...नेता रूपी गुंडे चहूं ओर हैं...
वैसे तो गाजियाबाद का बस
नाम ही काफी है...जिलों में जिला है ग़ाज़ियाबाद..यहां का नजारा भी कुछ वैसा ही
नजर आता है जैसा बासेपुर फिल्म में दिखाया गया था...जरा सी बात पर कट्टे निकल जाते
हैं..पुलिसवाले वारदात होता देख मुंह घुमा
कर खड़े हो जाते हैं..मोहल्ले वाले घर की खिड़की में बन रही सेंध से नजारा देखते
हैं.. अगर मुहल्ले में मामला आंखों के सामने गलती से घट जाए तो ऐसे व्यवहार करेंगे
जैसे मानों की कुछ हुआ ही न हो..हुआ भी हो तो उस समय वो वहां नहीं थे...बस मेरा
नाम न आ जाए..आ गया तो मानों वो गुंडा उसके घर में घुसकर उसे माड़ने पहुंच जाएगा
क्योंकिं यहां न तो पुलिस का और न ही कानून को किसी का डर है..सब की जेब में कानून
घूमता है...गलती किसी की भी हो दोषी हमेशा सामने वाला ही होता है...गाजियावाद में
जिसके जेब में लोडेड मामला रखा है कानून तो और प्रशासन और पुलिस उसकी जेब में
घुमते नजर आते हैं...मुझे जबसे पता चला है मैं परेशान हूं... आज आवाज न उठाई तो
कहीं देर न हो जाए..पता नहीं हर दिन स्कूल बस में जाने वाले बच्चे किस किस डर के
साए से गुजर कर स्कूल पहुंचते होंगे और स्कूल बस का ड्राइवर बच्चों को बचाने के
लिए कितने जुल्म-ओ-सितम सहता होगा..
गौर फरमाइएगा...
बस ये कल की ही बात है. मुझे
भी ये आंखों देखा हाल आज देर शाम पता चला है...परेशान हूं क्योंकि हमारे नौ निहाल
इतने डर गए थे कि उन्हें पता ही नहीं चल रहा था कि वे क्या करें..बस के बाहर उन
बच्चों के ड्राइवर भैया को पीटा जा रहा था...जैसे फिल्मों में गंदे लोग पिस्तौल
निकाल लेते हैं उस गंदे अंकल ने भी पिस्तौल निकाल ली थी...पूरा मोहल्ला ड्राइवर की
कोई गलती न होते हुए भी उसे पिटता हुआ देख रहा था...बस में बच्चे डर से चिल्ला रहे
थे... इतने डर गए थे कि सब एक दूसरे से चिपक कर रो रहे थे...किसी ने न तो खुद ही
कुछ कहा और न पुलिस को बुलाने की ही जहमत उठाई..क्योंकि उस स्कूल बस में उनके
बच्चे नहीं थे.और वे खुद डर रहे थे क्योंकि उन्हें उसी मुहल्ले में रहना है और वो
गुंडा उनका जीना कहीं हराम न कर दे...
सुबह कुछ साढ़े सात आठ बजे
की बात बताई जा रही है. पीली रंग की एक स्कूल बस बच्चे लिए अपनी रफ्तार से जा रही
थी...कि अचानक ड्राइवर ने जोर का ब्रेक लगाया..बस के सामने अचानक ही गुंडा रूपी
नेता अपनी सफेद सी एसयूवी को मोड रहा था..गाड़ी के अचानक सामने आने के बाद लाख
कोशिशों के बाद भी ड़ाइवर उतना कड़ा ब्रेक नहीं लगा पाया क्योंकि बस में बैठे
बच्चे महज पांच से सात साल के थे..बस में बच्चे गिर जाते और उन्हें भी चोटें आ
सकती थी...
गलती पर ध्यान दिलाते हुए
ड्राइवर ने कहा..भैया..सड़क पर गाड़ी लाने से पहले आगे पीछे देखा करो..स्कूल बस
है...
लेकिन उस एसयूवी गाड़ी में
बस का कोना सट चुका था.. एसयूवी ३० बच्चों से ज्यादा कीमती थी..आनन फानन में उस
आदमी ने गाली देते हुए ड्राइवर को गा़ड़ी से नीचे उतारा और बिना गलती के लात घूसों
से पीटने लगा...इतना मारा की ड्राइवर के नाक मुंह तक से खून निकलने लगा...
ड्राइवर बाहर मार खा रहा था
बच्चे बस डर से चिल्ला रहे थे...जब बच्चों ने देखा कि इस सफेद गाड़ी वाले अंकल ने
पिस्तौल निकाल ली है तो उन्होंने भगवान को याद किया कि उसके ड्राइवर भैया को कुछ न
हो....
मुहलले वाले मूक दर्शक बने
रहे...
मैंने पूछा गाड़ी का नंबर
क्या था?
जवाब मिला हम इतने डरे थे
कि याद ही नहीं रहा की गाड़ी नंबर ही नोट करें..
स्कूल प्रशासन नाम खराब
होने के डर से या बच्चों के डर से चुप रहा...जिस घर के बच्चे को लेने ड्राइवर उस
मोहल्ले में गया था..वह भी चुप हैं...लाख मान मनौल्ल के बाद भी किसी ने न तो गाड़ी
का नंबर दिया है और न उस शख्स के खिलाफ कोई शिकायत ही की है...क्योंकि वो वैसा ही
है....अखिलेश जी आपके राज और राज्य में मैं तो नगर निगम..बिजली..पानी और सड़क से
पीड़ित हूं ..हर काम के लिए घूस मांगते हैं अधिकारी...पानी का लगा लगाया कनेक्शन
काट दिया जाता है और दुबारा लगाने के लिए पैसे देने पड़ते हैं...बिजली का लोड
जिसकी फीस महज १२०० रूपए है उसके लिए ३५००-४००० रुपए मांगा जाता है...ये पीड़ा तो
जरा गहरी और बड़ी है लेकिन कल जो बच्चों के साथ हुआ है...वह शर्मनाक और विभत्स
है....संभलिए और संभालिए....
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