न एनाउंसमेंट हो रही थी और
न भीड को नियंत्रित करने के लिए अधिकारी मुस्तैद थे
पूजा मेहरोत्रा
महिलाओं को दिल्ली मेट्रो
ने शनिवार बहुत बड़ा धोखा दिया। उन्हें न तो कई वर्षों से आरक्षित पहले कोच में
जगह मिली और न ही शनिवार को एनाउंस किए गए आखिरी कोच में। यह सिलसिला पूरे दिन
चलता रहा। इसका संज्ञान लेने की जहमत न तो दिल्ली मेट्रो के अधिकारियों ने उठाई
और न सुरक्षा की गारंटी भरने वाली सीआइएसएफ की टीम ने। उन्होंने मान लिया है कि
दिल्ली मेट्रो में चढने वाले सभी यात्री अखबार पढते हैं और वे इतने समझदार हैं कि
अपने आप ही सबकुछ मैनेज कर लेंगे। कशमीरी गेट पर रात प्लेटफाॅर्म नंबर चार दिलशाद
गार्डन के रूट पर एक महिला गार्ड पूरी भीड को नियंत्रित करने की नाकामयाब कोशिश कर
रही थी। वहीं महिला यात्री दबी जुबान से दिल्ली मेट्रो और सीआइएसएफ को कोसती जा
रही थीं।
बदकिस्मती से रात 8 45 की
मेट्रो में चढने जब मैं कशमीरी गेट पहुंची। नजरा बिलकुल उलट पुलट था। दिलशाद गार्डन
की ओर जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्मपर थी। अगले डिब्बे में पुरष थे। महिलाओं ने
दूसरी मेट्रो आने का इंतजार करना बेहतर समझा। दूसरी मेट्रो आई उसका भी यही हाल था,
मेट्रो के पहले कोच में पुरुष भड़े हुए थे, किसी ने कहा आप लोग पीछे जाइए आज से
आखिरी कोच आपका है। महिलाएं पीछे की ओर भागी। दूसरी मेट्रो भी निकल गई लेकिन
महिलाओं ने देखा पीछे के कोच में भी पुरुष एक के उपर एक चढे हुए हैं। कुछ महिलाएं पहले से कोच
से आखिरी कोच की ओर तो कभी आखिरी कोच से पहले की कोच की तरफ भाग रही थीं। मैंने यह
नजारा दस मिनट तक देखा, मुझे भीड के कम होने का इंतजार था। तब तक दो लडकियां जो
काफी देर से मेट्रो को आता जाता देख रही थीं वो भी आई और कहा दोपहर में भी ऐसा ही
हाल है। अब क्या करें। दूसरी ने कहा किसी में भी चल अब बस चल।
दिल्ली मेट्रो ने शनिवार
से दिलशाद गार्डन से रिठाला रूट या यूं कहें रिठाला से दिलशाद गार्डन रूट में
महिलाओं का कोच आखिरी कोच घोषित तो कर दिया। लेकिन महिलाओं की सुरक्षा के पुख्ता
इंतजाम ऐसे किए कि महिलाओं को न पहले कोच में जगह मिली और न ही आखिरी कोच में। महिलाओं
की सुरक्षा का दावा करने वाली मेट्रो के सारे दावे दिलशाद गार्डनसे रिठाला और
रिठाला से दिलशाद गार्डन रूट पर आज पूरे दिन खोखले साबित होते रहे। ये मेट्रो की नाकामी
का ही नजारा था कि महिलाएं पूरे दिन असहज, दबी कुचली सी ट्रेवल करती नजर आईं। पूरे
रूट पर कहीं कोई घोषणा नहीं की जा रही थी और न ही सीआइएसएफ के अधिकारी ही मौजूद
थे। मौजूद थी एक छोटे कद की दबी कुचली सी सिक्योरिटी गार्ड जिसने सिर्फ यही कहा
कि मैं चिल्ला चिल्ला कर थक चुकी हूं, लेकिन कोई सुन नहीं रहा है। सभी पीछे के
कोच में चढ रहे हैं। मेट्रो का पहला कोच पहले ही पुरुषों से ठसाठस भड़ा था। सभी
दांत खिसोर रहे थे और महिलाएं अपने लिए एक सुरक्षित कोना तलाश रही थी। कुछ महिलाएं इस कन्फयूजन में आगे चढे या पीछे
के चक्कर में दो तीन मेट्रो छोड भी चुकी थीं। तब तक एक लडकी मेरे पास आई और उसने
पूछा मैम आपको पता है ये क्या कन्फयूजन है, मैंने कहा हां, मुझे पता है। बोली आज
ऐसा क्यों हो रहा है। मैंने मुस्कुराते हुए कहा ये मेट्रो प्रशासन का फेल्योर ,
सीआइएसएफ की नजरअंदाजी और महिलाओं का सिर्फ घर पहुंचने से मतलब का नतीजा है। अगर
सुबह से चार से पांच महिलाओं ने भी मेट़ो ट्रेनों के अंदर दिए गए नंबरों पर इस तरह
की सूचना दी होती तो शायद यह नहीं होता। महिलाएं ऐसे तो पूरे पूरे दिन फोन पर गप्पे
लगाती रहेंगी लकिन जब बात जागरूकता की हो तो उन्हें अपने चंद सिक्के भी कीमती
नजर आने लगते हैं। तो यह हमारी कमजोरी है जिसे आप देख रही हैं।
अब मैं कशमीरी गेट के आखिरी
कोच के दूसरे दरवाजे पर खडी थी। वहां मुस्तैद दुबली पतली मडियल सी गार्ड से मैने
पूछा आप यहां क्यों खडी हैं। झेंपते हुए बोली मैडम मैं यहा खडे आदमियों को यह
बताने के लिए खडी हूं कि आप आगे जाइए ये महिलाओं का डिब्बा है। मुझे कोई नहीं सुन
रहा। मै थक चुकी हूं। मैंने पूछा आपने सीआइएसएफ, स्टेशन मैनेजर को सूचित किया।
बोली मैडम हमें यहां से हटने का ऑर्डर नहीं है। मेट्रो आ चुकी थी। गेट खुलने से
पहले लोग घुसने को तैयार थे। वो चिल्ला रही थी। पहले यात्रियों को उतरने दीजिए।
ये महिलाओं का कोच है। लेकिन सभी दांत निकालते हुए बोले मत सुनो इसे।
मेट्रो के अंदर मैंने
पहुंचकर सबसे पहले हेल्पलाइन नंबर वाला स्टीकर तलाशना शुरू किया। पुरुष यात्री
मजे से कह रहे थे जब तक एनाउंसमेंट नहीं होगे तब तक हम ऐसे ही चलेंगे। बहुत दिन
महिलाओ को एक कोच स्पेशल दी गई है। खाने दो इन्हें भी धक्के।
मैंने मेट्रो हेल्पलाइन के
लगे स्टीकर से सबसे पहले दिल्ली मेट्रो के हेल्प लाइन नंबर 011155370 पर फोन
किया। शास्त्री पार्क आने तक और उसके बाद दूसरा स्टेशन आने तक वो इस परेशानी के
लिए एक उसके लिए दो, फिर इसके लिए तीन जैसे कई ऑप्शन ही दिए जा रही थी। यानि
जरूरत के समय आप ऑप्शन में ही खोकर हार जाएं ऐसा पुख्ता इंतजाम मेट्रो ने कर रखा
है। हार कर मैंने सीआइएसएफ के नंबर 01122185555 पर फोन लगाया तब तक सीलमपुर स्टेशन
आ चुका था। फोन उठाने वाले से
मैंने पूछा आज से महिलाओं
के कोच की स्थिति क्या है?
बोला- मैडम आखिरी कोच।
मैंने कहा जानकारी देने की क्या व्यवस्था की
गई है?
बोला मैडम इसकी जानकारी मुझे नहीं है,
मैंने कहा प्लैटफॉर्म पर
आपके अधिकारी मौजूद नहीं है,
बोला मैडम पहला दिन है इसलिए यह सब हो रहा है।
मैंने पूछा क्या सब हो रहा
है?
बोला कि महिलाओं के कोच में
पुरुष सफर कर रहे हैं।
मैंने पूछा कितने दिन तक
सफर करेंगे, फिर सारी ट्रेन जेनरल होनी चाहिए आज से।
ये क्या जवाब है पहला दिन
है? फिर आज से लागू ही नहीं करना था नियम।
बोला मैडम मैं सूचना दे रहा
हूं, अधिकारियों को अगले स्टेशन पर अधिकारी होंगे। वो महिलाओं के कोच से पुरुषों
को निकालेंगे।
एक के बाद एक शाहदरा,
मानसरोवर, झिलमिल और दिलशाद गार्डन। न सीएसएफ का अधिकारी आया और न पुरुष महिलाओं
के कोच से हटाए गए।
मेट्रो से, मेट्रो प्रशासन
से मेरा बस एक ही सवाल है जब आप से ये मैनेज ही नहीं होना था जो व्यवस्था बनाई
थी वही चलने देते। ये महिलाओं की सुरक्षा बढाई जा रही है या असुरक्षा। अगर एक्सपेरिमेंट
ही करना है तो पुरुषों के साथ भी कीजिए। अगर फुल प्रूफ व्यवस्था नहीं थी तो घोषणा ही नहीं करनी चाहिए थी। ये कैसी महिला सुरक्षा है
?
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