 

Monday, 29 December 2014

कमजोर मत समझिए लड़कियों को्

यह बात उन कमजोर लड़कियों के लिए है जो लड़कों की छ़ेड़ छाड़ और छींटाकशी से घबरा जाती हैं। घर से निकलना बंद कर देती हैं। उन्‍हें डर होता है कि परिवार वालों को बताया तो परिवार वाले भी उन्‍हें ही गलत कहेंगे। यदि कोई लड़का उन्‍हें छेड़ता है और अड़ोसी पड़ोसी देख ले तो वे भी लड़कियों को ही गलत साबित करने में लग जाते हैं। समाज ऐसा ही है। लेकिन अब समय आ गया है कि लड़कियां आगे आएं और आवाज उठाएं और चुप न रहें। वे जब तक चुप रहेंगी वे ही दोषी ठहराई जाती रहेंगी। अगर लड़कियों को इस अजायब से बचना है तो उन्‍हें न केवल बोलना होगा बल्कि आंखें चौड़ी और हाथ ढाई-ढाई किलो के बनाने होंगे।

लड़कियों को अब यह भी समझना होगा कि आप जब तक दबेंगी, डरेंगी और छुपेंगी दुनिया आपको दबाएगी और डराएगी। इतिहास गवाह है जिन जिन लड़कियों ने हालात का सामना किया है और आवाज बुलंद की है उन्‍हें भले ही कुछ दिन कष्‍ट सहना पड़ा है लेकिन वही कष्‍ट उनके लिए हिम्‍मत साबित हुआ है। आप अपने इर्द गिर्द ही नजरें दौराइए ऐसी हजारों औरतें बसों में धक्‍के खाती हुई मिल जाएंगी। कभी कभी मनचले उनके पूरे शरीर को अपनी जागीर तक समझने लगते हैं और हरकत कर डालते हैं जिसका खामियाजा उन्‍हें भुगतना भी पड़ता है। हरियाणा की दोनों बहनों पर चाहें जितने भी आरोप लगे हों लेकिन उन बहनों ने तीनों मुस्‍टडों के साथ हाथा पाई कर अलख तो जगा ही दिया है।दिल्‍ली के लक्ष्‍मी नगर की लाल बत्‍ती की घटना है दोपहर के तीन बजे का समय था। एक लड़की मोटर बाइक पर थी इन दिनों लड़कियां फर्राटे से हवा में बात करती हुई बाइक चलाती नजर आ जाती हैं। चूंकि लड़की थी तो जाहिर है कुछ मनचलों का दिल भी मचल गया सो लग लिए उस लड़की के पीछे। लाल बत्‍ती जैसे ही हुई लड़की रुक गई लड़के जो काफी देर से उसका पीछा करते हुए चले आ रहे थे बत्‍ती पर उससे फिर बदतमीजी करने लगे। शायद वे अश्‍लील शब्‍दों का भरपूर उपयोग कर रहे थे। लड़की की बेचैनी उसके बाइक को आगे पीछे करने की वजह से नजर आ रही थी लेकिन लड़के बिलकुल पीछे पीछे लगे हुए थे। उनकी बदतमीजी उस समय लाल बत्‍ती पर खड़ी लगभग हर एक गाड़ी में बैठा शख्‍स देख समझ रहा था लेकिन किसी के कुछ कहने की हिम्‍मत नही थी न किसी ने कहा ही।  लड़की शरीर से दुबली पतली थी, उनकी बदतमीजियों को नजरअंदाज कर रही थी लेकिन जब उसकी बर्दाश्‍त की हद हो गई तो उसने बड़ी ही स्‍टाइल से गाड़ी को स्‍टैंड पर लगाया और उन लड़कों के पास  आई और पीछे वाले लड़के कंधे पर हाथ रखा और नीचे उतरने की इशारा किया। लड़का अपने आपको बलवान समझ रहा था  वह भी स्‍टाइल में उतरने का था तब तक तो उस लड़की ने अपना जूडो कराटे का जादू दिखाना शुरू कर दिया था्। अभी आगे वाला कुछ समझ पाता कि वह अपने दोस्‍त को बचाए या खुद बचे। वह सरपट भागने लगा। लाल बत्‍ती हरी हो चुकी थी। लड़की ने उस लड़के को पटखनी दी। गाडि़यों की चिल्‍ल पों शुरू हो चुकी थी कुछ लोग दौड़ के आए भी लेकिन लड़की ने बड़ी दिलेरी से कहा जब ये छेड़ रहा था तब आप मजे ले रहे थे अब मैं मार रही हूं तो इन्‍हें बचाने आए हो या मुझे। लड़की ने हेलमेट उतारा और पूछा अब क्‍यों आए हो। अभी कोई बेचारी सी लड़की होती तो ये दोनों तो उसे मारने का पूरा इंतजाम कर चुके थे। इन्‍हें समझाओ जब तक हम शांत है, शांत है जिस दिन अपने पर आ गईं दो नहीं पांच आठ की बैंड अकेली ही बजाएगी। हमारी हिम्‍मत और देखनी है। लड़की ने हैलमेट पहना, गाड़ी उठाई और निकल पड़ी। गुड लक कह कर निकल गई। 
  कहानी यहां खत्‍म नहीं होती है----यह महज एक हिम्‍मत लड़की की दास्‍तां भर है ऐसी हजारों  लड़कियां आपको अपने इर्द गिर्द नजर आ जाएंगी जो रोज हालात से लड़ रही हैं और जीत रहीं हैं। मिसाल कायम कर रही है। लड़कियों की हिम्‍मती होने का एक और दिलचस्‍प वाक्‍या राजधानी की सड़क का ही है। इस बार रक्षा बंधन वाले दिन खूब बारिश हुई थी। सारी सड़के नदी नालों में तब्‍दील हो गई थीं। बहनें भाई को राखी बांधने  के लिए न जाने कहां कहां से चली आ रही थीं। आश्रम चौक के पास लाजपत नगर की सड़क पर भी पानी भड़ा हुआ था। तीन लड़कियां खूब सज धज कर राखी, मीठा और फल लिए हुए ऑटो में बैठी थीं। चूंकि सभी गाडि़या रेंग रहीं थी और कपड़े किसी के खराब न हो जाएं इसका भी गाड़ीवान ध्‍यान रख रहे थे। तभी हरी बत्‍ती हुई और नौजवान को समय मिल गया लड़कियों को छेड़ने का और उसने खूब तेज गाड़ी भगाई सारा सड़क का गंदा पानी लड़कियों पर ऑटो चालक पर आ गया। लड़कियां, ऑटो वाला समेत कई बाइक वाले भी उस कार चालक पर चिल्‍लाए लेकिन वो अपनी इस हरकत पर मग्‍न था मानो जैसे उसने बडी बहादुरी का काम कर दिया हो। लड़कियों ने ऑटो वाले से कहा कि अंकल अब आप इस गाड़ी के पीछे हमें ले चलो अब तो पहले हम इससे बदला लेंगे फिर जाएंगे जहां हमें जाना है। ऑटो वाला भी लड़कियों के साथ हो लिया उसने फिर उस गाड़ी का पीछा किया और कार चालक को इशारा रुकने का किया। गाडी उसने तेज भगाई लेकिन अगली लाइट पर बच न सका। लड़की ने ऑटो वाले से कार चालक के शीशे के पास ऑटो खड़ा कराया और मुस्‍कुराते हुए शीशा खटखटया। नौजवान ने जब लड़की को देखा तो झट उसने शीशा खोला और अपना चेहरा बाहर निकाल कर पूछा- हां –कहीं चलना है छोड़ दूं। लड़की ने आव देखा न ताव जूती में जो गंदा पानी भरा था उसी को उसके सिर पर दे मारा। और मारती रही जब तक उसने शीशा ऊपर नहीं कर लिया। इस नजारे को लाइट पर कई लोग देख रहे थे और सभी ने उन बहनों का ताली बजा कर स्‍वागत किया।
जरा सी हिम्‍मत बस------कीजिए तो सही 
  

Saturday, 27 December 2014

आपके पत्रकार बेस्ट हैं लेकिन दूसरे पत्रकारों को बेवकूफ समझने की गलती न कीजिए

क्‍या हाइबरनेशन में भी सांप बाहर आता है? विज्ञान कहता है नहीं। ठंड और कड़ाके की ठंड में सांप क्‍या कोई भी रेपटाइल (रेंगने वाले जानवर) आपको नहीं दिखेंगे। जिनके घरों में छिपकली का बसेरा रहता रहा होगा वे जरा अपनी घरों की सभी दीवारों को ध्‍यान से देखें छिपकली है क्‍या? नहीं मिलेगी। जैसे ही ठंड का आभास रेंगने वाले जानवरों को होता है वे दुबक जाते हैं। और तब तक बाहर नहीं निकलते जब तक मौसम उनके शरीर के अनुकूल न हो जाए। लेकिन हमारे ही देश में एक ऐसा शहर है जहां 4 डिग्री के तापमान में भी सांप निकलता है और सिर्फ निकलता ही नहीं है काट भी लेता है। मैं साइंस की स्‍टूडेंट रही हूं और यह विज्ञान की बहुत बेसिक सी जानकारी है। यही नहीं मैंने खुद तीन साल लगातार चिडि़याघर पर खबरें की हैं। सरसरी निगाह से नहीं बल्कि चिडि़याघर में रह रहे जानवरों की बारीकियों को समझते हुए।  यही वजह है कि सांप के काटने की खबर मुझे हजम नहीं हो रही है अब दस साल में शायद सदियों पुराना विज्ञान बदल रहा हो।  लेकिन आज से दस वर्ष पहले जब मैंने अपना करियर शुरु किया था तो मुझे जो खबर करने के लिए कहा गया था वह था चिडि़याघर। हमेशा नजरअंदाज रहने वाला चिडि़याघर अचानक सुर्खियों में भी आ गया था और मीडिया हाउसों में मुझे नया नाम दिया था चिडि़याघर और मेरी पहचान बन गया था।
अब खबरें आ रही हैं कि इंदौर के कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय में सफेद बाघ्‍ को सबसे जहरीले सांप कोबरा ने काट लिया और बाघ मर गया। जू के अधिकारियों को इस बात की जानकारी एक घंटे बाद मिली। क्‍या सचमुच शेर की मौत कोबरा के काटने से हो गई या फिर वन विभाग शेर को ठंड से बचाने के लिए किए गए इंतजामात नाकाफी थे।
आज जब ये खबर देश के सबसे बड़े समाचार पत्र में पढी तो मैं सदमे में आ गई। अरे ये तो बहुत मामूली सी जानकारी है बचपन में सातवीं आठवीं में भी शायद विज्ञान कि किताबों में ये पढाया जाता है कि ठंड में रेंगने वाले जानवर बिलों में दुबक जाते है। आजकल तो कई चैनलों पर जानवरों और उनसे जुड़ी कई जानकारियां दिखाई जाती है। फिर क्‍या हमारे बंधुओं को चिडि़याघर के अधिकारियों से सवालात नहीं करने चाहिए थेएक सांप बाघ के बारे में डाल दिया और खबर बना दी और आपने फोटो खींच कर चस्‍पा दी और वही खबर देशभर को दिखा दी। एक बार मैं अपनी जॉब के सिलसिले में उस समाचार पत्र के समूह संपादक जी से मिली थी। संपादक जी ने मेरा रेज्‍यूमे देखने, पढने और बातचीत के बाद मुझे मिलने के लिए दूर देश बुलाया था। संवेदनशील संपादक साहब ने यह भी जरूरी नहीं समझा कि लडकी को बुलाया है तो उसके रहने ठहरने की व्‍यवस्‍था कंपनी को करनी चाहिए थी। चलिए ये बात जाने देते हैं मैं उनके लेखों की बड़ी प्रशंसक थी। लेकिन उनकी संवेदनशीलता देखकर विश्‍वास जरूर उठ गया। मेरी लेखनी के भी कई प्रशंसक हैं लड़कियां भी लड़के भी। बातचीत होती है लेकिन यकीन मानिए मैं अगर उनकी किसी बात से नाराज भी हो जाउं तो मौके का इंतजार करती हूं उनकी गलतियां बताने के लिए। प्रशंसक है भाई संवेदना जुड़ी है। चलिए ये बातें फिर कभी अब बात उठती है चुने बीने लोगों की। जब मैं उनसे मिली तो उन्‍होंने बड़े ही रूखे अंदाज में मुझसे पांच मिनट तक बात कही और मेरा सारा गुमान उन्‍हें लेकर जो था वो खत्‍म होता गया, इसी बीच उन्‍होंने अपने आपको महान बताते हुए यह भी कहा कि दिल्‍ली के पत्रकार प्रेस रिलीज की पत्रकारिता करते हैं। अब मेरे चुप रहने का सवाल ही नहीं था -इसलिए मैंने भी कुटिल मुस्‍कान के साथ कहा सर आप भूल रहे हैं सारी बे्रकिंग न्‍यूज दिल्‍ली के गलियारे से ही आती हैं और सरकारे हिल जाती हैं। उसे दिल्‍ली के पत्रकार ही दुनिया के‍ सामने लाते हैं। और तब तक मैं समझ चुकी थी कि संवेदनशील लेख लिखने वाला व्‍यक्ति संवेदनशील ही हो यह जरूरी नहीं। कम से कम हमारे दिल्‍ली के संपादक जिनके साथ मैंने अभी तक काम किया है वे सभी बहुत संवेदनशील थे। सिर्फ खबरों के मामले में ही नहीं बल्कि पत्रकारों के मामलों में भी।  
अब फिर जरा मुद़दे पर लौटते हैं। इस सबसे बड़े समाचार पत्र के संपादक जी का ये भी दावा था कि उनके साथ जो भी काम कर रहे हैं वे एक्‍सीलेंट हैं। बिलकुल हैं, उनमें से कई मेरे साथी हैं। जिनके साथ मैंने पुराने संस्‍थानों में काम किया है। चूंकि मेरे साथियों ने दिल्‍ली में पत्रकारिता की है इसलिए वे किसी भी खबर पर आंख मूंद कर विश्‍वास नहीं करते हैं एक बार नहीं कई बार क्रास चेक करते हैं और जब तक खुद संतुष्‍ट न हो जाएं दबाव के बाद भी खबरे नहीं लिखते। लेकिन जब ठंड में सांप काट ले वह भी शेर को मुझे बात हजम नही हो रही है। गुस्‍ताखी माफ हो खबर पढने के बाद वन्‍य जीव से जुड़े कई विशेषज्ञों को फोन खटखटाया यही नहीं रेप्‍टाइल खास कर सांपो से जुड़ी विशेष जानकारियां भी पढ़ी सभी जगह एक ही बात मिली। अपना तर्जुबा तो बता ही चुकी हूं। तो भाई ये जो ठोक बजा कर काम हो रहा है और बेरोजगार पत्रकारों को नीचा दिखाया जा रहा है। प्‍लीज ये गंदा खेल मत खेलिए मत रखिए अपने संस्‍थान में लेकिन पत्रकारों को जलील मत कीजिए। खुद को बेस्‍ट बताइए आप बेस्‍ट हैं भी मुझे आपके बेस्‍ट होने पर कोई शक नही है पर खबरें शक करने पर मजबूर कर रही हैं। हां एक बात और दूसरों के काम और उसकी क्षमता पर सवालिया निशान भी मत लगाइए। एक बार और चेक कीजिए क्‍या सचमुच कोबरा ने बाघ को काटा या जू के कर्मचारियों ने इस चूने बीने पत्रकार को बेवकूफ बना दिया।

                 



इंदौर.  कोबरा सांप के काटने से कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय में रहने वाले टाइगर की मौत हो गई। यह टाइगर दो महीने पहले ही भिलाई से संग्रहालय में लाया गया था। पिंजरे में घुसे कोबरा के डसने से व्हाइट टाइगर राजन बेहोश होकर गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई। इस घटना से जू प्रबंधन सवालों के घेरे में आ गया है। इंदौर के चिड़ियाघर में सांप निकलने की ये घटना कोई पहली नहीं है। पिछले दो सालों में यहां 50 से ज़्यादा सांप निकले हैं।आलम ये है कि सांप पकड़ने के लिए चिड़ियाघर प्रशासन ने गब्बर नामक एक नाथपंथी को खास तौर पर नियुक्त किया है।गब्बर के मुताबिक उसने पिछले साल तो शेर के बाड़े के पास गड्डा खोदकर एक सांप निकाला था। ये सांप यहां शेर के बाड़े के पास ज़मीन में घुस गया था। सन 2012 में सफ़ेद शेर के बाड़े में सांप घुस गया था, हालांकि वो ज़हरीला नहीं था।दूसरी बार चिड़िया घर में आया है नागराज कोबरा
गब्बर के अनुसार चिड़ियाघर में इसके पहले सिर्फ एक ही बार कोबरा आया था। उसे नाले के पास से पकड़ा था। दरअसल कोबरा प्रजाति के नाग आमतौर पर चहल पहल वाले इलाके मे नहीं रहते ।

Friday, 26 December 2014

बेबी डाॅल मैं सोने दी

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Tuesday, 23 December 2014

गोरी चमड़ी पाने के लिए क्‍या क्‍या करते हैं हम भारतीय

मैं सह रही हूं सांवले होने की पीड़ा, जो भी मिला काली कह कर नकार गया

गर्व से कहो कि हम सांवले हैं


पूजा मेहरोत्रा


काली या सांवली होना अभी तक महिलाओं के लिए अभिशाप माना जाता था लेकिन हाल के वर्षों में बाजारवाद जिस कदर आम जीवन पर हावी हुआ है, इसने पुरुषों को भी अपने आगोश में ले लिया है। वे भी सोचने लगे हैं कि यदि आप सांवले हैं तो आप बिल्कुल स्मार्ट नहीं हैं, आप लड़कियां आपको देखेंगी भी नहीं। यही नहीं, यदि आप सांवले हैं और टैलेंटेड हैं तो भी नौकरी पाने की संभावनाएं गोरे लोगों की ही अधिक रहती है। यानी काले-सांवले और गोरे की लड़ाई में महिलाओं के साथ पुरुष और युवा भी शामिल हो गए हैं। अब लड़कों को भी अहसास होने लगा है कि किसी सांवली लड़की को काली कहकर नाक-भौं सिकोड़ने से उसके दिल पर क्या गुजरती होगी। वैसे, सांवले लड़के-लड़कियों को क्रीम लगाकर गोरा और स्मार्ट बनने का काम बॉलीवुड के जाने-माने सितारे शाहरुख खान, जॉन अब्राहम और शाहिद कपूर के साथ-साथ दीपिका पादुकोण, जेनेलिया डीसूजा, यामिनी गुप्ता कर रही हैं। गोरा बनाने का काम करने का दावा करने वाली कंपनियों ने देश के खिलाड़ियों को भी नहीं छोड़ा है। युवा लड़कियों के दिलों की धड़कन और युवाओं के रोल मॉडल कहे जाने वाले क्रिकेट के मैदान में प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों के चौके-छक्के छुड़ा देने वाले विराट कोहली भी विज्ञापन के द्वारा युवाओं को यह बताने से झिझकते नहीं हैं कि ‘गोरा लड़का ही स्मार्ट होता है।’ विज्ञापन में उन्हें गोरे और सांवले दोनों रूपों में दिखाया गया है।
दूसरी ओर, भारत से हजारों मील दूर न्यूजीलैंड में बैठे त्वचा विशेषज्ञ डॉ. शरद पॉल भारतीयों को सांवले होने पर गर्व करने की सलाह देते हुए कहते हैं कि ‘आप सांवले हैं और भारतीय भी है, तो आप अपने आपको भाग्यशाली समझिए क्योंकि सांवलों को त्वचा का कैंसर होने की संभावना कम होती है। इसके अलावा वे अधिक संवेदनशील और आकर्षक होते हैं। उनमें बीमारियों से लड़ने की क्षमता अधिक होती है। इसके साथ ही गहरे रंग वालों के शरीर में बहुत सारी ऐसी खूबियां पाई जाती हैं जो किसी भी माहौल में अपने आपको ढाल लेती हैं।’ डॉ. पॉल विश्व के जाने-माने चर्म कैंसर विशेषज्ञ हैं। उन्होंने गोरे-काले के भेदभाव में सांवलों को बेहतर बताते हुए एक किताब ‘स्किन : अ बायोग्राफी’ लिखी है, जिसमें उन्होंने इस बात का खुलासा किया है कि किस तरह से काली, गेहुंआ और सांवली त्वचा व्यक्ति को कई प्रकार की बीमारियों से लड़ने में मदद करती है। इस पुस्तक में उन्होंने यह भी बताया है कि क्यों होते हैं इंसान काले और गोरे? डॉ. पॉल भारत में चलाए जा रहे अभियान ‘डार्क इज ब्यूटीफुल’ के बहुत बड़े प्रशंसक हैं और कहते हैं कि काली त्वचा वाला इंसान सामाजिक और चिकित्सीय दृष्टि से भी अलग होता है।
वे बताते हैं कि इंसान का शरीर उसके पूर्वज बंदर (एप्स) से विकसित हुआ है। बंदर का विकास २८० लाख साल पहले हुआ था जबकि आदिमानव के शरीर का विकास अफ्रीका में एक लाख साल पहले ही हुआ। शुरू में उसकी त्वचा के रंग का निर्धारण विटामिन डी और फॉलिक एसिड के संतुलन की वजह से हुआ। इसमें भी हजारों सौ साल लगे। जैसे-जैसे बंदर का शरीर सीधा होता गया, उसका शरीर अधिक ताप ग्रहण करने लगा, जिसे संतुलित करने के लिए उसने अपने शरीर से बालों को छोड़ना शुरू कर दिया। इससे शरीर में फॉलिक एसिड की कमी होने लगी क्योंकि धूप से शरीर में फॉलिक एसिड की कमी होने लगती है, जिसे बचाने के लिए त्वचा अपना रंग काला कर लेती है। गहरे रंग की त्वचा में सूरज की रोशनी से लड़ने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। यही वजह है कि अफ्रीकी काले होते हैं।
फॉलिक एसिड प्रजनन क्षमता बढ़ाने के अलावा जन्मजात गड़बड़ियों से लड़ने में भी मददगार होता है, इसलिए एशिया और अफ्रीका में आबादी अधिक है और यहां के लोगों में जन्मजात बीमारियों का खतरा भी कम होता है। वहीं शरीर को मजबूत बनाने के लिए विटामिन डी की आवश्यकता होती है। पहले यह माना जाता था कि गोरी त्वचा हर मामले में बेहतरीन होती है लेकिन अधिकतर ठंडे पश्चिमी देशों के पर्यावरण में सूर्य की रोशनी कम मात्रा में पाई जाती है, जो शरीर के लिए हितकर नहीं होती। वैसे डॉ. पॉल यह बताने से भी नहीं हिचकिचाते हैं कि शरीर के रंग का बहुत कुछ संबंध खानपान से भी होता है।
दक्षिण एशियाई अपनी त्वचा के रंग को ध्यान में रखकर प्राय: धूप में जाने से बचते हैं इसलिए यहां की पूरी आबादी में विटामिन डी की भरपूर कमी पाई जाती है, जिससे उनमें हड्डी से जुड़ी कई बीमारियां पाई जाती हैं, यहां तक कि उन्हें प्रजनन में भी परेशानी होती है। डॉ. पॉल कुछ साल पहले की बात याद करते हुए बताते हैं कि ‘मेरे पास कोई ३० साल की महिला अपने पति के साथ आई। वह कई वर्षों से आइवीएफ तकनीक द्वारा बच्चे पैदा करने की कोशिश कर रही थी लेकिन सफल नहीं हो पा रही थी। वह थी तो गेंहुए रंग की लेकिन चेकअप के बाद पता चला कि उसमे विटामिन डी की बहुत ज्यादा कमी है। विटामिन डी भी महिला और पुरुष के प्रजनन क्षमता को कहीं-न-कहीं प्रभावित करता है। पुरुषों में जहां यह टेस्टोस्टेरोन की मात्रा में कमी लाता है, वहीं महिलाओं में कई तरह के हारमोन को बढ़ा देता है जिससे कई बीमारियां होती हैं। इससे नपुंसकता भी आ जाती है। बहरहाल, इलाज के बाद इस दंपती को आइवीएफ तकनीक से बच्चा पैदा हुआ।
इसलिए जो भी गहरे रंग को हेय और नीची नजरों से देखते हैं उन्हें पता होना चाहिए कि गहरा रंग सभी रंगों की त्वचा में अधिक संवेदनशील होता है और यह हमें कई प्रकार की बीमारियों से बचाती है, जिसमें त्वचा का कैंसर भी शामिल है। इसलिए गेहुंए और काले रंग पर गर्व कीजिए।

पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी हार को भांप लिया था मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित ने

डरी हुई और बदली बदली हैं शीला


पूजा मेहरोत्रा


वूमंस प्रेस कोर की विजिटर बुक में ‘लव ऑल’ लिखते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के चेहरे पर हमेशा वाली मुस्कराहट तो थी, लेकिन 4 दिसंबर को होने वाले चुनाव को लेकर मन में कहीं एक डर भी था जो अचानक जाहिर हो गया। विजिटर बुक में हस्ताक्षर करते हुए उनके मुंह से निकला ‘मुख्यमंत्री के तौर पर यह मेरा आखिरी ऑटोग्राफ है।
शायद!’ उनके मन की चिंता को भांपते हुए उनके इर्दगिर्द खड़ी महिला पत्रकार आगामी चुनाव के मद्देनजर उन्हें शुभकामनाएं देने लगीं। वे मुस्कराने की नाकाम कोशिश करती हुई एक बार फिर सवालों के जवाब देती हुई आगे निकल गर्इं। वैसे, वे भले ही 15 साल के अपने बेहतरीन कामों का दम भर रही हों लेकिन वे मानती हैं कि हर चुनाव चुनौती भरा होता है और हर बार चुनौती का स्वरूप अलग-अलग होता है। शुक्रवार को महिला प्रेस क्लब की ‘प्रेस मीट’ में शीला दीक्षित बदली-बदली हुई सी नजर आर्इं। मुख्यमंत्री को करीब से जानने वाले कुछ पत्रकार उनके इस बदले रूप को देखकर आश्चर्यचकित थे। मीडिया के सवालों का सीधा-सीदा जवाब न देने वाली और सवाल सुनते ही झल्लाने वाली मुख्यमंत्री एक घंटे से अधिक समय तक एक के बाद एक पत्रकारों के लगभग हर सवाल का जवाब देती रहीं। ये सवाल दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा से लेकर आम आदमी पार्टी से मिल रही चुनौतियों तक के बारे में थे।
15 सालों में दिल्ली को बदल देने का दावा करने वाली शीला दीक्षित बार-बार पत्रकारों से पूछ रही थीं कि सच बताइए, क्या पिछले १५ वर्षों में आपको दिल्ली में कोई बदलाव नजर नहीं आया? आम आदमी पार्टी (आप) को वे अपने लिए भले ही खतरा न मानती हों लेकिन वे उसे कड़ी चुनौती से इनकार भी नहीं कर रही हैं। बातों-बातों में फिर पलटकर उन्होंने यह कह भी दिया कि भाजपा एक पारंपरिक और स्थापित पार्टी है और उससे हमारा सीधा मुकाबला है लेकिन ‘आप’ पार्टी की बात जितनी कम की जाए उतना अच्छा है, क्योंकि वह सिर्फ हवा है। स्टिंग ऑपरेशन के बाद इस पार्टी की ईमानदारी का गुब्बारा फूट चुका है। वैसे, शीला दीक्षित यह भी मानती हैं कि दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि 15 सालों से आप लगातार मुख्यमंत्री हैं और यदि आप चौथी बार
मुख्यमंत्री बनती हैं तो कौन सी नई चुनौतियां आपके सामने होंगी? उन्होंने कहा कि हर दिन कुछ-न-कुछ चुनौती होती ही है। लोगों की आशाएं आपसे जुड़ती जाती हैं। हर साल लाखों लोग दिल्ली में आकर बस रहे हैं। उन लोगों के रहने, खाने से लेकर उनकी सुरक्षा हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। शहर में रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं जिस वजह से लोग दिल्ली में बसने की आकांक्षा रखते हैं। पार्टी की पराजय की हालत में खुद केंद्र की राजनीति में जाने के सवाल को बहुत ही संजीदगी से लेते हुए दीक्षित ने कहा कि ‘यदि हमारी पार्टी जीतती है तो विधायक और हाइकमान तय करेंगे कि वे किसे अपना नेता चुनते हैं और यदि हमारी पार्टी नहीं जीतती है तो फिर मैं लोकसभा चुनाव तक वही करूंगी जो मुझसे कहा जाएगा।
यूपीए-३ यदि पावर में आती है तो पार्टी मेरे लिए जो योजना बनाएगी, मैं उसी का पालन करूंगी।’ पिछले दिनों दिल्ली के आंबेडकर नगर में हुई राहुल गांधी की फ्लॉप मानी जा रही रैली से क्या यह नहीं लगता कि लोगों का कांग्रेस से मोहभंग हो रहा है? इस सवाल पर वे बहुत ही मजाकिया अंदाज में बोलीं, ‘आप मुझसे राहुल की मंगोलपुरी रैली के बारे में तो कुछ नहीं पूछ रही हैं, जहां अपार संख्या में लोग थे? हां, आंबेडकर नगर की रैली में पुलिस की कड़ी सुरक्षा और देर से भाषण शुरू होने की वजह से लोग निकलने लगे थे। वैसे मैं जांच कर रही हूं कि आखिर क्या हुआ कि लोग नहीं पहुंचे।’
दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि हां, दिल्ली में महिलाओं को असुरक्षा महसूस होती है, इसलिए हमने महिलाओं के लिए अन्य शिकायत नंबरों के बीच 181 की शुरुआत की है, जहां हर दिन हजारों की संख्या में महिलाओं के फोन आ रहे हैं। अब हमारा अगला कदम महिलाओं के लिए चार-पांच मोबाइल वैन शुरू करने का है जो खुद पीड़ित महिलाओं तक पहुंचेगी और उनकी मदद करेगी। वहीं जब उनसे महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न के विषय में पूछा गया तो वह तपाक से बोलीं, ‘तहलका’ पत्रिका के मालिक और मुख्य संपादक तरुण तेजपाल द्वारा महिला पत्रकार के यौन उत्पीड़न का मामला हो या फिर गुजरात में एक महिला की गैरकानूनी जासूसी, दोनों के बीच कोई मूलभूत अंतर नहीं है। दोनों ही मामलों में सभी महिलाओं को एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी चाहिए।’ ऐसे मामले जब भी आते हैं तो लगता है कि अभी दिल्ली के लिए और समाज के लिए बहुत कुछ करना है। कई चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं।